Ayodhya Land Dispute Case: मुस्लिम पक्ष ने विवादित भूमि पर मस्जिद का किया दावा, पेश किए दस्तावेज
Ayodhya Land Dispute Case में आज यानी 23वें दिन सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से जफरयाब जिलानी अपनी दलीलें रखेंगे। आइये जानते हैं इस हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में क्या दलीलें रखी गईं।
नई दिल्ली, माला दीक्षित। Ayodhya Land Dispute Case में आज 23वें दिन सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से जफरयाब जिलानी अपनी दलीलें रखीं। उन्होंने कहा कि साल 1934 से 1949 के बीच विवादित स्थल पर नियमित नमाज होती थी। इसके पक्ष में उन्होंने दस्तावेजों को भी पेश किया। उन्होंने कहा कि साल 1934 के सांप्रदायिक दंगों में वहां भवन क्षतिग्रस्त हुआ था। जिलानी ने पीडब्ल्यूडी की उस रिपोर्ट का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि पीडब्ल्यूडी ने भवन को पहुंचे नुकसान की मरम्मत कराई थी।
#Ayodhya राम जन्मभूमि मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील जफरयाब जिलानी दस्तावेजों के जरिए यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि 1934 से 1949 के बीच बाबरी मसजिद में नियमित नमाज़ होती थी।@JagranNews
— Mala Dixit (@mdixitjagran) September 13, 2019
कल यानी गुरुवार को इस मामले में 22वें दिन मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने अपना पक्ष रखा था। जिलानी ने मुख्य मामले की सुनवाई से पहले अपनी कानूनी टीम के क्लर्क को धमकी दिए जाने की बात कही। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री ने जो बयान दिया है वह अदालत की अवमानना है। चूंकि हमने पहले ही अवमानना को लेकर एक याचिका दाखिल की है, इसलिए दोबारा ऐसा मामला दाखिल नहीं करना चाहते हैं।
इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अदालत के बाहर ऐसे बयान दुर्भाग्यपूर्ण हैं और हम इसकी निंदा करते हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने साफ किया कि सभी पक्षकारों को यहां अपनी दलीलें रखने की पूरी आजादी है। सभी अपना पक्ष नि:संकोच रख सकते हैं। इसके बाद मुख्य मामले पर सुनवाई में धवन ने निर्मोही अखाड़े के दावे पर आपत्ति जताते हुए कहा कि सेवादार के अधिकार अलग हैं और ट्रस्टी के अधिकार अलग हैं। वो ट्रस्टी नहीं हैं, केवल सेवादार हैं।
मौजूदा मामले में 22-23 दिसंबर 1949 को एक गलती हुई जो कि 05 जनवरी 1950 को मजिस्ट्रेट का आदेश होने के बाद भी लगातार चलती रही और उसके आधार पर अधिकार सृजित होने लगे। यदि समय से पहले यानी छह साल पहले निर्मोही अखाड़े ने रिसीवर नियुक्त करने को चुनौती दी होती तो ठीक था, लेकिन उसने छह साल की तय समय सीमा के बाद चुनौती दी, इसलिए कब्जे और मालिकाना हक का उसका दावा नहीं बनता। उसकी याचिका खारिज की जानी चाहिए। इससे पहले धवन ने कहा था कि हिंदू पक्ष को साबित करना होगा कि 22-23 दिसंबर 1949 (जब अंदर मूर्तियां रखी गईं थी) के पहले क्या उनका वहां अधिकार था।
इससे पूर्व पिछली सुनवाई पर गोविन्दाचार्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने पिछले साल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया था। फैसले में शीर्ष अदालत ने महत्वपूर्ण संवैधानिक महत्व के मामलों की सुनवाई के लाइव प्रसारण की बात कही थी। याचिका में कहा गया है कि चूंकि यह देश का सबसे चर्चित मसला है और इसे संविधान पीठ सुन रही है, देश के लोग भी इसकी सुनवाई के बारे में जानना चाहते हैं, ऐसे में इसकी रिकॉर्डिंग कराई जानी चाहिए। फिलहाल, इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए 16 सितंबर की तारीख तय की है।