Move to Jagran APP

इंदिरा गांधी के वो फैसले जिसकी वजह से उन्‍हें कहा गया 'आयरन लेडी', आप भी जानें

इंदिरा गांधी भारत की पहली ऐसी सशक्‍त महिला प्रधानमंत्री थीं, जिनके बुलंद हौसलों के आगे पूरी दुनिया ने घुटने टेक दिए थे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 30 Oct 2018 03:21 PM (IST)Updated: Thu, 01 Nov 2018 12:10 AM (IST)
इंदिरा गांधी के वो फैसले जिसकी वजह से उन्‍हें कहा गया 'आयरन लेडी', आप भी जानें
इंदिरा गांधी के वो फैसले जिसकी वजह से उन्‍हें कहा गया 'आयरन लेडी', आप भी जानें

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। इंदिरा गांधी की आज 34वीं बरसी है। इंदिरा गांधी का सक्रिय राजनीति में आना काफी बाद में हुआ। वह अपने पिता जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद राजनीति में आईं। उन्होंने पहली बार प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में सूचना और प्रसारण मंत्री का पद संभाला था। इसके बाद शास्त्री जी के निधन पर वह देश की तीसरी प्रधानमंत्री चुनी गईं। इंदिरा गांधी को वर्ष 1971 में भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था।

loksabha election banner

इंदिरा भारत के लिहाज से ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के परिप्रेक्ष्य में भी बेहद अहम थीं। अहम सिर्फ इसलिए नहीं कि वह भारत की पहली ऐसी सशक्‍त महिला प्रधानमंत्री थीं, जिनके बुलंद हौसलों के आगे पूरी दुनिया ने घुटने टेक दिए थे। यह उनके बुलंद हौसले ही थे जिसकी बदौलत बांग्‍लादेश एक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र के रूप में अस्तित्‍व में आया। भारत ने उनके ही राज में पहली बार अंतरिक्ष में अपना झंडा स्‍क्‍वाड्रन लीडर राकेश शर्मा के रूप में फहराया था।

इतना ही नहीं उन्‍होंने पंजाब में फैले उग्रवाद को उखाड़ फेंकने के लिए कड़ा फैसला लेते हुए स्‍वर्ण मंदिर में सेना तक भेजी। वह इंदिरा ही थीं, जिन्‍होंने भारत को परमाणु शक्ति संपन्‍न देश बनाने की ओर अग्रसर किया। राजनीतिक स्‍तर पर भले ही उनकी कई मुद्दों को लेकर आलोचना होती हो, लेकिन उनके प्रतिद्वंदी भी उनके कठोर निर्णय लेने की काबलियत को दरकिनार नहीं करते हैं। यही चीजें हैं जो उन्‍हें आयरन लेडी के तौर पर स्‍थापित करती हैं।

बुद्धा स्‍माइल

अमेरिका और दुनिया के बड़े देश 18 मई 1974 के उस दिन को कभी नहीं भूल सकते जब भारत ने राजस्‍थान के पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था। इस परीक्षण से दुनिया इतनी चकित रह गई थी कि किसी को यह समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्‍या किया जाए। यह परीक्षण भारत को परमाणु शक्ति संपन्‍न राष्‍ट्र बनाने की तरफ पहला कदम था। भारत ने जिस वक्‍त यह परीक्षण किया था, उस वक्‍त अमेरिका, वियतनाम युद्ध में उलझा हुआ था। लिहाजा भारत के परमाणु परीक्षण की तरफ उसका ध्‍यान उस वक्‍त गया, जब भारत ने खुद को परमाणु शक्ति संपन्‍न देश घोषित किया। अमेरिका के लिए इससे भी बड़ी चिंता की बात यह थी कि आखिर उसकी खुफिया एजेंसियों और सैटेलाइट को इसकी भनक कैसे नहीं लगी? वह वियतनाम युद्ध के बीच हुए इस परीक्षण को लेकर तिलमिलाया हुआ था। इस परीक्षण का नतीजा था कि अमेरिका ने भारत पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे। लेकिन तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इन सभी को एक चुनौती के तौर पर स्‍वीकार किया था।

बांग्‍लादेश की आजादी

1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच जंग और इंदिरा गांधी के साहसिक फैसले को दुनिया यूं ही नहीं याद रखती है। 1971 की लड़ाई के बाद दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश का उदय हुआ। तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान के शासक अपना हिस्सा नहीं मानते थे, बल्कि उपनिवेश के तौर पर देखते थे। पाकिस्तान की सेना अपने ही नागरिकों पर जुल्म ढा रही थी। इन सब हालात में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों और नेताओं ने भारत से मदद मांगी। इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने मदद देने का फैसला किया। इंदिरा गांधी ने तथ्यों का हवाला देकर बताया कि भारत सरकार का फैसला तर्कसंगत था। उनका कहना था कि उस समय चुप्पी का मतलब ही नहीं था। पूर्वी पाकिस्तान में सेना अत्याचार कर रही थी, पाकिस्तान की अपनी ही सेना अपने नागरिकों को निशाना बना रही थी। सेना के जवान पूर्वी पाकिस्तान की महिलाओं के साथ उनके बड़े बुजुर्गों के सामने ही दुष्कर्म कर रहे थे। अपने फैसले का बचाव करते हुए उन्होंने सवाल करने वाले से पूछा कि जब जर्मनी में हिटलर खुलेआम यहुदियों की हत्या कर रहा था तो उस वक्त पश्चिमी देश शांत तो नहीं बैठे। यूरोप के दूसरे देश हिटलर के खिलाफ उठ खड़े हुए। कुछ उसी तरह के हालात पूर्वी पाकिस्तान में बन चुके थे और उनके सामने दखल देने के अलावा और कोई चारा नहीं था। वो पूर्वी पाकिस्तान में नरसंहार होते हुए नहीं देख सकती थीं।

