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महंत ज्ञानदास ने की संयम बरतने की अपील, कहा- मंदिर निर्माण के लिए न्यास में शामिल होने का लालच छोड़ें

महंत ज्ञानदास ने कहा है कि मंदिर निर्माण के लिए संभावित शासकीय न्यास पर किसी तरह का दबाव न बनाएं। ताकि वह मुक्त होकर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करे।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Wed, 13 Nov 2019 02:15 PM (IST)Updated: Wed, 13 Nov 2019 02:15 PM (IST)
महंत ज्ञानदास ने की संयम बरतने की अपील, कहा- मंदिर निर्माण के लिए न्यास में शामिल होने का लालच छोड़ें
महंत ज्ञानदास ने की संयम बरतने की अपील, कहा- मंदिर निर्माण के लिए न्यास में शामिल होने का लालच छोड़ें

अयोध्या, जेएनएन। मंदिर मस्जिद विवाद के सौहार्दपूर्ण हल की कोशिश करते रहे बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी से जुड़े शीर्ष महंत ज्ञानदास ने उन लोगों से संयम बरतने की अपील की है जो राम मंदिर के लिए प्रस्तावित शासकीय न्यास में शामिल होने के लिए ललक रहे हैं। महंत ज्ञानदास ने कहा है कि मंदिर निर्माण के लिए संभावित शासकीय न्यास पर किसी तरह का दबाव न बनाएं। ताकि वह मुक्त होकर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करे और राम जन्मभूमि पर भव्यतम मंदिर का निर्माण सुनिश्चत करे। उन्होंने फैसला आने के बाद सभी पक्षों की ओर से प्रस्तुत सौहार्द का स्वागत किया और कहा कि भगवान राम हिंदुओं के ही नहीं पूरे देश और पूरी मानवता के हैं। वह हिदुओं की तरह मुस्लिमों के भी पूर्वज हैं।

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बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पांच सौ साल से चले आ रहे विवाद का पटाक्षेप करते हुए शनिवार को अपने ऐतिहासिक सर्वसम्मत फैसले में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया है। अपनी जन्मभूमि पर मालिकाना हक का मुकदमा लड़ रहे रामलला विराजमान को जन्मभूमि मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि का अंदरूनी और बाहरी आहाता ट्रस्ट या बोर्ड के जरिए मंदिर निर्माण के लिए देने का आदेश दिया है। तीन महीने के अंदर अयोध्या अधिग्रहरण कानून 1993 की धारा 6 और 7 के तहत एक योजना बनाकर सरकार को न्यास गठित करने का आदेश है।

कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि जब तक संपत्ति ट्रस्ट को नहीं सौंप दी जाती तब तक संपत्ति केंद्र के रिसीवर के ही कब्जे में रहेगी, जबकि गैर कानूनी ढंग से तोड़ी गई मस्जिद के बदले मुसलमानों को वैकल्पिक स्थान पर मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन आवंटित करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों ने सर्व सम्मति से यह फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने वैसे तो निर्मोही अखाड़ा का मुकदमा समय बाधित बता कर खारिज कर दिया है, लेकिन साथ ही केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वह निर्मोही अखाड़ा को भी गठित किये जाने वाले ट्रस्ट में उचित प्रतिनिधित्व देगी।


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