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Rajasthan: जसवंत सिंह का वसुंधरा राजे की जिद के चलते कटा था टिकट, ऐसे बदलते रहे समीकरण

Jaswant Singh कभी भाजपा के दिग्गज नेता रहे जसवंत सिंह का पार्टी ने ही तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की जिद के चलते लोकसभा चुनाव में टिकट काट दिया था। इसके बाद जसवंत को पार्टी छोड़कर बाड़मेर सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा जिसमें वे हार गए।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Sun, 27 Sep 2020 06:47 PM (IST)Updated: Sun, 27 Sep 2020 06:47 PM (IST)
Rajasthan: जसवंत सिंह का वसुंधरा राजे की जिद के चलते कटा था टिकट, ऐसे बदलते रहे समीकरण
पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का 82 साल की उम्र में रविवार को निधन हो गया।

जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। Jaswant Singh: भाजपा के संस्थापक सदस्य पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का 82 साल की उम्र में रविवार को निधन हो गया। कभी भाजपा के दिग्गज नेता रहे जसवंत सिंह का पार्टी ने ही तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की जिद के चलते लोकसभा चुनाव में टिकट काट दिया था। इसी के चलते कभी वसुंधरा राजे को प्रदेश की राजनीति में सक्रिय करने में अहम भूमिका निभाने वाले जसवंत सिंह को पार्टी छोड़कर बाड़मेर सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा, जिसमें वे हार गए। वसुंधरा राजे को पहली बार मुख्यमंत्री बनवाने में जसवंत सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। वसुंधरा राजे और जसवंत सिंह परिवार के बीच राजनीतिक अदावत इतनी बढ़ गई कि जसवंत के बेटे मानवेंद्र गत विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे के गढ़ झालावाड़ में उनके खिलाफ जा खड़े हुए। मानवेंद्र सिंह ने पहले झालारापाटन से वसुंधरा राजे के खिलाफ विधानसभा का चुनाव लड़ा। इसके बाद झालावाड़ सीट से वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़ा।

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ऐसे बदलते रहे समीकरण

 साल, 2003 में राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के वरिष्ठ नेता स्व.भैरो सिंह शेखावत उपराष्ट्रपति बन चुके थे। पार्टी नए नेतृत्व की तलाश में थी। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता कतार में थे, लेकिन जसवंत सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को इस बात के लिए तैयार किया कि वसुंधरा राजे पर दांव खेला जाए। हालांकि शेखावत इसके लिए राजी नहीं थे। आखिरकार जसवंत सिंह के प्रयासों से वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भाजपा ने चुनाव लड़ा और वे मुख्यमंत्री बनीं। वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री बनते ही जसवंत सिंह से उनकी दूरी होना शुरू हो गईं। दूरी इस हद तक बढ़ी कि एक समर्थक ने जोधपुर में वसुंधरा राजे का मंदिर बनाना शुरू किया तो जसवंत सिंह की पत्नी शीतल कंवर ने देवी-देवताओं का अपमान बता उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया। इससे दोनों के बीच दूरी और अधिक बढ़ गई।

जसवंत सिंह के पैतृक गांव जसोल में आयोजित एक सामाजिक समारोह में कई लोग शामिल हुए। वसुंधरा राजे के विरोधी इन नेताओं का स्वागत जसवंत सिंह ने मारवाड़ी परंपरा से अफीम की मनुहार से किया। इस मामले को लेकर विवाद हुआ तो तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार में आयोजकों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ। यह मामला भी कई दिन तक सुर्खियों में रहा। इसी बीच साल, 2014 के लोकसभा चुनाव में जसवंत सिंह ने बाड़मेर से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। उन्होंने इसे अपना अंतिम चुनाव बताया, लेकिन चुनाव से ठीक पहले वसुंधरा राजे ने कांग्रेस के सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी को भाजपा में शामिल कर लिया। आलाकमान से जिद कर उन्हें टिकट दिला भी दिया। जसवंत सिंह इससे काफी आहत हुए और उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा, हालांकि वे हार गए।

चुनाव हारने के कुछ माह बाद वे कौमा में चले गए। रिश्तों में कड़वाहट का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भाजपा से विधायक होने के बावजूद वसुंधरा राजे ने जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र को कभी तव्वजो नहीं दी। पार्टी में हाशिये पर चल रहे मानवेंद्र सिंह ने गत विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का हाथ थाम लिया। इसके बाद वे वसुंधरा राजे के सामने चुनाव मैदान में उतरे। हालांकि हार गए। फिर लोकसभा चुनाव में स्वाभिमान का नारा देते हुए दुष्यंत सिंह के सामने उन्होंने झालावाड़ से चुनाव लड़ा। 


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