उत्तर प्रदेश की सियासत में कांग्रेस चलेगी नहले पर दहला, ब्राह्मण होगा मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार!
कांग्रेस संगठन में संदेश यही है कि पार्टी इतिहास दोहराते को हुए किसी ब्राह्मण को ही आगामी विधानसभा चुनाव में यूपी में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाएगी।
लखनऊ [जितेंद्र शर्मा]। उत्तर प्रदेश में अब तक अपने-अपने जातिगत वोटों को मुट्ठी में लिए बांहें चढ़ा विपक्षी दल अचानक ब्राह्मण वोट बटोरने को दौड़ पड़े हैं। समाजवादी पार्टी अपने यादव-मुस्लिम वोट बैंक तो बहुजन समाज पार्टी दलित-मुस्लिम गठजोड़ में ब्राह्मणों का बोनस वोट चाहती है। इसके लिए ही बड़ी से बड़ी परशुराम प्रतिमा की होड़ सामने है। भगवान परशुराम की प्रतिमा के इस पैंतरे से कांग्रेस कतई बेफिक्र है और नहले पर दहला मारने की रणनीति तैयार है। संगठन में संदेश यही है कि कांग्रेस इतिहास दोहराते हुए किसी ब्राह्मण को ही आगामी विधानसभा चुनाव में यूपी में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाएगी।
उत्तर प्रदेश जातिगत सियासत की राजधानी है, जहां जातीय समीकरणों से बनते-बिगड़ते खेल के कई उदाहरण हैं। इससे बखूबी वाकिफ सभी दल रह-रहकर यह मानते रहे हैं कि ब्राह्मण मतदाता जिसे समर्थन का तिलक लगाएंगे, सत्ता के सिंहासन पर उसके बैठने की संभावना बढ़ जाएंगी। इस समीकरण को साधकर सरकार बनाते रहने का कांग्रेस के पास लंबा अनुभव और इतिहास है। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत, उनके बाद सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, एनडी तिवारी और श्रीपति मिश्रा सहित कुल छह ब्राह्मण मुख्यमंत्री कांग्रेस ने बनाए।
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता मानते हैं कि 1991 तक यह वर्ग पूरी तरह से कांग्रेस के साथ था। फिर केंद्र में नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद से उत्तर प्रदेश में एनडी तिवारी को तवज्जो मिलना लगभग बंद हो गई। उसके बाद ब्राह्मण छिटक कर भाजपा के साथ चला गया। कांग्रेस ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और यह वोट बैंक पूरी तरह पंजे से फिसल गया। हां, 2017 के विधानसभा चुनाव में पूरी रणनीति के साथ काम हुआ। गुणा-भाग यह लगाया गया कि प्रदेश की 206 विधानसभा सीटों पर ब्राह्मणों का खासा प्रभाव है। इसे देखते हुए ही स्व. शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने संगठन पर मेहनत की और कांग्रेस खड़ी होती नजर आई, लेकिन आखिरी वक्त पर सपा से गठबंधन कर खुद ही अपना खेल बिगाड़ लिया।
अब जबकि भाजपा से ब्राह्मणों की नाराजगी प्रचारित कर सपा और बसपा ने परशुराम प्रतिमा लगवाने का दांव चला है तो कांग्रेस में भी अंदरखाने पूरी तैयारी पहले से चल रही है। अभी इस मोर्चे पर फ्रंट फुट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद खेल रहे हैं। वहीं, पार्टी संगठन को खड़ा करने की मेहनत कर रही है। एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि इस बार कांग्रेस ब्राह्मण को ही मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर चुनाव लड़ेगी।
कोरोना वायरस के संक्रमण काल के बाद ऐसी रैली होगी, जिसमें प्रदेश के हर ब्लॉक का प्रतिनिधित्व हो, तभी इसकी घोषणा की जाएगी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व प्रदेश महासचिव द्विजेंद्र राम त्रिपाठी कहते हैं कि ब्राह्मण कोई वोट बैंक नहीं, जो लालच में फंसकर वोट दे। उसे जहां सम्मान मिलेगा, वह वहीं जाएगा। प्रदेश प्रवक्ता बृजेंद्र कुमार सिंह कहते हैं कि ब्राह्मण का सम्मान किस दल ने रखा है, यह किसी से छिपा नहीं है। कांग्रेस ने छह ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाए। दूसरे दलों ने सिर्फ बातें की हैं और छला है।