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जेएनयू के दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति बोले, शिक्षा प्रणाली में है बदलाव की जरूरत

उपराष्ट्रपति ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत को एक समय विश्व गुरु माना जाता था। अब समय आ गया है कि देश एक बार फिर शिक्षण के वैश्विक केंद्र के रूप में उभर कर सामने आए।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Mon, 11 Nov 2019 11:19 PM (IST)Updated: Mon, 11 Nov 2019 11:23 PM (IST)
जेएनयू के दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति बोले, शिक्षा प्रणाली में है बदलाव की जरूरत
जेएनयू के दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति बोले, शिक्षा प्रणाली में है बदलाव की जरूरत

नई दिल्ली, जेएनएन। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के तीसरे दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने 430 छात्रों को पीएचडी की उपाधि प्रदान की। इस मौके पर उन्होंने भारत को ज्ञान एवं नवाचार का अग्रणी केंद्र बनाने के लिए शिक्षण से लेकर अनुसंधान तक की समूची शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव पर जोर दिया।

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उपराष्ट्रपति ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत को एक समय विश्व गुरु माना जाता था। अब समय आ गया है कि देश एक बार फिर शिक्षण के वैश्विक केंद्र के रूप में उभर कर सामने आए। विश्वविद्यालयों एवं उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा की विधियों में पूरी तरह से बदलाव लाया जाना चाहिए। जेएनयू के साथ-साथ देश के अन्य विश्वविद्यालयों को भी शीर्ष रैंकिंग वाले वैश्विक संस्थानों में शामिल होने के लिए अथक प्रयास करने चाहिए।

वैश्विक एजेंडे का नेतृत्व करने की क्षमता हमारा लक्ष्य

उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय संस्कृति ने हमेशा शिक्षा के समग्र एकीकृत दृष्टिकोण पर विशेष जोर दिया है। जेएनयू जैसे विश्वविद्यालयों से देश की ताकत और कौशल स्तर को बढ़ाना चाहिए। इसके लिए सर्वागीण उत्कृष्टता और वैश्विक एजेंडे का नेतृत्व करने की क्षमता हमारा लक्ष्य होना चाहिए। उन्होंने देश के उच्च शिक्षण संस्थानों से विश्व के सर्वोत्तम संस्थानों से सीखने और सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने का अनुरोध किया।

उन्होंने कहा कि एक सभ्यता के रूप में हम सबसे ग्रहणशील समाजों में से एक हैं, जिसने विश्व भर के अच्छे विचारों का स्वागत किया है। भारत विकास के अनूठे पथ पर अग्रसर है। इस प्रयास में योगदान करने के लिए छात्रों के पास अनंत अवसर हैं। देश की आबादी में दो तिहाई युवा ही हैं, इसलिए गुणवत्तापूर्ण कौशल विकास और उच्च शिक्षण सुविधाओं तक उनकी पहुंच निश्चित तौर पर होनी चाहिए।

ज्ञान एवं विवेक का करते रहें उपयोग 

उपराष्ट्रपति ने छात्रों को याद दिलाया कि वे महान संस्कृति और एक बहुलवादी एवं समग्र वैश्विक दृष्टिकोण के उत्तराधिकारी हैं। इस विरासत के उत्कृष्ट पहलुओं की अच्छी समझ विकसित कर उनका संरक्षण और व्यापक प्रचार-प्रसार करें। छात्रों को अपने आस-पास रहने वाले लोगों के जीवन स्तर को बेहतर करने के लिए निरंतर अपने ज्ञान एवं विवेक का उपयोग करते रहना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि महिलाओं के साथ-साथ हाशिये पर खड़े छात्रों के लिए विशेष दाखिला नीति अपनाने के लिए जेएनयू की सराहना की। उन्होंने दसवीं तक की शिक्षा मातृभाषा में देने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमें अपनी मातृभाषा में प्रारंभिक स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चों को अतिरिक्त प्रोत्साहन देना चाहिए। इस अवसर पर मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, जेएनयू के कुलाधिपति विजय कुमार सारस्वत और कुलपति प्रो. एम जगदीश कुमार समेत अन्य अधिकारी मौजूद थे।


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