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लोकसभा अध्यक्ष बनते ही सामने आई मांगों की लंबी फेहरिस्त

सत्ता व विपक्ष के छोटे दलों ने अपने हितों की रक्षा के लिए लगाई गुहार।

By Nitin AroraEdited By: Published: Wed, 19 Jun 2019 10:29 PM (IST)Updated: Wed, 19 Jun 2019 10:29 PM (IST)
लोकसभा अध्यक्ष बनते ही सामने आई मांगों की लंबी फेहरिस्त
लोकसभा अध्यक्ष बनते ही सामने आई मांगों की लंबी फेहरिस्त

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। राजग के उम्मीदवार भाजपा सांसद ओम बिरला को अभी स्पीकर बने कुछ ही मिनट हुए थे और उनके सामने मांगों की फेहरिस्त लगनी सिर्फ विपक्षी दलों की तरफ से ही नहीं बल्कि राजग गठबंधन में दलों की तरफ से भी अपनी-अपनी मांगें रखी गईं।

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विपक्षी दलों के सांसद लोकतांत्रिक मूल्यों की हिफाजत करने की मांग रखते हुए सत्ता पक्ष पर निशाना साध रहे थे तो दूसरी तरफ सत्ता पक्ष के छोटे दल यह कह रहे थे कि आने वाले दिनों में उनकी आवाज को भी बुलंद करने का पर्याप्त मौका मिले। सभी की यह गुजारिश थी कि लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के बाद बिरला सभी दलों के साथ समान व्यवहार करें।

लोकसभा में कांग्रेस के नवनिर्वाचित नेता अधीर रंजन चौधरी ने इस बात पर चिंता जताई कि राजग सरकार के पहले के कार्यकाल में महत्वपूर्ण विधेयकों को चयनित संसदीय समिति के पास भेजने की परम्परा कम हो गई है। इस परम्परा को फिर से बहाल करने की जरूरत है।

उन्होंने कांग्रेस की तरफ से बिरला को संसद चलाने में पूरी मदद की पेशकश की लेकिन साथ ही यह भी याद दिलाया कि उन्हें विपक्षी दलों के साथ भी पूरा न्याय करना होगा ताकि वह आम जनता से जुड़े मुद्दों को खुल कर उठा सकें। कुछ इसी तर्ज पर आरएसपी के सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने लोकसभा अध्यक्ष के जरिए सत्ता पक्ष को याद दिलाया कि पिछले सदन में विभिन्न विधेयकों में 500 संशोधनों का सुझाव दिया गया लेकिन उनमें से कोई भी स्वीकार नहीं किया गया।

उन्होंने कहा कि, 'बगैर मजबूत विपक्ष के लोकतंत्र भी मजबूत नहीं हो सकता।' एआइएमआइएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि अब यह लोकसभा अध्यक्ष बिरला की जिम्मेदारी है कि वह सुनिश्चित करें कि सत्ताधारी पार्टी राजशाही में तब्दील न हो जाए।

ओवैसी ने लोकसभा अध्यक्ष की तरफ से मुखातिब हो कर कहा, 'मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा कि आपको संविधान ने बेशुमार शक्तियां दी हुई हैं। इन शक्तियों को आप सोच समझ कर लोकतंत्र की बुनियाद को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल करें।'

राजग गठबंधन में शामिल अकाली दल और अपना दल ने भी अपनी मांग सामने रख दी कि किस तरह से सत्ताधारी पार्टी में शामिल होने के बावजूद उनकी बात को कई बार सामने रखने में परेशानी आती है।

यह इसलिए होता है कि छोटे दल होने की वजह से उन्हें पर्याप्त समय नहीं मिल पाता। विपक्ष के छोटे दलों ने भी यही बात सामने रखी और अपेक्षा जताई कि बिरला इस बात का खास तौर पर ख्याल रखेंगे।

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