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जिसे मोदी और योगी कर चुके हैं पुरस्कृत, उसे नहीं मिली ट्रेन में सीट

ट्रेन में पति व बच्चों के साथ रात भर खाए धक्के, बावजूद इसके प्रधान माहेजबी ने कहा कि प्रधानमंत्री के हाथों पुरस्कृत होने की खुशी के आगे जबलपुर के सफर की दुश्वारियां का कोई मलाल नहीं है।

By Srishti VermaEdited By: Published: Fri, 27 Apr 2018 09:10 AM (IST)Updated: Fri, 27 Apr 2018 09:18 AM (IST)
जिसे मोदी और योगी कर चुके हैं पुरस्कृत, उसे नहीं मिली ट्रेन में सीट
जिसे मोदी और योगी कर चुके हैं पुरस्कृत, उसे नहीं मिली ट्रेन में सीट

बाराबंकी (प्रेम अवस्थी)। जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हाथों से 24 अप्रैल को मध्य प्रदेश के जबलपुर में नानाजी देशमुख गौरव ग्राम सभा एवं दीनदयाल उपाध्याय पंचायत सशक्तीकरण पुरस्कार दिया, उसे भारतीय रेल में एक सीट भी नहीं मिली। पति के साथ दो छोटे-छोटे बच्चों को लेकर जबलपुर से बिना सीट के ट्रेन में धक्के खाते पूरी रात बीती। ऐसे में पति को डायरिया हो गया। बावजूद इसके प्रधान माहेजबी ने कहा कि प्रधानमंत्री के हाथों पुरस्कृत होने की खुशी के आगे जबलपुर के सफर की दुश्वारियां का कोई मलाल नहीं है। उल्लेखनीय है कि माहेजबी को मोदी से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी रानी लक्ष्मीबाई वीरता पुरस्कार से सम्मानित कर चुके हैं।

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प्रशासन ने नहीं की टिकट की व्यवस्था

उप्र के बाराबंकी स्थित सिद्धौर ब्लॉक की ग्राम पंचायत कोठी की प्रधान माहेजबी ने बताया कि जिला पंचायत राज अधिकारी ने जबलपुर जाने के लिए संदेश दिया था। आने-जाने के टिकट की व्यवस्था हमें ही करनी थी। वापसी के समय ट्रेन में सीट कंफर्म नहीं हुई, लेकिन लौटने की विवशता थी। पांच साल का पुत्र अब्दुल्ला व दो वर्षीय पुत्री आयरा मरियम भी साथ में थी। भीषण गर्मी में सीट न मिलने से दोनों बच्चों को लेकर ट्रेन का सफर इतना परेशान करने वाला साबित हुआ कि पति को डायरिया हो गया।

हाथ में टांगे रहे ग्लूकोज की बोतल

डायरिया होने के बावजूद प्रधानमंत्री के हाथों पत्नी को पुरस्कृत किए जाने का उत्साह मुशीर कुरैशी में इतना है कि वह हर किसी को प्रधानमंत्री के साथ मंच पर बिताये गए पलों के संस्मरण सुनाते नहीं थकते। गुरुवार की दोपहर मुशीर कुरैशी घर के बरामदे में हाथ में ग्लूकोज की बोतल लिए गांव के राजेंद्र व सुरेश आदि को जबलपुर यात्रा का हाल सुनाते मिले। वह दो मिनट पहले ही घर के अंदर से निकले थे। बरामदे में ग्लूकोज की बोतल टांगने के लिए कोई स्टैंड नहीं था। उत्साह के चलते वह एक हाथ में बोतल लेकर बातें करने में इतना मशगूल हो गए कि बोतल कहां टांगनी है यह भी याद नहीं रहा। कुछ देर बाद उनके भतीजे ने बरामदे में लगी रॉड से रस्सी बांधकर बोतल को सहारा दिया।


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