एट्रोसिटी एक्ट के क्रियान्वयन को लेकर गाइडलाइन जारी करने की तैयारी में एमपी सरकार
मुख्यमंत्री के बयान के बाद गृह और विधि विभाग एक्ट के क्रियान्वयन को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने की तैयारी में जुट गया है।
भोपाल, नई दुनिया स्टेट ब्यूरो। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के एट्रोसिटी एक्ट का मध्य प्रदेश में दुरुपयोग नहीं होने देने और गिरफ्तारी से पहले जांच संबंधी बयान से घमासान मच गया है। सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक समाज संस्था, अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी-कर्मचारी संघ व संयुक्त मोर्चा और कानूनविदों की अलग-अलग राय सामने आ रही है। इसी बीच कानून के क्रियान्वयन को लेकर सरकार गाइडलाइन जारी करने की तैयारी में जुट गई है। गृह और विधि विभाग इस दिशा में काम कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री की टिप्पणी की रोशनी में पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता अजय मिश्रा ने सवाल उठाया कि कानून का क्रियान्वयन कोई कैसे रोक सकता है। राज्य सरकार किसी परिपत्र या प्रशासकीय व्यवस्था से इसमें बदलाव नहीं कर सकती है। राज्य संशोधन ला सकता है पर इसके लिए विधानसभा की अनुमति लगेगी और राष्ट्रपति से मंजूरी लेनी होगी।
सरकार को यदि इसमें कोई बदलाव करना है तो केंद्र सरकार को अब तक पत्र क्यों नहीं लिखा गया। पूर्व पुलिस महानिदेशक सुभाषचंद त्रिपाठी का कहना है कि जुबानी जमा खर्च से कुछ नहीं होता है। लिखित में आदेश जारी हों। वहीं, सपाक्स समाज के संरक्षक हीरालाल त्रिवेदी ने कहा कि यदि एक्ट से इत्तेफाक नहीं रखते थे तो जब यह संसद में पारित हो रहा था तब आवाज क्यों नहीं उठाई। संसद से पारित कानून को कोई कैसे बदल सकता है। ये जनता की आंखों में धूल झोंकने जैसा है।
यदि इसके प्रति मुख्यमंत्री वाकई गंभीर हैं तो लिखित आदेश जारी कर सभी कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और थानों में भिजवा दें। वहीं, अजाक्स के प्रदेश महामंत्री एसएल सूर्यवंशी का कहना है कि संसद द्वारा पारित कानून में किसी को संशोधन का अधिकार नहीं है। सिर्फ संसद ही इसमें बदलाव कर सकती है।
उधर, मुख्यमंत्री के बयान के बाद गृह और विधि विभाग एक्ट के क्रियान्वयन को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने की तैयारी में जुट गया है। बताया जा रहा है कि कुछ ही दिनों में गाइडलाइन जारी हो जाएगी। इसके लिए महाधिवक्ता कार्यालय से भी राय ली जा सकती है।
सीएम के बयान से अब एससी-एसटी खफा, एट्रोसिटी एक्ट बनेगा मप्र में चुनावी मुद्दा
भोपाल। एट्रोसिटी एक्ट का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के लिए गले की हड्डी बनता जा रहा है। मध्य प्रदेश में जोर पकड़ते सामान्य वर्ग के आंदोलन को ठंडा करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रदेश में बिना जांच किसी की गिरफ्तारी नहीं होगी।
सीएम के इस बयान से एससी-एसटी वर्ग नाराज हो गया है। भाजपा को एकसाथ दोनों वर्ग को साधने में भारी दिक्कत हो रही है। लगातार गर्म हो रहा यह मुद्दा विधानसभा चुनाव को भी प्रभावित करेगा। एससी-एसटी वर्ग से जुड़े संगठन 23 सितंबर को भोपाल में आयोजित सम्मेलन में अपनी रणनीति का खुलासा करेंगे।
उज्जैन में करणी सेना के तीन लाख लोगों के जमावड़े से भाजपा-कांग्रेस नेताओं के कान खड़े हो गए हैं। गांव-गांव तक फैल रहे इस आंदोलन को थामने के लिए ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि बिना जांच किसी की भी गिरफ्तारी नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि कानून का दुरुपयोग नहीं होने दिया जाएगा। सामान्य वर्ग को राहत देने वाला यह बयान भले ही राजनीतिक हो लेकिन एससी-एसटी वर्ग को फिर नाराज कर दिया है। इस वर्ग से जुड़े संगठनों का कहना है कि संविधान में संसद से बड़ा कोई नहीं हो सकता है। जिस कानून को संसद ने बनाया, उसे कैसे तोड़ा मरोड़ा जा सकता है।
हम तो चाहते हैं गिरफ्तारी तत्काल हो
एससी-एसटी वर्ग से जुड़े संगठन अजाक्स के महामंत्री डॉ. एसएल सूर्यवंशी का कहना है कि 86 संगठन इस लड़ाई को लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब संसद ने कानून यथावत कर दिया तो फिर राज्य उसमें कैसे बदलाव कर सकता है। सूर्यवंशी के मुताबिक गिरफ्तारी के विषय में एक्ट में ही लिखा है कि 'यदि" पुलिस जरूरी समझे तो गिरफ्तारी करे। उन्होंने कहा कि हम तो 'यदि" को हटाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
बिना जांच एफआईआर होगी तो गिरफ्तारी कैसे टालोगे
इधर, सामान्य वर्ग संगठन के संरक्षक और पूर्व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विजय वाते का कहना है कि एक्ट की नई धारा 18 ए के तहत पुलिस को तत्काल बिना किसी जांच या तस्दीक के एफआईआर दर्ज करना होगी। एफआईआर के बाद पुलिस के लिए जरूरी होगा कि वह आरोपित को गिरफ्तार करे अन्यथा इस एससी-एसटी एक्ट के तहत उस पर भी कार्रवाई किए जाने का प्रावधान है।
सीएम का ताजा बयान पूरी तरह राजनीतिक है। हम अपनी मांग पर अडिग हैं कि सरकार सुप्रीम कोर्ट की मंशा के मुताबिक कानून में संशोधन करे।