चुनाव करीब आते ही लालटेन थामने की लगी होड़, RJD के रिंग में जुटने लगे उधार के पहलवान
सभी राजनीतिक पार्टियां बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई हैं। जिसमें राजद की लालटेन थामने के लिए नेताओं में होड़ लगी है। इसमें उधार के पहलवान भी जुगत में लगे हैं। जानिए
पटना [अरविंद शर्मा]। पिछले साल 26 जनवरी को राजद कार्यालय में विधायक तेजप्रताप यादव के जनता दरबार में कुछ पहलवान आए थे। उस दिन किसी वजह से दरबार नहीं लगा तो तेजप्रताप ने पहलवानों के बीच दंगल करा दिया। कुछ घंटों के लिए राजद कार्यालय अखाड़े में तब्दील हो गया। मामला लोकसभा चुनाव के पहले का था। अब विधानसभा चुनाव आने वाला है तो राजद के रिंग में फिर कई पहलवान उतरना चाह रहे हैं। कई उतर चुके हैं। कई लाइन में भी हैं।
जगदानंद सिंह के राजद के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से राजद का प्रदेश कार्यालय रोज गुलजार रहता है। दूसरे दलों के कई नेता मेजबान बनने की जुगत में मेहमान बनकर चक्कर लगा रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के पहले वरिष्ठ समाजवादी नेता शरद यादव और पूर्व सांसद अर्जुन राय सरीखे कई नेता राजद के सहारे मैदान में आए। यह अलग बात है कि उनमें से कोई भी संसद के दरवाजे तक नहीं पहुंच पाए।
विधानसभा चुनाव में भी राजद के वोट बैंक और सामाजिक आधार की गणना करते हुए कई नेता लालटेन थामने के लिए बेकरार हो रहे हैं। जदयू, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और रालोसपा समेत कई दरवाजे से होते हुए वृषिण पटेल ने भी समाजवाद का वास्ता देकर आखिर में राजद में दस्तक दी है। वह वैशाली क्षेत्र से राजद के टिकट के लिए टकटकी लगाए हुए हैं।
पूर्व मंत्री रमई राम और पूर्व स्पीकर उदय नारायण चौधरी सरीखे पुराने कद-पद वाले कई नेताओं ने तो लोकसभा चुनाव के दौरान ही लालू प्रसाद से उम्मीदें पाल रखी थीं। दोनों पहले ही जदयू छोड़कर राजद की शरण में आ चुके हैं। पार्टी की गतिविधियों में लगातार सक्रिय भी हैं। रमई राम को बोचहां क्षेत्र से लालू का आशीर्वाद चाहिए तो उदय नारायण चौधरी को कहीं से भी।
चौधरी की परंपरागत इमामगंज सीट से जीतनराम मांझी अभी विधायक हैं। इसलिए गठबंधन धर्म के चलते दावेदारी नहीं बनेगी। बाराचïट्टी की भी दावेदारी हो सकती थी किंतु उसपर अभी राजद की ही समता देवी हैं।
नरेंद्र सिंह के समाजवादी सपने
पूर्व मंत्री एवं जदयू के वरिष्ठ नेता नरेंद्र सिंह ने पिछले महीने रांची रिम्स जेल जाकर लालू प्रसाद से मुलाकात की है। जदयू में उनकी संभावनाएं कम दिखने लगी हैं। लिहाजा चुनाव के नजदीक आते ही उन्हें समाजवादी सपने आने लगे हैं। दिक्कत है कि उन्हें तीन सीटें चाहिए। एक अपने लिए और दो पुत्रों के लिए।
सुमित सिंह और अजय सिंह को भी चुनाव लड़ाना है। जमुई और चकाई सीटों पर कभी न कभी नरेंद्र सिंह एंड संस का कब्जा रहा है। किंतु अभी दोनों सीटें राजद की झोली में हैं। जमुई से विजय प्रकाश और चकाई से सावित्री देवी विधायक हैं।
ऐसे में नरेंद्र सिंह के साथ असमंजस की स्थिति है कि वह लालू प्रसाद से क्या मांगें? और किन शर्तों पर लालटेन थामें? पिछले साल जीतनराम मांझी का साथ छोड़कर नरेंद्र सिंह ने नीतीश कुमार का हाथ पकड़ा था और बांका संसदीय सीट पर दावेदारी की थी। नहीं मिली।