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जीते सिंधिया समर्थकों को मिला ताज लेकिन हारे हुए नेताओं को अब निगम और मंडलों में नियुक्ति से ही उम्‍मीद

न खुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम... ग्वालियर-चंबल अंचल में उपचुनाव हारने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया सात समर्थक पूर्व विधायकों का हाल कुछ ऐसा ही लगता है। चुनावी मैदान में जो हार मिली है उसने उनके राजनीतिक भविष्य संकट में डाल दिया है। पढ़ें यह रिपोर्ट...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Thu, 12 Nov 2020 11:03 PM (IST)Updated: Thu, 12 Nov 2020 11:03 PM (IST)
जीते सिंधिया समर्थकों को मिला ताज लेकिन हारे हुए नेताओं को अब निगम और मंडलों में नियुक्ति से ही उम्‍मीद
कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए नेताओं का राजनीतिक भविष्य संकट में है।

अजय रावत, ग्वालियर। न खुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम, न इधर के हुए न उधर के हुए। ग्वालियर-चंबल अंचल में उपचुनाव हारने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया सात समर्थक पूर्व विधायकों का हाल कुछ ऐसा ही लगता है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में रमने से पहले ही चुनावी मैदान में जो हार मिली है उसने उनके राजनीतिक भविष्य संकट में डाल दिया है। भाजपा में पूर्व में आए बड़े नेताओं का हश्र बताता है कि पार्टी में अपेक्षा अनुरूप पद न पाने और पार्टी की रीति-नीति समझने की लंबी प्रक्रिया में उलझकर उन्हें मूल पार्टी में वापसी की राह पकड़नी पड़ी।

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हारे हुए इन नेताओं को सरकार और ज्योतिरादित्य सिंधिया की कृपा से निगम-मंडलों में निुयक्ति पाने की राह भी आसान नहीं है क्योंकि इनके समानांतर अंचल में पहले से ही भाजपा के कई कद्दावर नेता पद की आस में हैं। उन्हें उपचुनाव में सिंधिया से अपने वादे की मजबूरी बताकर पार्टी ने शांत कराया था। भले ही ये पूर्व विधायक भाजपा में लगभग आठ माह पहले आ गए हो परंतु इसमें पांच माह कोरोना काल के चलते संगठन की रीति-नीति से वाकिफ नहीं हो सके। उसके बाद उपचुनाव में अपनी कोर टीम तक ही सीमित रहे।

बताया जाता है कि जो जीत गए उनका तो ताज बरकरार है, ऐसे में उनकी संगठन में पूछपरख और कार्यकर्ताओं से नजदीकियां बढ़नी तय है लेकिन संकट नए हारे हुए पूर्व विधायकों को लेकर है। भिंड में राकेश सिंह चौधरी विधायक रहते कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए। उन्हें पार्टी ने 2018 में भिंड से टिकट दिया पर हारने के बाद वे भाजपा में रम नहीं सके। लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने भाजपा छोड़ दी। अब वे कांग्रेस में वापसी का दावा करते हैं जबकि कांग्रेस ने अभी तक उन्हें सदस्यता तक नहीं दी है।

मुरैना में परशराम मुद्गल ने भी 2013 में विधायक रहते चुनाव से कुछ समय पहले भाजपा का दामन थामा लेकिन यहां न तो टिकट मिला न बड़ी जिम्मेदारी। मुरैना की दिमनी सीट पर भाजपा को हराने वाले रवींद्र तोमर बसपा से भाजपा में आए। 2013 तक टिकट की आस में टिके रहे जब अलग-थलग पड़े तो कांग्रेस में चले गए। ग्वालियर में पूर्व मंत्री बालेंदु शुक्ला भाजपा में आकर अलग-थलग ही बने रहे। पार्टी ने उन्हें राज्य सामान्य निर्धन वर्ग कल्याण आयोग का अध्यक्ष बनाया। उपचुनाव से पहले कांग्रेस में चले गए।

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ग्वालियर में मुन्ना लाल गोयल व इमरती देवी चुनाव हारी हैं। यहां पूर्व साडा अध्यक्ष जय सिंह कुशवाह, राकेश जादौन, पूर्व जिलाध्यक्ष देवेश शर्मा, डबरा से सहसारी भी पद के इंतजार में हैं। मुरैना जिले से ऐदल सिंह कंषाना, गिर्राज डंडौतिया, रघुराज सिंह कंषाना हारे हैं। इन्हें सरकार की कृपा मिलने के बीच पूर्व मंत्री रस्तम सिंह, मुंशीलाल खटीक, बंशीलाल जाटव, शिवमंगल सिंह तोमर व अशोक अर्गल भी तैयार बैठे हैं। भिंड के गोहद से रणवीर जाटव हारे हैं। यहां रालोसपा प्रदेशाध्यक्ष राजकुमार कुशवाह पद पाने के वादे पर ही भाजपा में आए हैं। यहां कोक सिंह नरवरिया, देवेंद्र नरवरिया राकेश शुक्ला, मुकेश चौधरी भी कतार में हैं। शिवपुरी में जसमंत जाटव विधायकी गंवा बैठे हैं, अब और कोई पद मिल सके इसमें बड़ी बाधा यशोधरा समर्थक पूर्व विधायक प्रहलाद भारती के अलावा नरेंद्र बिरथरे और रमेश खटीक रहेंगे। 


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