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गुजराल की सलाह मान लेते नरसिम्‍हा राव तो सिख नरसंहार से बचा जा सकता था: मनमोहन सिंह

पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने Kहा कि अगर वर्ष 1984 में पूर्व गृह मंत्री नरसिंहराव ने गुजराल की बात मान ली होती तो सिख दंगा नहीं हुआ होता।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 04 Dec 2019 10:50 PM (IST)Updated: Thu, 05 Dec 2019 10:16 AM (IST)
गुजराल की सलाह मान लेते नरसिम्‍हा राव तो सिख नरसंहार से बचा जा सकता था: मनमोहन सिंह
गुजराल की सलाह मान लेते नरसिम्‍हा राव तो सिख नरसंहार से बचा जा सकता था: मनमोहन सिंह

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पूर्व पीएम और गुजराल डॉक्टरीन के रचयिता इंद्र कुमार गुजराल को बुधवार को उनकी जन्मशती पर देश के जाने माने राजनेताओं ने भावभानी श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1984 के सिख दंगों को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि अगर तत्कालीन गृह मंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने इंद्र कुमार गुजराल की सलाह मानी होती तो दिल्ली में सिख नरसंहार से बचा जा सकता था।  पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें नैतिकता पर चलने वाला राजनीतिज्ञ बताया।

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यदि गुजराल की सलाह राव ने मान ली होती तो 1984 में सिख दंगे नहीं होते

पूर्व पीएम सिंह ने सीधे तौर पर वर्ष 1984 में हुए सिख दंगे का नाम तो नहीं लिया, लेकिन परोक्ष तौर पर उसके पीछे के दर्द को उजागर भी किया। उन्होंने कहा कि वर्ष 1984 के उसे बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद गुजराल स्वयं तत्कालीन गृह मंत्री नरसिम्हा राव के यहां गये और कहा कि स्थिति बेहद गंभीर है। गुजराल ने राव को तत्काल सेना बुलाने का सुझाव भी दिया जिसे नहीं माना गया। अगर वह मान लिया जाता तो एक और दुर्भाग्यपूर्ण घटना होने से रोका जा सकता था। उन्होंने भी गुजराल डॉक्टरीन का जिक्र किया और बताया कि गुजराल ने स्वयं उन्हें बताया था कि इसे चीन व पाकिस्तान के अलावा अन्य पड़ोसियों पर लागू किया जाना चाहिए।

विदेश मंत्री जयशंकर ने गुजराल को गुरु के तौर पर किया याद

गुजराल के नेतृत्व में विदेश सेवा में अपना कैरियर शुरु करने वाले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उन्हें बेहतरीन गुरु के तौर पर याद किया। दूसरी तरफ पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. कर्ण सिंह ने गुजराल के व्यक्तित्व के एक दूसरे पहलू को उजागर किया कि वह एक हिंदी कविता और उर्दू शायरी के बेहतरीन शौकीन थे, साथ ही फैज अहमद फैज, साहिर लुधियानवी और अमृता प्रीतम के बेहद करीबी मित्र थे।

प्रणब मुखर्जी ओर गुजराल के बीच दोस्ती का सिलसिला

मुखर्जी जब पहली बार पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की सरकार में बतौर राज्य मंत्री शामिल किये गये थे तब गुजराल कैबिनेट मंत्री थे और तभी से उनके बीच दोस्ती का एक सिलसिला शुरु हुआ था। मुखर्जी ने बताया कि गुजराल चाहते तो वर्ष 1997-98 में डीएमको को बाहर करके अपनी सरकार बचा सकते थे, लेकिन उन्होंने नैतिकता के आधार पर इसके लिए तैयार नहीं हुए और उसके बाद जो हुआ वह सब जानते हैं।

गुजराल एक कुशल कूटनीतिज्ञ थे- मुखर्जी

मध्यावधि चुनाव करवाया गया और भाजपा (एनडीए) 180 से ज्यादा सीटें जीत कर सत्ता में वापस आई। मुखर्जी ने गुजराल को एक बेहद कुशल कूटनीतिज्ञ के तौर पर भी चिन्हित किया और उनके गुजराल डॉक्टरीन को सही परिप्रेक्ष्य में पेश किया। गुजराल की मंशा यह थी कि भारत अपने से छोटे पड़ोसियों के प्रति ज्यादा दोस्ताना दिखाए। उन्होंने बांग्लादेश के साथ हुए गंगा जल बंटवारा समझौता कराने में बेहद अहम योगदान दिया। इसके लिए वाम दलों को मनाना सिर्फ गुजराल ही कर सकते थे।

गुजराल के पांच वर्षो के कार्यकाल में भारत में चार सरकारें बनी

विदेश मंत्री जयशंकर ने बताया कि जब गुजराल सोवियत रुस में भारत के राजदूत थे तभी उन्होंने दूतावास से अपने कैरियर की शुरुआत की। वह न सिर्फ बेहद अनुशासनप्रिय थे बल्कि अपने सहयोगियों का भी बहुत ख्याल रखते थे। हमेशा सभी को गाईड करने के लिए तैयार रहते थे। उनकी कार्यक्षमता को इस बात से समझा जा सकता है कि उनके पांच वर्षो के कार्यकाल में भारत में चार सरकारें बनी। उन्होंने सोवियत रूस के साथ भारत के रिश्तों को जो स्थायित्व दिया उसकी बानगी अभी तक देखी जा सकती है। आज भी भारत व रुस के बीच जैसा रिश्ता है वैसा दुनिया के बहुत ही कम देशों में देखने को मिलता है जो समय के हर पड़ाव पर खरा उतरा है।


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