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पेगासस साफ्टवेयर के जरिये मोबाइल फोन में घुसपैठ करते हुए जासूसी करने से जुड़ा सच आए सामने

पेगासस प्रोजेक्ट बम ऐसे समय पटका जब संसद का मानसून सत्र आरंभ होना था। लिहाजा पिछले सात वर्षो से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार से मुंह की खा रहे विपक्ष को हंगामे का हथियार मिल गया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 21 Jul 2021 09:40 AM (IST)Updated: Wed, 21 Jul 2021 09:40 AM (IST)
पेगासस साफ्टवेयर के जरिये मोबाइल फोन में घुसपैठ करते हुए जासूसी करने से जुड़ा सच आए सामने
भारत की स्थिर सरकार को अस्थिर करने के हथकंडे पश्चिमी मीडिया लगातार अपनाता रहा है। प्रतीकात्मक

प्रमोद भार्गव। डिजिटल साफ्टवेयर पेगासस के जरिये अनेक देशों की सरकारें अपने नागरिकों, विरोधियों व अन्य संदिग्धों की जासूसी करवाती रही हैं। दुनिया की 16 मीडिया संस्थानों ने मिलकर इस कथित तथ्य का पर्दाफाश करने का दावा किया है। इसके नतीजे पश्चिम के कई प्रमुख अखबारों समेत मीडिया पोर्टल पर जारी किए गए हैं। इनमें 40 भारतीयों के नाम भी बताए जा रहे हैं, जिनमें सभी नामीगिरामी हस्तियां हैं। यदि वास्तव में इन हस्तियों के मोबाइल फोन टेप किए जा रहे थे, तो इसकी सच्चाई जानने के लिए इन लोगों को अपने फोन फारेंसिक जांच के लिए देने होंगे। इस तथ्य का पर्दाफाश होने से संसद से सड़क तक बेचैनी जरूर है, लेकिन इसके परिणाम किसी अंजाम तक पहुंच पाएंगे इसमें संदेह है।

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दरअसल यह मुखबिरी पेगासस के माध्यम से भारत के लोगों पर ही नहीं, बल्कि 40 देशों के 50 हजार लोगों पर कराई जा रही थी। इस साफ्टवेयर की निर्माता कंपनी एनएसओ ने दावा किया है कि इसे वह अपराध और आतंकवाद से लड़ने के लिए केवल सरकारों को ही बेचती है। पूर्व आइटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने संसद में एनएसओ का पत्र लहराते हुए इस पूरे मामले को नकार दिया। तय है कि सरकार ने ऐसा कोई अनाधिकृत काम नहीं किया है, जो निंदनीय हो अथवा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करता हो। इसीलिए इस रहस्य से पर्दा उठाने वाली फ्रांस की कंपनी फारबिडन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ऐसे कोई तथ्य नहीं दिए हैं, जो फोन पर की गई बातचीत को प्रमाणित करते हों? गोया बिना साक्ष्यों के कथित पर्दाफाश व्यर्थ है।

आज लगभग पूरी दुनिया में नीतियां कुछ इस तरह बनाई जा रही हैं कि नागरिक डिजिटल तकनीक का उपयोग करें। दूसरी तरफ इंटरनेट मीडिया ऐसा ठिकाना है, जिसे व्यक्ति निजी जिज्ञासा पूíत के लिए उपयोग करता है। इस दौरान की गई बातचीत पेगासस साफ्टवेयर ही नहीं, कई ऐसे अन्य साफ्टवेयर भी हैं जो व्यक्ति की सभी गतिविधियों का क्लोन तैयार कर लेने में सक्षम हैं। इसकी खासियत है कि इसके प्रोग्राम को किसी स्मार्टफोन में डाल दिया जाए तो यह हैकर का काम करने लगता है।

