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UP सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा-गुरु गोरखनाथ की पाकिस्तान में भी मान्यता

सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गुरु गोरखनाथ ही नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे। गुरु गोरखनाथ की मान्यता भारत के साथ पाकिस्तान भूटान नेपाल तथा म्यांमार में है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Thu, 26 Sep 2019 11:53 AM (IST)Updated: Thu, 26 Sep 2019 06:28 PM (IST)
UP सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा-गुरु गोरखनाथ की पाकिस्तान में भी मान्यता
UP सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा-गुरु गोरखनाथ की पाकिस्तान में भी मान्यता

लखनऊ, जेएनएन। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को नाथ संप्रदाय की महत्ता पर प्रकाश डाला। हिंदी भवन के यशपाल सभागार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ ही केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने युग प्रवर्तक महायोगी गोरखनाथ पर केंद्रित तीन दिवसीय संगोष्ठी के पहले दिन अपने विचार रखे।

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योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गुरु गोरखनाथ पर आधारित राष्ट्रीय गोष्ठी में सभी का स्वागत है। बहुत गूढ़ विषय पर मंथन के लिए आप सब यहां जमा हुए हैं। मेरे लिए यह विषय ज्यादा महत्वपूर्ण है। मैं पिछले 25 वर्ष से इस परंपरा से जुड़ा हूं। जब हम ऐसे महापुरुष के बारे में सोचते हैं। ऐसे में एक ओर सम्प्रदाय और आस्था का विषय होता है। दूसरा इतिहास और साहित्य का होता है। दोनों का समन्वय कभी होता है तो कभी नहीं हो पाता है। इस विषय में देश को जानने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गुरु गोरखनाथ ही नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे। वह शिव स्वरूप माने गए हैं। गुरु गोरखनाथ की मान्यता भारत के साथ पाकिस्तान, भूटान, नेपाल तथा म्यांमार में है। वह वहां की कई लोकगाथाओं में विद्यमान हैं। उनकी उपस्थिति इतिहास और साहित्य की दृष्टि में अलग-अलग कालखंड में है। गोरखपुर में पांच वर्ष पहले पाकिस्तान के नम्बर से फोन आता था। मैं फोन काट देता था। इसके बाद फिर सिंगापुर से एक सिख परिवार आया था। तब उन्होंने बताया कि पाकिस्तान गया था। जब मैं वहां गया तब पेशावर के पास पहाड़ी पर यात्रा चल रही थी। तब अचरज हुआ। तब मैं कॉल कर रहा था। गोरखनाथ से जुड़ाव पाकिस्तान में भी हैं। काठमांडू में आज भी मत्स्येन्द्रनाथ की पूजा होती है। मृगस्थली नेपाल में गोरक्षनाथ जी का मंदिर है। वहां पर रोज पूजा होती है।  गोरक्षनाथ जी ने देवीपाटन पाटेश्वरी मंदिर की स्थापना की थी।  भारत मे कोई प्रांत ऐसा नहीं, जहां गोरखनाथ जी की स्वीकारोक्ति ना हो। त्रिपुरा में 35 प्रतिशत आबादी गोरखनाथ की अनुयायी है। असम की 15 प्रतिशत आबादी गोरखनाथ की अनुयायी है। पूरे देश में नाथ परंपरा के मंदिर मठ और संत-अनुयायी मौजूद हैं। 

नेपाल में तीन कालखंड में उनकी उपस्थिति रही है। काठमांडू में मृगस्थली में एक समय राजा बौद्ध हो गए थे। तब गोरखनाथ खुद नेपाल गए। मान्यता है राजा ने उनकी भी उपेक्षा की। तब गुरु गोरखनाथ ने वहां मेघों को बांध दिया था। नेपाल में तब 12 वर्ष बारिश नहीं हुई थी। तब राजा ने माफी मांगी। आज तक इसको लेकर वहां हर वर्ष बड़ा आयोजन होता है।

उन्होंने कहा कि देवीपाटन में नाथ सम्प्रदाय का मंदिर है। यहां आज भी वासंतिक नवरात्र में नेपाल से हजारों श्रद्धालु आते हैं। नेपाल के दान से यह जुड़ाव है। 10 वीं शताब्दी में नवीन नेपाल की स्थापना गुरु गोरखनाथ ने की थी। वहां अभी भी गुरु जी के नाम से मुद्रा है। बंगाल, ओडिशा, त्रिपुरा में बड़ी आबादी नाथ सम्प्रदाय से जुड़ी हुई है। महाराष्ट्र में जब संत ज्ञानेश्वर ने ज्ञानेश्वरी लिखी थी। जब उनसे पूछा गया ज्ञान कहाँ से मिला है, तो उन्होंने कहा था कि उनको नाथ परम्परा से यह ज्ञान मिला था। 

उन्होंने कहा कि कोयम्बटूर में मेरे सम्प्रदाय से जुड़े लोग आए थे। मैं मिलने गया। सब लोग नाथ सम्प्रदाय से जुड़े थे। वहां भी लाखों की संख्या में अनुयायी थे। आप जिसे परिजात कहते हैं उसका एक नाम गोरख इमली भी है। मैं एक वैद्य से चर्चा कर रहा था। उन्होंने बताया कि किसी भी औषधि का अर्क होता है। अर्क की एक पद्धति है। गोरख इमली भी उससे जुड़ी है। एक पक्ष योग भी है। महर्षि पतंजलि ने योग का दर्शन दिया था। मगर गुरु गोरखनाथ को उसको शुद्धि के रूप में सभी के लिए जरूरी बताया था। उन्होंने इस प्रक्रिया के बारे में बताया था कि इसके सात आयाम हैं। योग के उच्च सोपान तक पहुंचने के लिए उन्होंने आयाम बनाया था। शरीर के सात साधन है। पहला शोधन, जिसमें षट्कर्म होते हैं। दृढ़ता दूसरा जिसमें आसन का अभ्यास। स्थिरता के लिए प्राणायाम, धैर्य। यही क्रियाएं अहम हैं। शरीर के चन्द्र और सूर्य के बीच समन्वय ही हठयोग है। गोरखनाथ कहते हैं कि मन की चंचल वृत्तियों को काबू करना मुश्किल है। इसी कारण आप प्राणों को साधकर प्राणायाम करें।

सीएम योगी आदित्यनाथ ने बताया कि मलिक मोहम्मद जायसी ने भी अपने यहां गोरखनाथ का मंदिर बनाया था। उनका दृष्टिकोण राष्ट्रप्रेम का रहा है। उनका कोई साम्प्रदायिक दृष्टिकोण नहीं है। जाति व भाषा का बंधन नहीं है। हर भाषा में उनका साहित्य मिलेगा। उनका साहित्य भरा पड़ा है। इसको संकलित करने की आवश्यकता है। हर एक स्तर पर आपको उनकी विद्यमानता देखने को मिलती है।


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