राज्यपाल धनखड़ से यूं ही सतर्क नहीं हैं ममता, जानें वकालत से सियासत तक के सफर की कहानी
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राज्यपाल की सक्रियता को यूं ही नहीं अपने अधिकारों में दखल और केंद्र सरकार की साजिश के रूप में देख रही हैं। जानें धनखड़ के सियासी सफर की पूरी कहानी...
विशाल श्रेष्ठ, कोलकाता। बंगाल की राजनीति इन दिनों दो लोगों के इर्दगिर्द घूम रही है। ये दो शख्सियतें हैं राज्यपाल जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी। धनखड़ राज्यपाल की सामान्य छवि से एकदम अलग नजर आ रहे हैं- सक्रिय और बेबाक। उनके इस अंदाज ने राज्य में सरकार बनाम राज्यपाल की स्थिति पैदा कर दी है। आइये जानें सुर्खियों में छाए राज्यपाल धनखड़ के बेबाक व्यक्तित्व के बारे में...
सुर्खियों में छाए धनखड़
बंगाल सरकार ने पिछले दिनों यह आरोप लगाते हुए विधानसभा को दो दिन स्थगित कर दिया कि राज्यपाल ने अहम विधेयकों पर दस्तखत नहीं किए हैं। राज्यपाल ने जवाब दिया कि उनके पास कोई बिल लंबित नहीं है। खबर राष्ट्रीय सुर्खी बनी और जब अगले दिन राज्यपाल विधानसभा में प्रवेश करना चाहते थे तो उन्हें वीआइपी गेट बंद मिला। मजबूरी में उन्हें सामान्य गेट से अंदर जाना पड़ा। गेट के बाहर खड़े राज्यपाल की यह तस्वीर भी मीडिया में छाई रही।
बाकियों से अलग करता है यह अंदाज
दरअसल, मुखर मिजाज, आक्रामक शैली और त्वरित निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता 68 वर्षीय धनखड़ को पिछले राज्यपालों से अलग करती है। वह राज्य के संवैधानिक प्रमुख की भूमिका को नया आयाम देना चाहते हैं। खुद को राजभवन के आलीशान कमरों व सभा-समारोहों में फीते काटने तक सीमित रखना नहीं चाहते, बल्कि राज्य के कोने-कोने में जाकर जनप्रतिनिधियों व जनता से मिलना चाहते हैं।
केंद्र की साजिश के तौर पर देख रहीं ममता
ममता की पहचान भी अपनी बात आक्रामक तरीके से रखने वाले राजनेता की है। सियासत की उनकी अपनी शैली है और राजनीति को जानने-समझने वाले लोगों को पता है कि ममता की जिद दूर तक जाती है। वह राज्यपाल की सक्रियता को अपने अधिकारों में दखल और केंद्र सरकार की साजिश के रूप में देख रही हैं।
न तो रबर स्टांप हूं, ना ही पोस्ट ऑफिस
धनखड़ को करीब से जानने वाले बताते हैं कि सैनिक स्कूल से शिक्षा ग्रहण करने के कारण अनुशासन, दृढ़ निश्चय व नेतृत्व क्षमता जैसे गुण उनमें बचपन से भरे हुए हैं। वह एक बार जो निश्चय कर लेते हैं, उससे पीछे नहीं हटते। त्वरित निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता के साथ ही किसी भी विषय पर त्वरित प्रतिक्रिया देना उनके व्यक्तित्व का विशेष गुण हैं। हाल ही में उन्होंने बेबाकी से कह दिया कि वह न तो रबर स्टांप हैं और न ही पोस्ट ऑफिस।
औचक दौरे के लिए भी मशहूर
धनखड़ औचक दौरे के लिए भी मशहूर हैं। बंगाल में राज्यपाल का पदभार संभालने के बाद ऐसे कई मौके देखे गए जब वह अचानक से कहीं पहुंच गए हों। फिर चाहे जादवपुर विश्वविद्यालय पहुंचकर आंदोलनकारी छात्र-छात्रओं के बीच फंसे केंद्रीय राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो को छुड़ाकर लाना हो, सुबह ट्रैक सूट में विक्टोरिया मेमोरियल जाकर प्रात: भ्रमणकारियों से मुलाकात करना हो या फिर ममता बनर्जी की पार्टी के नेता और हावड़ा के पूर्व मेयर रथिन चक्रवर्ती की मां के निधन की खबर पाकर उनके घर जाकर सांत्वना देना हो- राज्यपाल ने हर बार चौंकाया है।
अपनी माटी से गहरा जुड़ाव
धनखड़ से मुलाकात कर चुके लोग उन्हें भारी-भरकम शरीर में बसने वाला नरम मिजाज इंसान करार देते हैं। धनखड़ मिलनसार और सुलझे हुए इंसान हैं भी। वह लोगों से गर्मजोशी से मिलते हैं। 18 मई, 1951 को राजस्थान के झुंझनूं जिले के छोटे से गांव किथाना में जन्मे धनखड़ का अपनी माटी से गहरा जुड़ाव है। उनके व्यक्तित्व में राजस्थानी संस्कृति की गहरी छाप दिखती है।
वकालत से सियासत तक का सफर
गांव के स्कूल में प्राथमिक शिक्षा के बाद सैनिक स्कूल, चितौडगढ़ और फिर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से आगे की पढ़ाई की। फिजिक्स में बीएससी (ऑनर्स) के बाद एलएलबी की पढ़ाई की। अपने जन्मस्थल झुंझनूं से वह 1989 से 1991 तक जनता दल के सांसद भी रहे हैं। उसी दौरान उन्होंने केंद्रीय मंत्री का भी पदभार संभाला। 1993 से 1998 तक राजस्थान की किशनगढ़ विधानसभा सीट से विधायक भी रहे। राजस्थान हाई कोर्ट बार एसोसिएशन का अध्यक्ष पद भी बखूबी संभाल चुके हैं। धनखड़ बंगाल की संस्कृति से भी खासे प्रभावित हैं।