भाजपा का पहला दांव, सपा के सामने सीट बचाने की चुनौती
बात सिर्फ एक सीट की नहीं है सवाल साख का है। भाजपा के लिए इसलिए क्योंकि देश-प्रदेश में सरकार चलाने वाली पार्टी ने पहली बार बरेली-मुरादाबाद शिक्षक एमएलसी चुनाव में अपना प्रत्याशी उतारा है। सपा के लिए इसलिए क्योंकि पार्टी के सामने सीट बचाने की चुनौती है।
बरेली, जेएनएन। बात सिर्फ एक सीट की नहीं है, सवाल साख का है। भाजपा के लिए इसलिए, क्योंकि देश-प्रदेश में सरकार चलाने वाली पार्टी ने पहली बार बरेली-मुरादाबाद शिक्षक एमएलसी चुनाव में अपना प्रत्याशी उतारा है। सपा के लिए इसलिए, क्योंकि पार्टी के सामने सीट बचाने की चुनौती है।
भाजपा प्रत्याशी डॉ. हरि सिंह ढिल्लो के लिए जिले के लिए नौ विधायक, एक मंत्री और एक सांसद जुटे हुए हैं। संगठन पहले ही निर्देश दे चुका है कि यह चुनाव विधानसभा और लोकसभा चुनाव जितनी गंभीरता से लड़ा जाएगा। यही वजह रही कि प्रदेश सरकार के मंत्रियों व प्रदेश स्तरीय पदाधिकारियों को चुनाव के लिए माहौल बनाने के लिए भेजा गया, स्थानीय जनप्रतिनिधियों को जिम्मेदारी सौंपी गई। यह माहौल पार्टी पदाधिकारियों के लिए इस वक्त भले ही ठंडी सांस लेने का मौका दे दे, मगर कहीं कसर रह गई तो कटघरे में सभी जिम्मेदार होंगे। यही वजह है कि सिर्फ सीट नहीं, इसे साख से जोड़ लिया गया है।
समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी संजय मिश्रा पिछला कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। शाहजहांपुर उनकी कर्मस्थली है, बरेली से सीधा जुड़ाव रहता है। पार्टी नेताओं से संतुलन बनाकर चलते हैं। अपने नेटवर्क पर भी भरोसा रखते हैं। बरेली मंडल से आगे चलकर मुरादाबाद तक कैसे खुद को संतुष्ट करेंगे, यह उनकी तैयारी का हिस्सा रहा होगा। जाहिर है कि उस क्षेत्र में उन्हें भाजपा के डॉ हरि सिंह ढिल्लो से चुनौती मिलेगी, क्योंकि वह उस क्षेत्र के रहने वाले हैं। ऐसे में उन्हें पार्टी का मजबूत सहारा चाहिए होगा। हालांकि वह दावा करते रहे हैं कि पिछले कार्यकाल में दोनों मंडलों में बराबर शिक्षकों के संपर्क में रहे हैं।
वोटर बढ़े तो चिंता भी
पिछली बार करीब १६ हजार वोटर बरेली- मुरादाबाद क्षेत्र में थे। इस बार इनकी संख्या बढ़कर करीब ३७ हजार हो गई है। ज्यादा वोटर यानी ज्यादा दौड़ और ज्यादा फिक्र। सभी प्रत्याशी के सामने यह स्थिति है।
भाजपा-सपा के बीच कांग्रेस व निर्दलीय भी
भाजपा प्रत्याशी डॉ. हरि सिंह ढिल्लो दो चुनाव लड़ चुके हैं। सपा प्रत्याशी संजय मिश्रा पिछला चुनाव जीत चुके हैं। ऐसे में भाजपा-सपा के अनुभवी प्रत्याशियों के बीच कांग्रेस व निर्दलीय विनय खंडेलवाल समेत अन्य प्रत्याशियों की चुनौती भी कम नहीं आंकी जा सकती। शिक्षकों के बीच रहकर लंबे समय से तैयारी कर रहे इन प्रत्याशियों के अपने दावे हैं, अपने आंकड़े हैं। भले ही सब जीतने के लिए लडऩे की बात कह रहे, मगर सियासी जोड़-घटाना बड़े दलों के प्रत्याशियों को नफा-नुकसान भी पहुंचाएगा।