वाजपेयी के एक रुख की वजह से अमेरिका के आगे बचने के लिए गिड़गिड़ाया था पाक
जब वाजपेयी के एक रुख ने पाकिस्तान के पसीने छुड़ा दिये थे। डर के मारे तत्कालीन पाक प्रधानमंत्री ने अमेरिका के आगे भारत से बचा लेने की भीख मांगी थी।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। मृत्यु जीवन का अटूट सत्य है। जो आया है उसको जाना ही होगा, फिर चाहे हम हों या कोई और। ऐसा मुमकिन है कि हम दुनिया से विदा हों तो हमें दूसरे तो छोड़ो अपने भी याद न करें, लेकिन कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें अपने ही नहीं दूसरे भी याद रखते हैं। ऐसे ही थे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी। आम इंसान के तौर पर बात करें तो न हम कभी मिले ने ही कभी दूर से ही उन्हें देखा, लेकिन उनसे एक भावनात्मक रिश्ता कभी टूटा ही नहीं। उनका ऐसा रिश्ता सिर्फ अकेले मुझसे नहीं बल्कि लाखों लोगों के साथ रहा है। शायद यही वजह है कि अब जब वह हमारे बीच नहीं हैं तो एक शून्यता का अहसास जरूर हो रहा है। आपको भी शायद याद होगा कारगिल युद्ध जब वाजपेयी के एक रुख ने पाकिस्तान के पसीने छुड़ा दिये थे। डर के मारे तत्कालीन पाक प्रधानमंत्री ने अमेरिका के आगे भारत से बचा लेने की भीख मांगी थी।
कोई सवालिया निशान नहीं
बहरहाल, अटल जी की बात करें तो उनकी आम लोगों में लोकप्रियता पर कभी कोई प्रश्नचिंह नहीं लगा सकता। उनकी छवि राजनीति और सार्वजनिक जीवन में बेदाग रही है। नेता चाहे सरकार के हों या विपक्ष के सभी उन्हें आदर करते थे। उनकी कुश्लता और चपलता का लोहा हर कोई मानता था। यही वजह थी कि जब केंद्र में नरसिम्हा के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी, तब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में बोलने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी का ही नाम तय किया था।
जब नेता प्रतिपक्ष के तौर पर पहुंचे यूएन
इसकी जानकारी खुद वाजपेयी ने एक बार सदन में दी थी। उनका कहना था कि जब वह संयुक्त राष्ट में पहुंचे तो हर किसी की जुबान खासतौर पर पाकिस्तान के नेताओं में यह चर्चा खासा जोर पकड़ रही थी आखिर भारत सरकार ने नेता प्रतिपक्ष को कैसे अपनी बात रखने के लिए चुना और यहां पर भेजा। उन्होंने इस बात पर यह कहते हुए चुटकी भी ली कि कई नेताओं ने उनसे यहां तक कहा कि एक राजनीतिक साजिश के तहत ही उन्हें संयुक्त राष्ट्र भेजा गया है। यदि वहां पर सफलता मिली तो नरसिम्हा अपनी पीठ थपथपाएंगे और यदि हार मिली तो इसका ठीकरा उनके ऊपर फोड़ देंगे। हालांकि उन्होंने कभी इन विचारों को नहीं माना। उनका कहना था कि पाकिस्तान के नेता इस बात को लेकर भी हैरान थे कि उनके यहां पर विपक्ष के नेता का वजूद कुछ नहीं होता है और भारत का नेता प्रतिपक्ष सरकार का पक्ष रखता है।
अटल से जुड़े कई किस्से
अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन में इस तरह का कोई एक वाकया नहीं बल्कि अनेक किस्से हैं जो उन्हें दूसरों से अलग करते हैं। वह न कभी सरकार में रहते हुए विपक्ष के नेताओं के कुछ अच्छे कदमों पर उनकी प्रशंसा थकते थे और न ही अपने नेताओं की गलतियों पर उनकी आलोचना करने से चूकते थे। उनकी सरकार में मंत्री रहे रविशंकर प्रसाद इस बात को भलीभांति समझते हैं। कंधार कांड के दौरान जब सरकार ने आतंकियों को छोड़ने के ऐवज में बंधकों को छुड़ाने का फैसला लिया तो कई नेताओं ने उनकी कड़ी निंदा की। लेकिन उनके लिए अटल का जवाब बेहद सीधा था। इतना ही नहीं पोखरण में जब भारत ने दूसरी बार अपना दम दिखाया तब भी उन्हें कुछ नेताओं की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था।
आलोचना और तारीफ करने में सबसे आगे
इस पर उन्होंने सदन में कड़ी नाराजगी भी जताई थी। उनका कहना था कि सरकार देश की सुरक्षा के हित में जो होगा वह कदम उठाएगी और वही उन्होंने किया भी। उनका कहना था किजब इंदिरा गांधी ने पोखरण में पहली बार परमाणु परीक्षण किया था तब विपक्ष में रहते हुए उन्होंने इसकी सराहना की थी। विपक्ष को लेकर उनकी सीधी राय थी कि वह सरकार को आइना दिखाने में सहायक होता है। सिर्फ आलोचना करना ही विपक्ष का काम नहीं होना चाहिए। अटल उन नेताओं में से थे जिन्होंने पंडित नेहरू हों या फिर इंदिरा गांधी यदि आलोचना की तो उनके सामने की। यूं तो राजनीति में इंदिरा और अटल का छत्तीस का आंकड़ा था लेकिन जब 1971 में पाकिस्तान की सेना ने भारतीय सेना के सामने घुटने टेके तो वह इंदिरा को दुर्गा कहने से नहीं चूके थे। वह पहले ऐसे गैर कांग्रेसी पीएम थे जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया था। इतना ही नहीं वह शायद ऐसे भी पहले पीएम थे जिन्हें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कहा था कि वह भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान में भी चुनाव जीतने का माद्दा रखते हैं। कहने का अर्थ सिर्फ इतना ही है कि अटल की छवि पूरी तरह से वैश्विक थी।
संसद में पहली एंट्री से लेकर कारगिल तक
1957 में उन्होंने पहली बार संसद भवन में एंट्री ली थी और 16 मई 1996 में वह पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने। ऐसे समय में जब नेता राजनीति से दूर नहीं होना चाहते थे तब उन्होंने खुद 2005 में सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा की थी। 1977 में संयुक्त राष्ट्र में विदेश मंत्री के तौर पर उन्होंने पहली बार हिंदी में ही भाषण देकर देश का डंका बजाया था। दूरसंचार क्रांति की बात हो या फिर बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के लिए कानून बनाना या फिर कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान को अंदर घुस कर ढेर करने या फिर वायुसेना को इसके लिए आदेश देने की बात, सभी के लिए अटल बिहारी वाजपेयी को हमेशा याद रखा जाएगा। कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को भारत से बचने के लिए अमेरिका के सामने गिड़गिड़ाना तक पड़ गया था। कहा तो यहां तक जाता है कि भारत उस वक्त पाकिस्तान पर परमाणु हमला करने तक का मन बना चुका था।
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