जानें, आखिर वाराणसी से कांग्रेस ने पीएम मोदी के खिलाफ प्रियंका को क्यों नहीं बनाया प्रत्याशी?
कांग्रेस ने आखिर अपने तुरुप के इक्के को बेवजह खर्च होने से बचा लिया। वाराणसी से अजय राय को मैदान में उतार कांग्रेस अपने अपने इरादे साफ कर दिए हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। कांग्रेस ने आखिर अपने 'तुरुप के इक्के' को बेवजह खर्च होने से बचा लिया। वाराणसी से अजय राय को मैदान में उतार कांग्रेस अपने अपने इरादे साफ कर दिए हैं। कांग्रेस ने इरादा किया और कुछ हिम्मत भी जुटाई थी, लेकिन आखिर समय में पैर पीछे खींच लिए। हालांकि, कांग्रेस के थिंक-टैंक इस पक्ष में थे कि प्रियंका गांधी वाराणसी से पीएम मोदी को चुनौती दें। वे ऐसा अनुमान लगा रहे थे कि प्रियंका यहां बड़ा उलटफेर करने में सक्षम हैं। अगर कांग्रेस प्रियंका को मैदान में उतार देती, तो परिणाम क्या हो सकते थे, इसका अंदाजा प्रधानमंत्री मोदी के वाराणसी में हुए मैगा रोडशो से लग गया होगा।
आखिरकार ये साफ हो गया कि वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रियंका गांधी के बीच मुकाबला नहीं होने जा रहा है। ऐसी अटकलें लग रही थीं कि प्रियंका गांधी को कांग्रेस चुनावी दंगल में उतार सकती है। इस पर गंभीरता से विचार भी हो रहा था। प्रियंका के वाराणसी से चुनाव लड़ने के बयान पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने कहा था कि प्रियंका खुद ही इस बारे में साफ कर दिया है कि अगर पार्टी उनसे कहती है तो वह जरूर लड़ेंगी। जल्द ही पार्टी इस बारे में फैसला करेगी। कांग्रेस पार्टी इस बारे में अन्य लोगों के साथ सलाह मशविरे के बाद फैसला करेगी। अहमद पटेल ने माना था कि प्रियंका को चुनाव लड़ाने पर विचार किया जा रहा है।
इधर, लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के थिंक-टैंक का अहम हिस्सा, गांधी परिवार के करीबी पार्टी नेता सैम पित्रोदा का मानना था कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला करती, तो यह अच्छी बात होगी। उन्होंने कुछ दिनों पहले दैनिक जागरण को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि सबसे पहले तो यह प्रियंका गांधी का फैसला होगा। हम अपने विचार बोल सकते हैं। मगर चुनाव लड़ने या नहीं लड़ने का फैसला उन्हें लेना है। अगर वह चुनाव लड़ने का फैसला करती हैं तो अच्छी बात है। कांग्रेस पार्टी और उसके कार्यकर्ता बेहद उत्साहित होंगे। मैं आश्वस्त हूं कि देश भी उत्साहित होगा और एक बेहद जबरदस्त मुकाबला देखने को मिलेगा। वाराणसी के लोग उनके लिए कड़ी मेहनत करेंगे मगर यह निर्णय उनका होगा। पित्रोदा के बयान से साफ जाहिर होता है कि वह भी प्रियंका बनाम मोदी की चुनावी जंग के पक्ष में थे।
बड़ी वजह जिनकी वजह से कांग्रेस ने प्रियंका पर नहीं खेला दांव
- प्रियंका गांधी कांग्रेस पार्टी का बड़ा चेहरा हैं। राजनीति के जानकार उनमें कांग्रेस पार्टी का भविष्य देखते हैं। प्रियंका में लोगों को इंदिरा गांधी का छवि नजर आती है। ऐसे में लोगों को उनसे काफी उम्मीदें हैं। अगर प्रियंका गांधी अपने पहले चुनाव में ही हार जाती हैं, तो लोगों को काफी निराशा होगी। हार के बाद कांग्रेस को तो नुकसान होगा ही, प्रियंका को भी इस हार के भार से उबरने में लंबा समय लग सकता है।
- उत्तर प्रदेश से कांग्रेस के कई दिग्गज अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। गांधी परिवार से भी राहुल गांधी और सोनिया गांधी उत्तर प्रदेश से ही चुनाव लड़ते हैं। प्रियंका को भी कांग्रेस यूपी से ही चुनाव मैदान में उतारेगी, इसकी उम्मीद ज्यादा है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि प्रियंका का असर बनारस के आस-पास के इलाके, जौनपुर, मऊ और आज़मगढ़ में है। अगर प्रियंका चुनाव मैदान में उतरती, तो इन सीटों पर कांग्रेस का प्रभाव जरूर देखने को मिलता, लेकिन इन छोटे फायदों के लिए कांग्रेस को प्रियंका गांधी के रूप में बड़ी कीमत चुकानी पड़ती।
- प्रियंका के आने से कांग्रेस पार्टी में मजबूती आई है, इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है। पार्टी के कार्यकताओं में भी कुछ जोश आया है, इसमें भी कोई दो राय नहीं। इससे लोकसभा चुनाव 2019 और आगे आने वाले चुनावों में कांग्रेस को फायदा जरूर होगा। हालांकि, प्रियंका अगर पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव हार जातीं, तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं में निराशा छा जाती, जिससे पार्टी को अगामी चुनाव में नुक्सान उठाना पड़ सकता था। इस बात को कांग्रेस थिंक-टैंक ने जरूर सोचा होगा।
- साल 2014 में जब पीएम मोदी के सामने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने चुनाव लड़ा था, तब आम आदमी पार्टी जीत के बड़े-बड़े दावे कर रही थी। केजरीवाल ने पीएम मोदी को वाराणसी से टक्कर दी और वे दूसरे नंबर पर रहे। लेकिन वोट का अंतर देखने के बाद जो तस्वीर सामने आई, उससे लोगों को अहसास हो गया कि पीएम मोदी के खिलाफ केरीवाल ने उतरकर बड़ी गलती कर दी। दरअसल, पूरे विपक्ष को भी इतने वोट नहीं मिले थे, जितने अकेले पीएम मोदी को मिले थे। तब नरेंद्र मोदी को करीब 5.8 लाख वोट मिले थे, दूसरे नंबर पर रहे केजरीवाल को लगभग 2,50,000 और तीसरे नंबर पर कांग्रेस के अजय राय को सिर्फ 75 हज़ार वोट मिले थे। इन आंकड़ों पर गौर करने के बाद भी कांग्रेस को अहसास हो गया होगा कि प्रियंका वाराणसी में कितने पानी में हैं।
फिर इसे भी झुठलाया नहीं जा सकता है कि भारतीय राजनीति में बड़े चेहरों के सामने बड़ा उम्मीदवार उतारने का चलन नहीं रहा है। आमतौर पर पार्टियां विपक्ष के बड़े नेताओं के सामने अपना मजबूत उम्मीदवार नहीं उतारती हैं। फिर चाहे, वो सोनिया गांधी हों, श्यामा प्रसाद मुखर्जी हों या फिर अटल बिहारी वाजपेयी। ऐसे में कांग्रेस ने भी प्रियंका को पीएम मोदी के खिलाफ न उतारकर इस परंपरा को कायम रखा है।