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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पेश किया

जब से केंद्र द्वारा तीन कृषि कानून बनाए गए स्टालिन की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) मांग कर रही है कि केंद्र उन कानूनों को वापस ले। मुख्यमंत्री ने कहा है कि ये कानून किसानों के हितों के खिलाफ हैं।

By Nitin AroraEdited By: Published: Sat, 28 Aug 2021 11:43 AM (IST)Updated: Sat, 28 Aug 2021 11:43 AM (IST)
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पेश किया
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पेश किया

चेन्नई, एजेंसी। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने शनिवार को राज्य विधानसभा में केंद्र सरकार के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के विरोध में एक प्रस्ताव पेश किया, जिसे ध्वनि मत से पारित कर दिया गया। इसके साथ, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली, केरल और पश्चिम बंगाल के बाद तमिलनाडु कृषि कानूनों का विरोध करने वाला सातवां राज्य बन गया है।

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जब से केंद्र द्वारा तीन कृषि कानून बनाए गए, स्टालिन की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) मांग कर रही है कि केंद्र उन कानूनों को वापस ले। मुख्यमंत्री ने कहा है कि ये कानून किसानों के हितों के खिलाफ हैं। समाचार एजेंसी पीटीआई ने रिपोर्ट किया। स्टालिन ने जून में कहा, 'सरकार ने देश भर के किसानों की भावनाओं को आहत करने वाले इन तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित करने का स्पष्ट निर्णय लिया है।'

मई में, स्टालिन ने कहा कि सरकार विधानसभा में एक प्रस्ताव लाएगी जिसमें केंद्र से तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए कहा जाएगा। उन्होंने द्रमुक के विधानसभा चुनाव घोषणापत्र में किए गए वादों में से एक को याद किया, जिसमें जिसने केंद्र सरकार से किसानों के उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम और मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौते को रद करने के प्रयासों का वादा किया।

स्टालिन ने कहा, 'केंद्र सरकार को विरोध करने वाले किसानों की मांगों को स्वीकार करना चाहिए और इन तीन कृषि कानूनों को रद करना चाहिए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि डीएमके द्वारा कृषि कानूनों को रद करने के वादे पूरे किए जाएंगे।'

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने न तो किसानों की भावनाओं का सम्मान किया और तीन कृषि कानूनों को रद किया और न ही इस मुद्दे का समाधान खोजने के लिए उनके साथ बातचीत करने के लिए कदम उठाए।


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