Move to Jagran APP

यूपी में वोट बैंक की सियासत में उमड़ा विपक्ष का ब्राह्मण प्रेम, सपा-बसपा-कांग्रेस में रस्साकशी शुरू

Brahmin Politics in UP उत्तर प्रदेश में पिछड़ों दलितों और अल्पसंख्यकों के इर्द-गिर्द घूमती विपक्ष की राजनीति में अचानक बढ़ा ब्राह्मण प्रेम अनायास नहीं है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Mon, 10 Aug 2020 10:49 PM (IST)Updated: Tue, 11 Aug 2020 08:22 AM (IST)
यूपी में वोट बैंक की सियासत में उमड़ा विपक्ष का ब्राह्मण प्रेम, सपा-बसपा-कांग्रेस में रस्साकशी शुरू
यूपी में वोट बैंक की सियासत में उमड़ा विपक्ष का ब्राह्मण प्रेम, सपा-बसपा-कांग्रेस में रस्साकशी शुरू

लखनऊ, जेएनएन। लोकसभा के वर्ष 2014 और विधानसभा के वर्ष 2017 चुनाव में काफी हद तक जातिगत राजनीति की पुरानी जंजीरों को तोड़कर आगे बढ़े उत्तर प्रदेश को फिर पुराने सियासी बाड़े में घेरने की कवायद तेज हो गई है। जातियों को वोट बैंक बनाकर अपने समीकरण साधते रहे राजनीतिक दलों ने फिर पुराने ढर्रे पर ही चलने की कोशिशें शुरू की हैं, लेकिन इस बार केंद्र में 'ब्राह्मण' हैं। पहले कांग्रेस ने इन पर डोरे डाले, फिर समाजवादी पार्टी ने परशुराम की प्रतिमा का पांसा फेंका और अब बहुजन समाज पार्टी भी उन्हें रिझाने में जुट गई है।

loksabha election banner

उत्तर प्रदेश में पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों के इर्द-गिर्द घूमती विपक्ष की राजनीति में अचानक बढ़ा ब्राह्मण प्रेम अनायास नहीं है। वर्ष 2014 के बाद बदले हालात ने जातिवाद व संप्रदायवाद की गोटियां बिछाकर सत्ता हासिल करने के समीकरणों को बिगाड़ दिया है। पिछले तीन चुनावों (लोकसभा व विधानसभा) में भाजपा के पक्ष में दिखी ब्राह्मणों की एकजुटता ने विपक्ष की बेचैनी को बढ़ाया है। इस चिंता को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की नींव रखकर भाजपा ने और बढ़ा दिया है। न सिर्फ ब्राह्मण, बल्कि हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के खतरे ने विपक्ष को चौकन्ना कर दिया है। ऐसे में ध्रुवीकरण में जाति के जरिये छोटे-छोटे छेद करने की कोशिशें शुरू हुई हैं।

कांग्रेस कई महीनों से ब्राह्मण वोट बैंक की राजनीति के सहारे अपने पुराने दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण गठजोड़ को जिंदा करने को प्रयासरत है तो सपा ने भगवान परशुराम की बड़ी मूर्ति और शोध संस्थान की घोषणा कर सपने संजोना शुरू किया। इधर, ब्राह्मणों के आशीर्वाद से 2007 में पूर्ण बहुमत का प्रसाद पा चुकीं मायावती ने भी भगवान परशुराम की मूर्ति और अस्पताल की घोषणा कर इशारा कर दिया कि विपक्ष के इन तीनों दलों में इस वोट बैंक को लेकर खींचतान और बढ़ेगी।

विपक्षी राजनीतिक दलों में ब्राह्मण मतों को लेकर बेचैनी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि हाल में विकास दुबे जैसे बाहुबली की मुठभेड़ में मौत पर भी उसके 'ब्राह्मण' होने को ही हवा दी गई। एक दिन पहले मुख्तार के शूटर राकेश पांडेय उर्फ हनुमान पांडेय के एनकाउंटर को लेकर भी ऐसे ही प्रयास शुरू हुए हैं। ऐसे में भाजपा के लिए अपनी किलेबंदी को और मजबूत करने की चुनौती है। भाजपा के प्रदेश महामंत्री विजय बहादुर पाठक का कहना है कि दोनों की सरकारों में ब्राह्मणों का न सिर्फ उत्पीड़न हुआ, बल्कि अपमानित करने का भी कोई मौका नहीं छोड़ा गया। श्रम कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष सुनील भराला भी सपा-बसपा सरकार में ब्राह्मणों की उपेक्षा का आरोप लगाते हैं।

सपा-बसपा की सरकार बनने में रही अहम भूमिका : महज दस से 12 फीसद होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मत इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि चुनाव में ये ओपिनियन मेकर की भूमिका निभाते हैं। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान विभाग के सेवानिवृत्त प्रो. एसके चतुर्वेदी कहते हैं कि वर्ष 2007 में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार में इनकी भूमिका को सब देख चुके हैं। वर्ष 2012 में समाजवादी सरकार बनाने में अपर कास्ट विशेषकर ब्राह्मणों के समर्थन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

कांग्रेस का अधूरा ब्राह्मण कार्ड : वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले ब्राह्मण मुख्यमंत्री का नारा देकर अपने पुराने वोट बैंक की वापसी की कांग्रेस की कोशिशें समाजवादी पार्टी से गठबंधन के बाद धड़ाम हो गईं। नतीजा रहा कि कांग्रेस अपने न्यूनतम प्रदर्शन पर पहुंच गई। ब्राह्मण व दलित कांग्रेस का बेस वोट बैंक रहा है, लेकिन अब दोनों हाथ में नहीं हैं। अब ब्राह्मणों को पूर्व केंद्रीय मंत्री जतिन प्रसाद के जरिये जोड़ने की कोशिश हो रही है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.