Bihar Assembly Elections : चंपारण की धरती पर कांग्रेस की डोलती नैया और दलों की भीड़ में देर तक चमके थे कम्युनिस्ट
Bihar Assembly Elections चंपारण की धरती पर कांग्रेस से असंतुष्ट लोग कम्युनिस्ट की ओर हुए थे आकर्षित। केसरिया मोतिहारी बेतिया और सुगौली पर रहा वर्चस्व। वर्ष 1952 के बाद कई चुनावों तक कांग्रेस का वर्चस्व रहा मगर उसके बाद यहां की राजनीति वामपंथ की ओर करवट लेने लगी थी।
पूर्वी चंपारण, [ अनिल तिवारी ] । Bihar Assembly Elections 2020 : चंपारण की धरती पर कांग्रेस की डगमगाती नैया और विपक्षी दलों की भीड़ के बीच वामपंथी राजनीति तेजी से चमकती रही। कांग्रेस से असंतुष्ट लोग कम्युनिस्ट की ओर झुकते चले गए। वर्ष 1952 के बाद कई चुनावों तक चंपारण में कांग्रेस का वर्चस्व रहा, मगर उसके बाद यहां की राजनीति वामपंथ की ओर करवट लेने लगी थी। केसरिया में पितांबर सिंह ने शुरुआती दौर में वामपंथ का झंडा बुलंद किया। वर्ष 1962, 67 व 72 में इस सीट से निर्वाचित हुए। कम्युनिस्ट पार्टी से वीरबल शर्मा बेतिया व चनपटिया में विजय पताका लहराते रहे। मोतिहारी सीट पर तो त्रिवेणी तिवारी ने 1985 से 1995 के अंतराल में हैट्रिक लगाई। मधुबन में भी 1985 के पहले कई बार इस सीट से कम्युनिस्ट पार्टी जीत दर्ज कर चुकी है। केसरिया और सुगौली विधानसभा क्षेत्र में 90-95 तक वामपंथियों का पलड़ा भारी रहा। सुगौली में रामचंद्र सहनी (अब भाजपा में) व विजय गुप्ता (अब भाजपा में) स्तंभ बने रहे।
1990 के बाद भी जीतते रहे कम्युनिस्ट
केसरिया विधानसभा सीट पर वर्ष 1962, 1967, 1972 और 1977 में कम्युनिस्ट पार्टी से पितांबर सिंह जीते। वर्ष 1980 और 1985 को छोड़ दें तो उसके बाद भी यहां से कम्युनिस्ट जीतते रहे हैं। वर्ष 1990 और 1995 में यहां से दबंग नेता यमुना यादव कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर जीतने में कामयाब रहे। इसके बाद जैसे-जैसे सूबे की राजनीति में राजद का सामाजिक समीकरण हावी होता गया, कम्युनिस्ट का प्रभाव क्षीण होता गया। युवा वामपंथी नेता पुष्पेंद्र कुमार द्विवेदी कहते हैं कि हमारा वोट समाप्त नहीं हुआ है। वह डायवर्ट हुआ है। इसके पीछे कई कारण रहे। नेतृत्व की कमी, राजनीति और चुनावी परिवेश के अनुरूप खुद को नहीं ढाल पाना तथा बेमेल गठबंधन पार्टी की कमजोरियां रहीं।