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Upper Caste Reservation: सवर्ण आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने की ये है बड़ी चुनौती

क्रीमी लेयर की शुरूआत 1990 के दशक में हुई थी। तब से अब तक इसकी सीमा में चार बार बढ़ोत्तरी हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी क्रीमी लेयर को लेकर अहम टिप्पणी की है।

By Amit SinghEdited By: Published: Wed, 09 Jan 2019 10:52 AM (IST)Updated: Thu, 10 Jan 2019 01:11 AM (IST)
Upper Caste Reservation: सवर्ण आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने की ये है बड़ी चुनौती
Upper Caste Reservation: सवर्ण आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने की ये है बड़ी चुनौती

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण (Upper Caste Reservation) देने के लिए संविधान संशोधन का बिल मंगलवार को लोकसभा में पास हो गया। सरकार के लिए आज (बुधवार को) राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत से इस बिल को पास कराने की चुनौती है। राज्यसभा में सरकार के पास बिल को पास कराने के लिए पर्याप्त बहुमत नहीं है। लिहाजा सरकार को राज्यसभा में काफी विरोध का सामना करना पड़ सकता है। विरोध सवर्ण आरक्षण के लिए निर्धारित क्रीमी लेयर (Creamy Layer) को लेकर हो सकता है, जिस पर बहस तेज हो गई है। ऐसे में आपके लिए भी जानना जरूरी है कि क्रीमी लेयर क्या है और सरकार के लिए ये किस तरह से चुनौती बन सकता है?

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क्या है क्रीमी लेयर?
फिलहाल क्रीम लेयर (Creamy Layer), अन्य पिछड़ा वर्ग में आरक्षण के लिए लागू है। इसकी सीमा आठ लाख रुपये है। इसका मतलब ये है कि सालाना आठ लाख रुपये से ज्यादा कमाने वाले परिवार को ओबीसी वर्ग के आरक्षण से बाहर कर दिया गया है। ऐसे में सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में ओबीसी के लिए आरक्षित 27 प्रतिशत सीटों का लाभ केवल वही लोग ले सकते हैं, जिनकी सालाना पारिवारिक आय आठ लाख रुपये से कम हो।

सवर्ण क्रीमी लेयर की चुनौती
सरकार ने अपने मौजूद बिल में सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण (Upper Caste Reservation) देने के लिए भी आठ लाख रुपये सालाना की आय सीमा निर्धारित की है। मतलब जिस परिवार की वार्षिक आय आठ लाख रुपये से ज्यादा है, वह Creamy Layer के दायरे में आएगा और इस आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकता। यही सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। दरअसल बहुत सी राजनीतिक पार्टियां और संगठन ओबीसी और सवर्ण आरक्षण के लिए आठ लाख रुपये सालाना की क्रीमी लेयर निर्धारित करने पर सहमत नहीं हैं।

चार बार बढ़ चुकी है क्रीमी लेयर की सीमा
क्रीमी लेयर (Creamy Layer) की शुरूआत 1993 में हुई थी। उस वक्त क्रीमी लेयर की सीमा एक लाख रुपये निर्धारित की गई थी। इसके बाद वर्ष 2004 में क्रीमी लेयर की आय सीमा बढ़ाकर 2.5 लाख रुपये कर दी गई। वर्ष 2008 में क्रीमी लेयर की सीमा 4.5 लाख रुपये कर दी गई। इसके बाद वर्ष 2013 में छह लाख रुपये और वर्ष 2017 में इसे बढ़ाकर आठ लाख रुपये कर दिया गया था।

12 लाख की मांग कर रहा ओबीसी
मालूम हो कि ओबीसी वर्ग पहले से ही अपनी क्रीमी लेयर (Creamy Layer) की सीमा 12 लाख रुपये सालाना करने की मांग कर रहा है। ओबीसी वर्ग 2012 से ही इसकी मांग कर रहा है। जानकारों के अनुसार आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण (Upper Caste Reservation) देने के लिए आठ लाख रुपये सालाना आय की सीमा निर्धारित करने के बाद ओबीसी वर्ग अपनी क्रीमी लेयर की सीमा बढ़ाने की मांग फिर से उठा सकता है। वर्ष 2018 में ही राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ने ओबीसी क्रीमी लेयर की आय सीमा दोगुने से अधिक बढ़ाकर 15 लाख रुपये सालाना करने की सिफारिश की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने उठाया था क्रीमी लेयर पर सवाल
वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति-जनजाति के प्रमोशन में आरक्षण मामले पर सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि जिस तरह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के अमीर लोगों को क्रीमी लेयर (Creamy Layer) के सिद्धांत के तहत आरक्षण से वंचित कर दिया गया, उसी तरह एससी-एसटी के अमीर लोगों को प्रमोशन में आरक्षण के लाभ से वंचित क्यों नहीं किया जा सकता है। मतलब सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण में भी क्रीमी लेयर लागू करने की जरूरत बताई थी।

ये थी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 2018 की सुनवाई के दौरान अपनी टिप्पणी में कहा था कि नौकरी के शुरुआत में आरक्षण का नियम तो ठीक है, लेकिन कोई व्यक्ति आरक्षण का लाभ लेकर राज्य का मुख्य सचिव बन जाता है तो क्या ये तर्कसंगत होगा कि उसके बच्चों को पिछड़ा मान कर नौकरी और प्रोन्नति में भी आरक्षण दिया जाए। इससे परिणामी वरिष्ठता भी मिलती है।

एससी-एसटी में क्रीमी लेयर क्यों नहीं?
वर्ष 2018 में प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद एससी-एसटी में क्रीमी लेयर (Creamy Layer) की बहस शुरू हो गई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों ने अपने वोट बैंक को बचाए रखने के लिए चुप्पी साध ली थी। कोई भी राजनीतिक दल इसके लिए तैयार नहीं है। आश्चर्य ये है कि कुछ दलित विचारक सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से सहमत थे। ऐसे ही एक दलित विचारक चंद्रभान के अनुसार दलितों में क्रीमी लेयर बनाना एक अच्छा फैसला साबित हो सकता है। इसका लाभ उन दलितों को मिलेगा, जो आरक्षण के लाभ से अब तक वंचित रह गए हैं। इससे उन्हें भी मुख्य धारा से जुड़ने का मौका मिलेगा।

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