नतीजतन फोन में संग्रहित सामग्री आडियो, वीडियो, चित्र, लिखित सामग्री, ईमेल और व्यक्ति के लोकेशन तक की जानकारी पेगासस हासिल कर लेता है। इसकी विलक्षणता यह भी है कि यह एनक्रिप्टेड संदेशों को भी पढ़ने लायक स्थिति में ला देता है। पेगासस स्पाईवेयर इजराइल की सíवलांस फर्म एनएसओ ने तैयार किया है। पेगासस नाम का यह एक प्रकार का वायरस इतना खतरनाक व शाक्तिशाली है कि लक्षित व्यक्ति के मोबाइल में मिस्ड काल के जरिये प्रवेश कर जाता है। इसके बाद यह मोबाइल में मौजूद सभी डिवाइसों को एक तो सीज कर सकता है, दूसरे जिन हाथों के नियंत्रण में यह वायरस है, उनके मोबाइल स्क्रीन पर लक्षित व्यक्ति की सभी जानकरियां क्रमवार हस्तांरित होने लगती हैं। लक्षित व्यक्ति की कोई भी जानकारी सुरक्षित व गोपनीय नहीं रह जाती।

वैसे पेगासस या इस जैसे साफ्टवेयर पहली बार चर्चा में नहीं हैं। इजरायली प्रौद्योगिकी से वाट्सएप में सेंध लगाकर करीब 1,400 भारतीय सामाजिक कार्यकताओं व पत्रकारों की बातचीत के डाटा हैक कर जासूसी का मामला भी 2019 में आम चुनाव के ठीक पहले सामने आया था। शायद यह आम चुनाव के ठीक पहले मोदी सरकार की छवि खराब करने की दृष्टि से सामने लाया गया था। उस समय वाट्सएप ने कहा था कि 1,400 मोबाइल फोन में स्पाइवेयर पेगासस डालकर उपभोक्ताओं की महत्वपूर्ण जानकारी चुराई गई हैं। यह जानकारी तब चुराई गई थी, जब भारत में 2019 में लोकसभा के चुनाव चल रहे थे। इस परिप्रेक्ष्य में विपक्ष ने यह आशंका जताई थी कि इस स्पाइवेयर के जरिये विपक्षी नेताओं और केंद्र सरकार के खिलाफ संघर्षरत लोगों की अपराधियों की तरह जासूसी कराई गई। हालांकि इस मामले में भी अब तक कोई तथ्यपूर्ण सच्चाई सामने नहीं आई है।

वैसे आइटी कानून के तहत भारत में कार्यरत कोई भी वेबसाइट या साइबर कंपनी यदि व्यक्ति विशेष या संस्था की कोई गोपनीय जानकारी जुटाना चाहती है तो केंद्र व राज्य सरकार से लिखित अनुमति लेना आवश्यक है। निजता गोपनीय बनी रहे, लिहाजा ऐसे मामले सामने आने पर सरकार भी इस सुरक्षा के प्रति, प्रतिबद्धता जताती रही है। वैसे सरकारों द्वारा अपने विरोधियों के मोबाइल फोन टेप करने के मामले यदा-कदा सामने आते ही रहते हैं। जो कांग्रेस पेगासस जासूसी कांड पर हंगामा बरपाए हुए है, उसी कांग्रेस की वर्ष 2011 में मनमोहन सिंह सरकार में तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा और राजनीतिक लाबिस्ट नीरा राडिया की बातचीत का टेप लीक हुआ था। कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार पर यह बड़ा संकट था। बाद में यह भी पर्दाफाश हुआ कि यूपीए सरकार और कई मोबाइल फोन टेप करा रही थी।

हालांकि भारत में 10 ऐसी सरकारी गुप्तचर जांच एजेंसियां हैं, जो आधिकारिक रूप से संदिग्ध व्यक्ति अथवा संस्था की जांच कर सकती हैं। भारत में संचार उपकरण से जुड़ा पहला बड़ा मामला पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह की जासूसी से जुड़ा है। उस फोन टैपिंग के समय राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। राष्ट्रपति के पत्रों की जांच करने का आरोप राजीव गांधी सरकार पर लगा था। इसी तरह पूर्व वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के दफ्तर में भी जासूसी यंत्र ‘बग’ मिलने की घटना सामने आई थी। उस समय डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। इस तरह के रहस्यों का पर्दाफाश होने से इलेक्ट्रानिक प्रौद्योगिकी के प्रयोग को लेकर लोगों के मन में संदेह स्वाभाविक है। लिहाजा सरकार को अपनी जवाबदेही स्पष्ट करने की जरूरत है। लेकिन हंगामे के बीच सफाई कैसे दी जाए? शोर थमे तब तो सरकार का स्पष्टीकरण सामने आए? लिहाजा संसद में शोर थमना चाहिए।

[वरिष्ठ पत्रकार]


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