तीन राज्यों में जीत भी Congress को नहीं दिला सकी यूपी के 'गठबंधन' में जगह
तीन बड़े हिंदी भाषी राज्यों में Congress की जीत के बाद भी SP-BSP ने उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को लेकर जो बेरूखी दिखाई है, उससे पार्टी को झटका लगा है।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव में बड़ी जीत के बाद भी कांग्रेस को उत्तरप्रदेश में गठबंधन के सियासी रथ में बैठने की जगह नहीं मिल पायी है। सपा और बसपा के गठबंधन का हिस्सा नहीं बन पाने के बाद कांग्रेस के पास अब अकेले लोकसभा चुनाव में जाने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं रह गया है।
गठबंधन की शनिवार को होगी औपचारिक घोषणा
तीन बड़े हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस की जीत के बाद भी सपा और बसपा ने उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को लेकर जो बेरूखी दिखाई है, उससे पार्टी को झटका लगा है। इस सियासी झटके से उबरने के लिए पार्टी ने उत्तरप्रदेश में बदली रणनीति के तहत उन सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है जहां कांग्रेस का आधार कम से कम एक लाख या उससे ज्यादा रहा है। हालांकि आधिकारिक तौर पर कांग्रेस अभी सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की ताल ठोकती रहेगी।
कांग्रेस के सियासी गलियारों में मायूसी
सपा-बसपा गठबंधन का लखनऊ में शनिवार को होने जा रहे ऐलान की आधिकारिक घोषणा के बाद कांग्रेस के सियासी गलियारों में मायूसी दिखी। पार्टी रणनीतिकारों ने अनौपचारिक चर्चा में माना कि माया-अखिलेश के इस रुख का संकेत पांच राज्यों के चुनाव के हफ्ते भर बाद ही मिल गया था। इसीलिए कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ने के लिए सीटों और उनके संभावित उम्मीदवारों की पहचान का काम शुरू कर दिया था।
सपा-बसपा ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं
पार्टी का एक वर्ग आखिरी क्षण तक माया-अखिलेश के साथ गठबंधन की हिमायत करते हुए इसके लिए प्रयासरत भी रहा। मगर सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस के लिए पांच-छह सीटों से ज्यादा देने को कभी तैयार नहीं हुए। जबकि कांग्रेस को दर्जन भर से कम सीट मंजूर नहीं थी। वैसे भी सपा-बसपा ने भविष्य में कांग्रेस के साथ दोस्ती की गुंजाइश बनाए रखने के लिए अमेठी और रायबरेली की कांग्रेस की सीट पर चुनाव नहीं लड़ने के इरादे साफ कर दिए हैं।
सियासी दबाव बनाने की कोशिश
उत्तरप्रदेश में गठबंधन में कांग्रेस को जगह नहीं मिलने का संकेत भांपने के तत्काल बाद राहुल गांधी ने सपा और बसपा पर चंद दिनों पहले ही यह कहते हुए सियासी दबाव बनाने की कोशिश भी कि सूबे में कांग्रेस की ताकत को नजरअंदाज करना भूल होगी। राहुल ने इस बयान के जरिए यह संदेश देने का प्रयास किया कि कांग्रेस उत्तरप्रदेश में अकेले लड़ी तो उसका नुकसान सपा और बसपा को भी होगा।
अकेले चुनाव में जाना ही फायदेमंद
वैसे उत्तरप्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ पार्टी के केंद्रीय नेताओं का एक वर्ग शुरू से इस बात की पैरोकारी कर रहा था कि गठबंधन में सम्माजनक सीटें नहीं मिलेगी तो कांग्रेस के लिए अकेले चुनाव में जाना ही मुफीद होगा। उनका तर्क था कि ऐसे में सूबे के साथ हर जिले में पार्टी का संगठन बना और बचा रहेगा।
अकेले चुनाव में दमखम दिखाने की चुनौती
वहीं दर्जन भर से अधिक ऐसी सीटें हैं जहां कांग्रेस अपने उम्मीदवारों की क्षमता और चुनाव में बनने वाले समीकरणों के सहारे जीतने में पूरी तरह सक्षम है। ऐसे नेताओं में खासकर वे लोग शामिल हैं जिन्हें गठबंधन की स्थिति में अपनी लोकसभा सीटें जाने का खतरा ज्यादा था। अब जब गठबंधन की गुंजाइश ही नहीं रही तो उत्तरप्रदेश के कांग्रेस नेता ही नहीं पार्टी हाईकमान भी अकेले चुनाव में दमखम दिखाने की चुनौती कहीं ज्यादा बड़ी हो गई है।