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राजस्थान की इन 10 हाई प्रोफाइल सीटों पर होगी नजर, आज आएगा चुनाव परिणाम

शुक्रवार को पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम मंगलवार को सामने आ जाएंगे। सबसे दिलचस्प मुकाबला राजस्थान का होगा, जहां चुनाव से ठीक पहले की उलट फेर हुए।

By Amit SinghEdited By: Published: Mon, 10 Dec 2018 06:50 PM (IST)Updated: Tue, 11 Dec 2018 08:27 AM (IST)
राजस्थान की इन 10 हाई प्रोफाइल सीटों पर होगी नजर, आज आएगा चुनाव परिणाम
राजस्थान की इन 10 हाई प्रोफाइल सीटों पर होगी नजर, आज आएगा चुनाव परिणाम

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव सात दिसंबर (शुक्रवार) को संपन्न हो चुके हैं। मंगलवार (11 दिसंबर) को इनके परिणाम सामने आ जाएंगे। सुबह सात बजे से मतगणना शुरू हो जाएगी। ऐसे में मंगलवार का पूरा दिन सियासी गर्मी से भरपूर रहेगा। राजनीतिक पार्टियों के साथ राजस्थान के वोटरों और पूरे देश की सबसे ज्यादा नजर होगी राजस्थान की दस हाई प्रोफाइल सीटों पर। इन सीटों पर मुकाबला कांटे का है और पार्टी सहित उम्मीदवारों की व्यक्तिगत साख भी दांव पर लगी है। हम आपको बतातें हैं कि क्यों महत्वपूर्ण हैं राजस्थान की ये दस सीटें।

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राजस्थान विधानसभा चुनाव-2018 की 199 विधानसभा सीटों पर कुल 2,274 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा है। इसमें इंडियन नेशनल कांग्रेस से 194, भारतीय जनता पार्टी से 199 उम्मीदवार, बहुजन समाज पार्टी से 189, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से एक, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से 16, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से 28 और 817 उम्मीदवार गैर मान्यता प्राप्त दलों के प्रत्याशी हैं। इसके अलावा चुनाव मैदान में 830 निर्दलीय उम्मीदवार भी किस्समत आजमा रहे हैं। राजस्थान में विधानसभा की कुल 200 सीटें हैं, लेकिन चुनाव से ठीक पहले अलवर जिले की रामगढ़ सीट से लड़ रहे बसपा उम्मीदवार लक्ष्मण सिंह की प्रचार के दौरान दिल का दौरा पड़ने से अचानक मौत हो गई थी। लिहाजा इस सीट पर चुनाव टाल दिया गया था।

झालरापाटनः राजस्थान में सबसे महत्वपूर्ण है झालरापाटन की सीट। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का इस सीट पर वर्ष 2003 से कब्जा है। कांग्रेस ने इस सीट पर भाजपा छोड़कर पार्टी में आए मानवेंद्र सिंह को राजे के खिलाफ उतारा है। मानवेंद्र सिंह, भाजपा के कद्दावर नेता रहे जसवंत सिंह के बेटे हैं। राजस्थान की 199 सीटों में से तकरीबन 50 सीटों पर राजपूतों का दबदबा झालरापाटन इनमें से एक है। इस सीट पर राजपूत, वसुंधरा राजे के पारंपरिक वोटर माने जाते हैं, लेकिन मानवेंद्र सिंह के मैदान में उतरने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है। पद्वाति फिल्म के खिलाफ धरना प्रदर्शन करने वाली करणी सेना द्वारा मानवेंद्र सिंह को समर्थन देने से टक्कर कांटे की हो गई है।

टोंकः राजस्थान में टोंक की सीट दूसरी सबसे महत्वपूर्ण है। इस पर मुकाबला कांग्रेस के सचिन पायलट और भाजपा के युनूस खान के बीच है। भाजपा ने इस सीट पर पहले वर्तमान विधायक अजीत सिंह मेहता को उतारा था। कांग्रेस द्वारा इस सीट पर सचिन पायलट को उतारने से समीकरण बदल गए। लिहाजा भाजपा ने मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर अजीत सिंह की जगह वसुंधरा कैबिनेट में नंबर दो की हैसियत रखने वाले युनूस खान को टिकट दे दिया। हालांकि इस सीट पर सचिन पायलट को नवाबों का साथ मिला हुआ है, जिनका यहां दबदबा है। नवाबी खानदान में तकरीबन 8500 सदस्य हैं।

