Maharashtra Political Crisis: फ्लोर टेस्ट की संभावना कम, उद्धव इस्तीफा कैसे देते हैं; तय होना बाकी
Maharashtra Political Crisis विशेषज्ञों का मानना है कि कानूनी पहलू बहुत से हैं लेकिन व्यवहारिक रूप से सरकार अल्पमत में आ चुकी है। उद्धव सरकार का हटना लगभग तय। अब बस उन्हें इसकी प्रक्रिया या कहें रास्ता तय करना है।
नई दिल्ली, रुमनी घोष। लगभग नौ दिन से महाराष्ट्र में चल रहे सियासी संकट के बीच गुरुवार (30 जून 2022) को एक महत्वपूर्ण पड़ाव होगा। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पूर्वाह्न 11 बजे उद्धव ठाकरे सरकार को शक्ति परीक्षण के लिए विधानसभा के फ्लोर पर बुला सकते हैं। विधानसभा सचिव के जरिये उन्होंने यह संकेत दे दिया है। फ्लोर टेस्ट में क्या-क्या समीकरण बन सकते है? और फ्लोर टेस्ट की प्रक्रिया क्या होगी? इस पर संविधान विशेषज्ञों की राय...
व्यवहारिक पहलू यही है कि सरकार अल्पमत में है, इस्तीफा देना पड़ेगा
लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं फ्लोर टेस्ट के लिए कानूनी पहलू तो बहुत से हैं, लेकिन व्यवहारिक रूप से उद्धव सरकार अपना बहुमत खो चुकी है। मुझे लगता है कि उद्धव सरकार फ्लोर टेस्ट की नौबत नहीं आने देगी। बुधवार शाम को जो बैठक बुलाई गई है, संभवत: इसमें उद्धव ठाकरे अपने विधायकों से चर्चा कर यह तय करना चाहते हैं कि इस्तीफा कैसे दिया जाए। हो सकता है कि वह पहले ही इस्तीफा दे दें, या फिर कल सदन में जाकर इस्तीफा दें। एक पक्ष यह भी है कि विधानसभा में इसको लेकर शोरगुल हो या कोई विवाद की स्थिति उत्पन्न हो और फ्लोर टेस्ट न होने दिया जाए। हालांकि इसकी संभावना न के बराबर है और ऐसा होना भी नहीं चाहिए। लोकतांत्रिक तरीके से संविधान के दायरे में जो निर्णय आए, उसे स्वीकार करना चाहिए।
फ्लोर टेस्ट से पहले इस्तीफा!
मध्यप्रदेश विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव भगवान देव इसरानी के अनुसार महाराष्ट्र की स्थिति को समझने के लिए हमारे पास दो माडल हैं। एक मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरने का माडल और दूसरा लोकसभा में अटल सरकार गिरने का माडल। उनका मानना है कि महाराष्ट्र में फ्लोर टेस्ट की नौबत नहीं आएगी।
विपक्षियों के पास पैसा और पावर दोनों
पहला माडल : राजनीति में पैसा और पावर दो ही चीजें महत्वपूर्ण हैं। सात दिन से गुवाहाटी में रह रहे शिवसेना के बागी गुट के नेता एकनाथ शिंदे के जरिये यह संदेश तो स्पष्ट है कि विपक्षियों के पास यह दोनों ही हैं। तोड़फोड़ के चंद घटों के भीतर सभी छह विधायकों को जेड सिक्यूरिटी मिलने से यह बात और पुख्ता हो गई। ऐसे में मुझे लगता है कि फ्लोर टेस्ट की नौबत ही नहीं आएगी। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस्तीफा दे देंगे और भाजपा-शिवसेना के बागी व निर्दलीय विधायकों के जरिये सरकार बनाने का दावा पेश करेगी। बड़ी पार्टी होने के नाते राज्यपाल उनका यह प्रस्ताव स्वीकार कर सकते हैं।
अटलजी की तरह सदन में अपनी बात रखें
दूसरा माडल : अल्पमत में होने के बावजूद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने लोकसभा में इस्तीफा नहीं दिया था। वह सदन में पहुंचे और उन्होंने विपक्षियों को 'एक्सपोज, करते हुए संबोधित किया।
फ्लोर टेस्ट में दो तरह के मोशन आते हैं
हरियाणा विधानसभा के पूर्व अतिरिक्त सचिव व पंजाब विधानसभा में अध्यक्ष के सलाहकार रहे रामनारायण यादव बताते हैं सुप्रीम कोर्ट फ्लोर टेस्ट करवाने के लिए इन्कार नहीं कर सकती है। इसलिए फ्लोर टेस्ट तो होगा। फ्लोर टेस्ट में दो तरह के मोशन आते हैं। एक कांफिडेस मोशन और एक लो कांफिडेंस मोशन। कांफिडेंस मोशन सरकार द्वारा लाया जाता है, जब सरकार को विश्वास होता है कि उनके पास बहुमत है। लो कांफिडेंस मोशन विपक्षियों और दूसरे गुट द्वारा लाया जाता है। जैसे महाराष्ट्र में हुआ है या हो रहा है।
तीन तरह से होता है फ्लोर टेस्ट
विधानसभा मामलों के जानकार रामनारायण यादव बताते हैं लोकसभा में बटन दबाकर समर्थन देने की सुविधा है। वहां इससे फ्लोर टेस्ट हो जाता है। विधानसभाओं में यह सुविधा नहीं है। ऐसे में राज्यपाल तीन तरह से फ्लोर टेस्ट करवा सकते हैं।
1. हां या ना बुलवाकर
2. हाथ खड़े करवाकर
3. लाबी में भेजकर गिनती। विधायक, ट्रेजरी बेंच लाबी (सरकार के पक्ष में) या ओपोजिनशन लाबी (विपक्ष की लाबी में) में से एक में जाकर खड़े हो जाते हैं। जिस लाबी में ज्यादा सदस्य होते हैं, उसकी जीत होती है।
राज्यपाल के निर्णय को चुनौती नहीं दी जा सकती है
फ्लोर टेस्ट के बाद जो भी निर्णय राज्यपाल सुनाते हैं, उसे कहीं चुनौती नहीं दी जा सकती है। यदि सदन के किसी भी पक्ष को आपत्ति है तो वह दोबारा नए सिरे से फ्लोर टेस्ट की प्रक्रिया को पूरा करने का आदेश दे सकते हैं।
1989 में हुई फ्लोर टेस्ट की शुरुआत
- भारत में 31 साल पहले तक बहुमत साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट नहीं होता था।
- कर्नाटक में बोम्मई सरकार गिरने के पांच साल बाद वर्ष 1989 में सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट अनिवार्य किया था।
यह है बोम्मई जजमेंट
वर्ष 1985 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हुए थे। राज्य की 224 सीटों में से 139 सीटों पर जनता पार्टी ने जीत दर्ज की। कांग्रेस के पास 65 सीटें थीं और जनता पार्टी की सरकार बनी। फोन टैपिंग आरोप के चलते 10 अगस्त 1988 को तात्कालीन मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े को इस्तीफा देना पड़ गया। इसके बाद एसआर बोम्मई प्रदेश के नए सीएम बने, लेकिन कुछ महीने बाद ही उनकी सरकार भी गिर गई।