भीमा-कोरेगांव मामले की जांच एनआइए को सौंपे जाने पर महाराष्ट्र में घमासान
महाराष्ट्र के यलगार परिषद-भीमा कोरेगांव मामले की जांच अचानक राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) के हाथ में जाने से राजनीतिक घमासान छिड़ गया है।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। महाराष्ट्र के यलगार परिषद-भीमा कोरेगांव मामले की जांच अचानक राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) के हाथ में जाने से राजनीतिक घमासान छिड़ गया है। महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने केंद्र के फैसले को संविधान के खिलाफ बताया है। उनका कहना है कि यह फैसला लेने से पहले राज्य सरकार की राय तक नहीं ली गई। वहीं, भाजपा का कहना है कि यह मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक साजिश थी। भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि एनआइए मामले की जांच कर रही है और जो भी दोषी होंगे, उन्हें दंडित किया जाएगा। साफ है कि कांग्रेस-राकांपा को जांच एनआइए के हाथ में जाना बिल्कुल हजम नहीं हो रहा है। हालांकि शिवसेना का कोई बड़ा नेता अब तक इस मामले में कोई प्रतिक्रिया देने से बच रहा है।
31 दिसंबर, 2017 को भीमा-कोरेगांव में हुई थी हिंसा
31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवार वाड़ा के बाहर सीपीआइ(एम) के सहयोग से हुए यलगार परिषद के बाद अगले ही दिन पुणे के दूसरे हिस्से में भीमा-कोरेगांव में हिंसा हो गई थी। इसमें एक युवक मारा गया था। पुलिस ने इन दोनों मामलों की अलग-अलग एफआइआर दर्ज की थी। पुणे पुलिस का मानना था कि यलगार परिषद में दिए गए भड़काऊ भाषणों के कारण ही भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़की थी। यलगार परिषद की जांच आगे बढ़ने पर इसके तार नक्सलवादियों से जुड़ते दिखाई दिए और अब तक इस मामले में 17 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। लेकिन गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबड़े की गिरफ्तारी अब भी नहीं हो सकी है। महाराष्ट्र में सरकार बदलने के बाद इस मामले की पुन: जांच की मांग उठने लगी तो राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर यलगार परिषद मामले की पुन: जांच के लिए एसआइटी गठित करने की सिफारिश की। अब अचानक एनआइए द्वारा इस मामले की जांच अपने हाथ में ले लेने से कांग्रेस-राकांपा दोनों स्तब्ध हैं। वह इसे संघीय व्यवस्था पर चोट बता रहे हैं।
अजीत पवार और अनिल देशमुख ने ली मामले की जानकारी
मुख्यमंत्री कार्यालय से जुड़े अधिकारियों के अनुसार उद्धव ने पवार के पत्र पर कोई टिप्पणी नहीं लिखी है। इसके बावजूद उपमुख्यमंत्री अजीत पवार और गृह मंत्री अनिल देशमुख ने पुलिस महानिदेशक सुबोध जायसवाल, पुणे के पुलिस आयुक्त वेंकटेश्वरम् और इस मामले की जांच करने वाले तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त रवींद्र कदम को मंत्रालय में बुलाकर पूरे मामले की जानकारी ली। बताया जाता है कि इन अधिकारियों ने दोनों नेताओं को बताया कि पुणे पुलिस द्वारा की गई जांच बिल्कुल सही थी। सभी आरोपितों के विरुद्ध पक्के सुबूत भी हासिल हुए हैं। ऐसे मौके पर, जबकि आरोपपत्र दाखिल किया जा चुका हो, यह मामला राज्य की ही किसी दूसरी एजेंसी को सौंपना उचित नहीं होगा। अधिकारियों ने मंत्रियों को यह भी बताया कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के अन्य मामलों में निर्देश हैं कि राज्य की किसी एजेंसी द्वारा जांच के बाद उसी मामले की जांच का काम राज्य की ही किसी अन्य एजेंसी को नहीं दिया जा सकता।
राकांपा ने ली मामले में विशेष रुचि
माना जा रहा है कि पवार के निर्देश पर महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार की एक घटक राकांपा इस मामले में विशेष रुचि ले रही है। कांग्रेस को मजबूरी में उसका साथ देना पड़ रहा है। जबकि फड़नवीस सरकार में गृह राज्यमंत्री रहे शिवसेना नेता दीपक केसरकर इस मामले में पुलिस की जांच को सही ठहराते दिख रहे हैं। शिवसेना की स्थिति इस मामले में सांप-छछूंदर जैसी हो रही है। फडणवीस सरकार में कनिष्ठ सहयोगी होने के बावजूद उस समय वह गृह मंत्रालय में भागीदार थी।
हालांकि उनके नेता उद्धव ठाकरे की कोई प्रतिक्रिया इस मामले में अब तक नहीं आई है। हालांकि शरद पवार आरोप लगा रहे हैं कि एसआइटी की जांच होने पर निर्दोष लोगों को फंसाए जाने की पोल खुल जाने का खतरा था इसलिए जांच अचानक एनआइए ने अपने हाथ में ले ली। लेकिन इस मामले का एक पहलू यह भी है कि मामला एनआइए के हाथ में जाने के बाद अब तक पुलिस की पकड़ से बाहर चल रहा नक्सल समर्थक गौतम नवलखा अब जांच एजेंसी के हत्थे चढ़ सकता है। उसके संबंध कश्मीरी आतंकियों से बताए जाते हैं। एनआइए जांच में यदि कश्मीरी आतंकियों और नक्सलियों के बीच गठजोड़ उजागर हो सका तो वर्तमान में सीएए और एनआरसी के विरोध में खड़े किए गए आंदोलन की हवा निकलते भी देर नहीं लगेगी।
राहुल ने भी मोदी सरकार पर कसा तंज
नई दिल्ली। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भीमा-कोरेगांव मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) द्वारा अपने हाथ में लेने को लेकर शनिवार को नरेंद्र मोदी सरकार पर तंज कसा। उन्होंने ट्वीट कर कहा, 'जो भी मोदी-शाह के नफरत के एजेंडे का विरोध करता है, वह शहरी नक्सली हो जाता है।' राहुल ने कहा, 'भीमा-कोरेगांव प्रतिरोध का प्रतीक है जिसे सरकारी एनआइए की कठपुतलियां कभी मिटा नहीं सकते।'