सरदारपुराः जोधपुर जिले में आने वाली सरदारपुरा विधानसभा सीट तीसरी सबसे महत्वपूर्ण सीट है। इस सीट पर कांग्रेस की तरह से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मैदान में हैं। बीजेपी ने इस सीट से भाजपा नेता शंभू सिंह खेतासर को उतारा है। पिछली बार भी दोनों उम्मीदवारों ने यहां से मुकाबला किया था। अशोक गहलोत की ये परंपरागत सीट मानी जाती है। इस सीट पर वर्ष 2013 में 2911 लोगों ने नोटा का बटन दबाया था। इस बार चुनाव आयोग ने यहां नोटा का प्रचार ही नहीं किया। पिछले वर्ष इस सीट पर अशोक गहलोत ने महज 529 वोटों से शंभू सिंह को हराया था। 1967 से अब तक हुए 11 विधानसभा चुनावों में से कांग्रेस ने सात, भाजपा ने दो और अन्य ने दो बार जीत दर्ज की है।

सांगानेरः जयपुर जिले के सांगानेर विधानसभा सीट पर मुकाबला वर्तमान विधायक व भारत वाहिनी पार्टी के प्रत्याशी घनश्याम तिवाड़ी, भाजपा के अशोक लाहोटी और कांग्रेस के पुष्पेंद्र भारद्वाज के बीच है। इस सीट पर कुल 29 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं। 2013 के विधानसभा चुनाव में घनश्याम तिवाड़ी ने भाजपा के टिकट पर कांग्रेस के संजय बापना को 65350 मतों से शिकस्त दी थी। 2008 में भी बीजेपी के टिकट पर घनश्याम तिवाड़ी ने इस सीट पर 32912 मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी। घनश्याम तिवाड़ी के पार्टी बदलने से यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।

सपोटराः इस सीट पर भाजपा की तरफ से राज्यसभा सांसद डॉ किरोड़ी लाल मीणा की पत्नी गोलमा देवी मीणा चुनाव मैदान में हैं। इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी रमेश मीणा से उनकी कांटे की टक्कर होगी। वर्ष 2013 में मोदी लहर के वक्त भी रमेश मीणा ने भाजपा के ऋषिकेश मीणा को हरा इस सीट पर जीत दर्ज की थी। 2008 में भी इस सीट पर रमेश मीणा का कब्जा था। गोलमा देवी दो बार विधायक और एक बार मंत्री रह चुकी हैं। हालांकि उनका चुनावी क्षेत्र राजगढ़-लक्ष्मगढ़ रहा है।

नाथद्वाराः इस सीट पर ब्राह्मण, राजपूत और गुर्जर समुदाय का दबदबा है। ये सीट कांग्रेस उम्मीदवार सीपी जोशी की परंपरागत सीट रही है। वह इस पर चार बार 1980, 1985, 1998 और 2003 में चुनाव जीत चुके हैं। 2008 के चुनाव में उन्हें महज एक वोट से भाजपा के कल्याण सिंह चौहान के सामने हार का सामना करना पड़ा था। इस बार मैदान में सीपी जोशी के सामने भाजपा के महेश प्रताप सिंह हैं। महेश प्रताप की करीब 11 साल बाद पार्टी में वापसी हुई है। वह शेखावत सरकार में मंत्री रहे। वह शिवदान सिंह के भतीजे हैं, जिन्होंने वर्ष 1990 में सीपी जोशी को इस सीट पर हराया था।

उदयपुर सिटीः इस सीट पर बीजेपी सत्ता में बने रहने और कांग्रेस वापसी का प्रयास कर रही है। इस सीट पर प्रदेश के गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया भाजपा की तरफ से चुनाव मैदान में हैं। यहां कटारिया के पार्टी के पुराने साथी रहे शांतिलाल चपलोत, मांगीलाल जोशी और दलपत सुराणा एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हो गए हैं। पुराने साथियों के अलावा कटारिया के सामने कांग्रेस की उम्मीदवार गिरिजा व्यास भी बड़ी चुनौती हैं। 2013 चुनाव में कटारिया ने इस सीट पर कांग्रेस नेता दिनेश श्रीमाली को हराया था। उदयपुर सिटी की सीट इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उदयपुर लोकसभा सीट का अहम हिस्सा है।

