Jagran Forum: स्मृति ईरानी बोलीं, महिलाओं की जिंदगी का सबसे बड़ा बोझ है खौफ
स्मृति ईरानी ने जोर देकर कहा, महिला सशक्तिकरण सुलझे समाज की ताकत है। परिपक्व प्रजातंत्र में सभी को अपने विचार रखने का पूरा हक है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने महिला सशक्तिकरण पर कहा कि खौफ जिंदगी में सबसे बड़ा बोझ है। परिवार में लड़कियों को हर चीज से डराने की आदत बदलनी होगी। हालांकि समाज में बदलाव आया है। दिल्ली के निर्भया कांड के दौरान बेटियों के साथ ही पिता और भाई भी आंदोलन करने के लिए इंडिया गेट पर खड़े रहते थे। सशक्तिकरण महिला का अधिकार है। संविधान महिला और पुरुष को समानता का अधिकार देता है। उन्होंने जोर देकर कहा, 'महिला सशक्तिकरण सुलझे समाज की ताकत है। परिपक्व प्रजातंत्र में सभी को अपने विचार रखने का पूरा हक है।'
कपड़ा मंत्री ईरानी शुक्रवार को यहां 'दैनिक जागरण' के हीरक जयंती पर आयोजित जागरण फोरम में बोल रही थीं। नारी सशक्तिकरण और महिला वोट बैंक विषय पर विस्तार से बोलते हुए उन्होंने महिलाओं की दशा और दिशा का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2009 के संसदीय चुनाव तक महिलाओं को सिर्फ वोट बैंक के तौर पर देखा गया था।
ईरानी अपना औपचारिक भाषण देने के बजाय महिलाओं से जुड़े मुददों पर लोगों के सवालों का जवाब दे रही थीं। सबरीमाला मंदिर में एक खास आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी और सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर पूछे गए सवाल पर ईरानी ने कहा कि उनका कोई अलग विचार नहीं है। मंदिर में प्रवेश के लिए अनुशासन की जरूरत है।
तत्काल तीन तलाक पर पूछे गए सवाल पर केंद्रीय मंत्री ईरानी ने कहा, 'मैं कैबिनेट का हिस्सा हूं। सरकार के फैसले में मेरी राय शामिल है।' उन्होंने सामने बैठी भाजपा की महिला नेता शाजिया इल्मी का नाम लेते हुए कहा कि इसके बारे में इल्मी से पूछा जा सकता है? उन्होंने कहा कि महिलाओं का इस्तेमाल कर उन्हें त्याग नहीं सकते। इसकी एक संवैधानिक प्रक्रिया है। मोदी ने महिलाओं के न्याय और सम्मान के बारे में सोचा। इस तरह का फैसला लेने का माद्दा उन्हीं में है।
एक अन्य सवाल पर कपड़ा मंत्री ने कहा कि बच्चों के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए सजा-ए-मौत का कानून तो है, लेकिन इस तरह के अपराध रोकने के लिए सामाजिक संस्कार होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि सिर्फ संवैधानिक आजादी नहीं, बल्कि जिम्मेदारी के बारे में भी सोचना चाहिए। कन्या भ्रूण हत्या को ईरानी ने एक मनोवैज्ञानिक चुनौती करार दिया और कहा, 'यह एक सोच है, जिसे बदलने की जरूरत है। इसका ताल्लुक शिक्षा, संपन्नता और और रुतबे से नहीं होता।'