Bihar Assembly Elections : उस समय आरडीएस कॉलेज के छात्र आंदोलन ने हिला दी थी पटना की कुर्सी
Bihar Assembly Elections वर्ष 1967 में राज्य में महामाया प्रसाद सिन्हा के जिगर के टुकड़े का चला था जादू पहली बार बनी थी गैर कांग्रेसी सरकार। 1966 में कॉलेज के भौतिकी के प्राध्यापक प्रो. देवेंद्र प्रसाद सिंह के साथ पुलिस की बदसलूकी ने आंदोलन को दी थी हवा।
मुजफ्फरपुर, [ प्रेम शंकर मिश्रा]। देश में इमरजेंसी के खिलाफ जेपी का 1977 में छात्र आंदोलन शुरू हुआ तो कांग्रेस की सरकार सत्ता से बेदखल हो गई थी। मगर, बिहार में इससे पहले 1966 के छात्र आंदोलन ने पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार को सत्तासीन किया था। यहां महत्वपूर्ण यह कि आंदोलन की शुरुआत आरडीएस कॉलेज से हुई थी। कॉलेज के भौतिकी के प्राध्यापक डॉ. देवेंद्र प्रसाद सिंह के साथ पुलिस की बदसलूकी के बाद आंदोलन तेज हुआ। इसमें कॉलेज के अंदर पुलिस फायङ्क्षरग में एक छात्र व एक प्राध्यापक की मौत ने आग में घी का काम किया था। इसके बाद आंदोलन पूरे बिहार में फैल गया। नतीजा अगले वर्ष 1967 के चुनाव में पहली बार कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई। महामाया प्रसाद पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। मुजफ्फरपुर से महेश प्रसाद सिंह को हराकर 1952 में विधायक बने महामाया प्रसाद सिन्हा को उनके 'जिगर के टुकड़े' का भरपूर सहयोग मिला। ये शब्द वे छात्रों के लिए इस्तेमाल करते थे।
पुलिस की कार्यशैली का विरोध
इस घटना की दास्तान सुनाते हुए प्रो. देवेंद्र प्रसाद सिंह कहते हैं, 1966 में छात्रों के खिलाफ तत्कालीन कांग्रेस की सरकार का दमनकारी रवैया था। इससे छात्र आक्रोशित थे। इसे देखते हुए जिले में धारा 144 लगी थी। वे आरडीएस कॉलेज से घर ब्रह्मपुरा साइकिल से जा रहे थे। कलमबाग चौक पर पुलिस ने उन्हें रोका। कहा गया, अघोरिया बाजार होकर जाएं। उन्होंने इसका विरोध किया। इतने में एक पुलिसकर्मी ने उनकी साइकिल को धक्का दे दिया। वे गिर पड़े। इस घटना को कई छात्रों ने देख लिया। इसके अगले दिन आरडीएस कॉलेज में बैठक हुई। इसके बाद सैकड़ों की संख्या में छात्रों ने जुलूस निकाला। पुलिस इस जुलूस को रोकने के लिए कॉलेज परिसर में प्रवेश करना चाहती थी। इसे रोकने के लिए छात्रों की ओर से पथराव हुआ। पुलिस ने भी गोली चला दी।
प्रो. निगमानंद कुंअर व छात्र महेश शाही की मौत
गोली से युवा प्राध्यापक प्रो. निगमानंद कुंअर व छात्र महेश शाही की मौत हो गई। छात्रों ने दोनों शवों को पुलिस को नहीं लेने दिया। इस घटना की गूंज राजधानी पटना व पूरे बिहार में सुनाई दी। विपक्षी दल के नेताओं का दौरा हुआ। यह सिलसिला अगले वर्ष 1967 के चुनाव तक चलता रहा। महामाया प्रसाद सिन्हा हालांकि पटना पश्चिम से चुनाव लड़े। मगर, उन्होंने 'जिगर के टुकड़े' पर अत्याचार को चुनाव प्रचार में मुद्दा बनाया। मुजफ्फरपुर सीट से सीपीआइ के रामदेव शर्मा कांग्रेस उम्मीदवार एमएल शर्मा से चुनाव हार गए। मगर, अन्य सीटों पर विपक्षी उम्मीदवारों का बेहतर प्रदर्शन रहा। नतीजा केबी सहाय की कांग्रेस सरकार सत्ता से बेदखल हो गई। महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री बने और कर्पूरी ठाकुर उप मुख्यमंत्री। साथ ही आरडीएस कॉलेज को इसी वर्ष अंगीभूत भी कर दिया गया।