मोदी कैबिनेट ने सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या बढ़ाई, जम्मू-कश्मीर में आर्थिक आरक्षण लागू
केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर में आर्थिक आधार 10 फीसदी आरक्षण को मंजूरी दे दी है। इसके अलावा कैबिनेट ने सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या बढ़ाने का फैसला किया है।
नई दिल्ली, एएनआइ। अब जम्मू-कश्मीर में आर्थिक आधार पर कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 10 फीसद आरक्षण मिलेगा। केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को इसकी मंजूरी दे दी। आर्थिक रूप से पिछड़े वे लोग इस आरक्षण का लाभ ले सकेंगे जिनकी सालाना कमाई 8 लाख रुपये से कम है। देशभर में पहले ही सरकार ने 10 प्रतिशत आरक्षण को लागू किया हुआ है। कैबिनेट ने इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के जजों की संख्या बढ़ाने का फैसला लिया। इसके अलावा कैबिनेट ने चिट फंड्स (संशोधन) विधेयक, 2019 को संसद में पेश करने की मंजूरी दी है। इसकी जानकारी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने दी।
जावड़ेकर ने इस दौरान यह भी बताया 'हमने मॉस्को में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की एक तकनीकी संपर्क इकाई स्थापित करने का निर्णय लिया है। इकाई रूस और पड़ोसी देशों में पारस्परिक तालमेल परिणामों के लिए अंतरिक्ष एजेंसियों और उद्योगों के साथ सहयोग करेगी।'मंत्रिमंडल ने शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण और उपयोग में सहयोग पर ISRO और बोलिवियाई अंतरिक्ष एजेंसी के बीच समझौता ज्ञापन को मंजूरी दी।
सुप्रीम कोर्ट के जजों की संख्या बढ़ाने का फैसला
केंद्रीय कैबिनेट ने सुप्रीम कोर्ट के जजों की संख्या बढ़ाने का फैसला लिया है। पहले सुप्रीम कोर्ट में 30 जज थे अब ये संख्या 33 (चीफ जस्टिस के अलावा) कर दी गई है। उन्होंने बताया कि साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट की जजों की संख्या 30 से बढकर 33 हो गई है। इस दौरान हाई कोर्ट में इसकी 10 फीसद बढ़ोतरी हुई है। मोदी सरकार में जजों की संख्या 906 से बढ़ाकर 1079 कर दी।
सीजेआई ने न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने के लिए कहा था
अभी शीर्ष न्यायालय में सीजेआई समेत 31 न्यायाधीश हैं। उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) कानून, 1956 आखिरी बार 2009 में संशोधित किया गया था जब मुख्य न्यायाधीश के अलावा न्यायाधीशों की संख्या 25 से बढ़ाकर 30 की गई थी। मंत्रिमंडल का यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जब भारत के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर शीर्ष न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने के लिए कहा था।
जजों की कमी से संवैधानिक पीठों का गठन नहीं हो रहा था
सीजेआई ने कहा था कि न्यायाधीशों की कमी के कारण कानून के सवालों से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों में फैसला लेने के लिए आवश्यक संवैधानिक पीठों का गठन नहीं किया जा रहा। उन्होंने लिखा, 'आपको याद होगा कि करीब तीन दशक पहले मामलों का शीघ्र निस्तारण करने के लिए उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 18 से बढ़ाकर 26 की गई और फिर एक बार 2009 में दो दशक बाद सीजेआई समेत न्यायाधीशों की संख्या 31 कर दी गई।
इतने मामले लंबित
विधि मंत्रालय के आंकड़े बताते है कि शीर्ष न्यायालय में अभी 59,331 मामले लंबित पड़े हैं। ऐसे में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि मौजूदा वक्त की जरुरत है, जिसे सरकार ने गंभीरता से लिया है। इतिहास बताता है कि सबसे पहले उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) कानून, 1956 में मूल रूप से न्यायाधीशों की संख्या 10 (सीजेआई के अलावा) तय की गइ थी।
उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) संशोधन कानून, 1960 द्वारा यह संख्या बढ़ाकर 13 कर दी गई और 1977 में 17 कर दी गई। हालांकि, मंत्रिमंडल ने 1979 के अंत तक उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या प्रधान न्यायाधीश के अलावा 15 तक सीमित कर दी। लेकिन भारत के प्रधान न्यायाधीश के अनुरोध पर यह सीमा हटा दी गई। साल 1986 में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या सीजेआई के अलावा बढ़ाकर 25 कर दी गई। इसके बाद उच्चतम न्यायालय संशोधन कानून, 2009 में यह संख्या बढ़ाकर 30 कर दी गई।
जावेड़कर ने यह भी बताया कि चेयरमैन ने स्पष्ट किया कि राज्यसभा में मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में अंतिम दो साल में जो दस बिल में आए थे उनमें से 8 को स्थायी समिति (standing committee) के पास भेजा गया था। इसे लेकर अभी तक कोई स्थायी समितियां नहीं बनी हैं, क्योंकि पार्टियों को नाम देना बाकी है। स्थायी समितियों के अभाव में पहले भी ऐसा हो चुका है।
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