Move to Jagran APP

भाजपा अध्यक्ष नड्डा बोले- हमें खुशी है डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान व्यर्थ नहीं गया

भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 119 जयंती पर भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने कहा कि हमें खुशी है कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी का बलिदान व्यर्थ नहीं गया।

By TaniskEdited By: Published: Mon, 06 Jul 2020 03:41 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2020 03:41 PM (IST)
भाजपा अध्यक्ष नड्डा बोले- हमें खुशी है डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान व्यर्थ नहीं गया
भाजपा अध्यक्ष नड्डा बोले- हमें खुशी है डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान व्यर्थ नहीं गया

नई दिल्ली, एजेंसियां। भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 119 जयंती पर भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने उनके सपने को साकार करने की बात उन्होंने दोहराई। इस दौरान उन्होंने कहा कि हमें खुशी है कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। ये खुशी का विषय इसलिए है कि जिस वजह से डॉ मुखर्जी जी ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था, उस अनुच्छेद 370 को मोदी सरकार ने हमेशा के लिए खत्म कर दिया।

loksabha election banner

नड्डा ने कहा कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की और 1952 में कानपुर के अधिवेशन में उन्होंने यह विषय रख दिया कि जम्मू और कश्मीर का विलय पूर्ण होना चाहिए और संपूर्ण होना चाहिए।  उन्होंने आगे कहा कि  श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि अनुच्छेद 370 के माध्यम से जम्मू कश्मीर को विशेष अधिकार क्यों दिया जा रहा है ? लेकिन शेख अब्दुल्ला के मन में बनी हुई चाल को अंजाम देने का काम नेहरू जी कर रहे थे। मुखर्जी ने इसका विरोध किया।   

नड्डा ने आगे कहा कि यह स्पष्ट था कि डॉ. मुखर्जी बंगाल में चल रही तुष्टिकरण की राजनीति के कारण इस्तीफा दिया था। वह जानते थे कि मुस्लिम लीग बंगाल को पाकिस्तान के हिस्से के रूप में लेने की कोशिश कर रही है। वह भारत को बंगाल को बनाए रखने में मदद करने वाले प्रमुख लोगों में से एक है। वह 1941 में वित्त मंत्री बने, और 1942 में इस्तीफा दे दिया। उन्होंने आदर्शों की जगह कभी भी पद को बहुत महत्व नहीं दिया। उन्होंने अपना जीवन आदर्शों के लिए समर्पित कर दिया। 

नड्डा ने यह भी कहा कि गांधी जी के निमंत्रण पर नेहरू कैबिनेट में डॉ. मुखर्जी  एक गैर-कांग्रेसी मंत्री बने थे। उन्हें भारत का पहला वाणिज्य और उद्योग मंत्री बनाया गया था। जब उनके आदर्श नहीं मिले, तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया। नेहरू-लियाकत अली संधि की वजह से उन्होंने इस्तीफा दे दिया क्योंकि यह समझौता पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों से धोखा था। उन्होंने नेहरू से कहा था  कि भारत में आपने जो तुष्टिकरण की राजनीति शुरू की है, वह राष्ट्र की मदद नहीं करेगी। यह पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को नहीं बचा पाएगा। इसके बाद नेहरू को धर्म के आधार पर चुनावी आरक्षण देने की योजना को बंद करना पड़ा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.