खींवसरः खींवसर विधानसभा क्षेत्र में निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल इस बार भी सबसे मजबूत प्रत्याशियों हैं। यहां भाजपा ने रामचंद्र उत्ता तो कांग्रेस ने सवाईसिंह चौधरी को चुनाव मैदान में उतारा है। वर्ष 2013 के चुनाव में इस सीट पर निर्दलीय हनुमान बेनीवाल ने भाजपा के दुर्ग सिंह को हराया था। हनुमान बेनीवाल भाजपा के पुराने नेता हैं। 2008 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर ही इस सीट से चुनाव जीता था। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से उनकी नहीं बनी, लिहाजा उन्होंने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का गठन कर विधानसभा चुनावों में ताल ठोंकी है। उनकी पार्टी से कुल 65 उम्मीदवारों ने अलग-अलग सीटों पर नामांकन किया है। माना जा रहा है कि बेनीवाल इस बार कांग्रेस और भाजपा दोनों का खेल बिगाड़ेंगे।

चूरूः मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर 12 प्रत्याशी मैदान में हैं। यहां भाजपा ने पंचायती राज मंत्री राजेन्द्र राठौड़ और कांग्रेस ने रफीक मण्डेलिया पर दांव खेला है। अपने मंत्री की साख बचाने के लिए भाजपा ने यहां पूरी ताकत झोंक दी थी। वर्ष 2013 में राजेन्द्र राठौड़ ने बीजेपी (80,100 मत) के टिकट पर कांग्रेस (60,098 मत) के हाजी मकबूल मण्डेलिया को 20,002 मतों से हराया था। इससे पहले 2008 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार हाजी मकबूल ने भाजपा के हरलाल सहारण को शिकस्त दी थी।

राजाखेड़ाः राजाखेड़ा विधानसभा सीट पर कुल आठ प्रत्याशी चुनाव मैदान मे हैं। यहां से भाजपा के अशोक शर्मा और कांग्रेस के रोहित वोहरा चुनाव मैदान में हैं। इस सीट पर 2013 के चुनाव में कांग्रेस के प्रद्युम्न सिंह ने भाजपा के विवेक सिंह वोहरा को हराया था। विवेक सिंह, प्रद्युमन सिंह के पुत्र हैं, जिन्होंने 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की थी। दूसरे नंबर पर भाजपा के विवेक वोहरा रहे थे। विवेक वोहरा ने हाल ही में भाजपा का साथ छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया था। इसलिए इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प हो चुका है। यही वजह है कि यहां राहुल गांधी, राजनाथ सिंह और वसुंधरा राजे ने भी चुनावी सभा की थी।

राजस्थान चुनाव में जातीय समीकरण
अब तक के चुनावी इतिहास के अनुसर यदि किसी जाति का 10 फीसद वोट बैंक भी बन रहा है तो यह जीत-हार के लिए बहुत है। प्रदेश में कुल 272 जातियां हैं। इनमें 51 फीसद अन्य पिछड़ा वर्ग (इसमें 91 जातियां हैं, जिनमें जाट नौ फीसदी, गुर्जर पांच फीसद, माली चार फीसद), 18 फीसद अनुसूचित जाति (59 उप-जातियां हैं, जिनमें मेघावत छह फीसद, बैरवा तीन फीसद), 13 फीसद अनुसूचित जनजाति (12 उप-जातियां हैं जिनमें मीणा सात फीसद, भील चार फीसद) और 18 फीसद अन्य (ब्राह्मण सात फीसद, राजपूत छह फीसद, वैश्य चार फीसद) से आते हैं। राज्य की राजनीति में जाट, मीणा, राजपूत और ब्राह्मण काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं। चुनाव का फैसला लगभग इन्हीं जातियों पर निर्भर रहता है। इसका कारण प्रदेश की जनसंख्या में इनका एक-तिहाई हिस्सा होना है।


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