आपातकाल

भारतीय गणतंत्र की स्थापना के बाद तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को लगने लगा कि अब उनकी प्रजा उनके विरोध में उतर चुकी है, और लोगों के विरोध को दबाने के लिए आपातकाल की मदद ली। आपातकाल के समय देवकांत बरुआ कांग्रेस के अध्यक्ष थे। उन्होंने कहा था कि इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया। दरअसल, 1947 में देश को आजादी मिलने के बाद देश चलाने के लिए कुछ संवैधानिक व्यवस्थाएं बनाई गईं। उन्हीं व्यवस्थाओं में से एक खंड आपातकाल से संबंधित था। संविधान सभा में इस खंड को लेकर मतभेद थे लेकिन बाद में सहमति बनी कि सरकार, शासन और प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए कुछ निषेधात्मक उपाय होने चाहिए। डॉ भीम राव अंबेडकर का मानना था कि कानून का उपयोग और दुरुपयोग शासन में बैठे लोगों की नीयत पर निर्भर करता है। लेकिन जब रातों-रात इंदिरा ने आपातकाल की घोषणा की तो कहीं न कहीं अंबेडकर की कही बात सही साबित हुई।

श्रीलंका का मुद्दा

श्रीलंका में वर्षों से चले आ रहे तमिल संकट को देखते हुए इंदिरा गांधी ने एक बार फिर से ठोस कदम उठाया था। वह ब्रिटिश सेना द्वारा श्रीलंकाई सैनिकों को प्रशिक्षण देने के खिलाफ थीं। यही वजह थी कि इंदिरा ने अपनी ब्रिटिश समकक्ष मार्गरेट थैचर से यह गुजारिश की थी कि श्रीलंका सेना को ब्रिटेन प्रशिक्षण देना बंद कर दे। थैचर को लिखे पत्र में इंदिरा गांधी ने कहा था कि यदि ब्रिटेन को श्रीलंका की मदद करनी है तो वह राष्ट्रपति जेआर जयव‌र्द्धने से अपील करें कि वे सभी राजनीतिक दलों को साथ लेकर लिट्टे की समस्या का हल निकालें। दरअसल, भारत को संदेह था कि ब्रिटिश वायुसेना का विशेष दस्ता एसएएस श्रीलंकाई सेना को गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दे रहा है।

ऑपरेशन ब्लूस्टार

वो इंदिरा गांधी ही थी जिसने स्वर्णमंदिर में वर्ष 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार की इजाजत दी थी। यह कड़ा फैसला उन्‍होंने पवित्र स्‍‍थल से उग्रवादियों को बाहर निकालना था। जरनैल सिंह भिंडरावाला, कोर्ट मार्शल किए गए मेजर जनरल सुभेग सिंह और सिख सटूडेंट्स फ़ेडरेशन ने स्वर्ण मंदिर परिसर के चारों तरफ़ ख़ासी मोर्चाबंदी कर ली थी। उन्होंने भारी मात्रा में आधुनिक हथियार औ्र गोला-बारूद भी जमा कर लिया था। 1985 ई. में होने वाले आम चुनाव से ठीक पहले इंदिरा गाँधी इस समस्या को सुलझाना चाहती थीं। अंततः उन्होंने सिक्खों की धार्मिक भावनाएं आहत करने के जोखिम को उठाकर भी इस समस्या का अंत करने का निश्चय किया औ्र सेना को ऑपरेशन ब्लू स्टार करने का आदेश दिया। दो जून को हर मंदिर साहिब परिसर में हज़ारों श्रद्धालुओं ने आना शुरु कर दिया था क्योंकि तीन जून को गुरु अरजुन देव का शहीदी दिवस था।

उधर जब प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने देश को संबोधित किया तो ये स्पष्ट था कि सरकार स्थिति को ख़ासी गंभीरता से देख रही है और भारत सरकार कोई भी कार्रवाई कर सकती है। पंजाब से आने-जाने वाली रेलगाड़ियों और बस सेवाओं पर रोक लग गई, फ़ोन कनेक्शन काट दिए गए और विदेशी मीडिया को राज्य से बाहर कर दिया गया। तीन जून को भारतीय सेना ने अमृतसर पहुँचकर स्वर्ण मंदिर परिसर को घेर लिया। शाम में शहर में कर्फ़्यू लगा दिया गया। चार जून को सेना ने गोलीबारी शुरु कर दी ताकि मंदिर में मौजूद मोर्चाबंद चरमपंथियों के हथियारों और असलहों का अंदाज़ा लगाया जा सके। चरमपंथियों की ओर से इसका इतना तीखा जवाब मिला कि पांच जून को बख़तरबंद गाड़ियों और टैंकों को इस्तेमाल करने का निर्णय किया गया। पांच जून की रात को सेना और सिख लड़ाकों के बीच असली भिड़ंत शुरु हुई और जरनैल सिंह भिंडरावाला की मौत से खत्‍म हुआ। ब्रिटेन की तत्कालीन प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर ने इंदिरा गांधी को ब्रिटेन का पूरा समर्थन दिया था।

इंदिरा का आखिरी भाषण

30 अक्‍टूबर को दिए उनके आखिरी भाषण में भी इस बात को साफतौर पर देखा जा सकता है। इसमें उन्‍होंने कहा था कि "मैं आज यहां हूं, कल शायद यहां न रहूं। मुझे चिंता नहीं मैं रहूं या न रहूं। मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है। मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूँगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे खून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा।" 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.