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Sushma Swaraj Death Anniversary: सुषमा स्वराज को कहा जाता है 'सुपरमाम आफ इंडिया', विरोधी भी थे उनके मुरीद; मध्य प्रदेश से था खास लगाव

Sushma Swaraj Death Anniversary पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की आज पुण्यतिथि है। पूरा देश आज उन्हें याद कर रहा है। वह दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं। उनके विरोधी भी मुरीद थे। प्रवासी भारतीयों की सहायता करने के लिए उन्हें सुपरमाम आफ इंडिया भी कहा जाता है।

By Achyut KumarEdited By: Published: Sat, 06 Aug 2022 10:04 AM (IST)Updated: Sat, 06 Aug 2022 10:04 AM (IST)
Sushma Swaraj Death Anniversary: सुषमा स्वराज को कहा जाता है 'सुपरमाम आफ इंडिया', विरोधी भी थे उनके मुरीद; मध्य प्रदेश से था खास लगाव
Sushma Swaraj Death Anniversary: सुषमा स्वराज को कहा जाता है 'सुपरमाम आफ इंडिया' (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। Sushma Swaraj Death Anniversary: भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की आज पुण्यतिथि है। विदेश मंत्री रहने के दौरान उन्होंने जो काम किया, उसके लिए आज भी उन्हें याद किया जाता है। चाहे देश हो या विदेश, उन्होंने मदद मांगने वालों को कभी निराश नहीं किया। उनके व्यक्तित्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विरोधी दलों के नेता भी उनके मुरीद थे। उनके ओजस्वी भाषणों को जो एक बार सुनता तो फिर वह सुनता ही रहता। उन्होंने ऐसे कामों को भी कर दिखाया, जिसे असंभव समझा जाता था।

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पद्म विभूषण से किया गया सम्मानित

सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 में अंबाला कैंट में हुआ था। उनके पति का नाम स्वराज कौशल है। उन्होंने सनातन धर्म कालेज , अंबाला कैंट , पंजाब यूनिवर्सिटी से शिक्षा ग्रहण की। उनका निधन 6 अगस्त 2019 को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में हुआ। उन्होंने मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान 2014-2019 तक विदेश मंत्री के रूप में काम किया। उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है।

सुषम स्वराज की जिंदगी से जुड़ी रोचक बातें;

  • सुषमा स्वराज अपने गृह क्षेत्र में कभी लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाईं।
  • उन्होंने तीन बार चुनाव लड़ा, लेकिन हर बार उन्हें चिरंजी लाल से शिकस्त का सामना करना पड़ा।
  • सुषमा स्वराज का राजनीतिक जीवन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से शुरू हुआ।
  • कौशल स्वराज के साथ 13 जुलाई 1975 में उन्होंने प्रेम विवाह किया था।
  • वह 25 साल की कम आयु में हरियाणा की कैबिनेट मंत्री बनीं।
  • 13 अक्टूबर 1998 को वह दिल्ली की पांचवीं और पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।
  • सुषमा स्वराज की वजह से 15 साल पहले सरहद पार कर पाकिस्तान पहुंची गीता को वापस भारत लाया गया।
  • उन्हें 7 बार संसद और तीन बार विधान परिषद का सदस्य चुना गया।
  • उन्हें भारत की किसी भी राजनीति दल की पहली महिला प्रवक्ता बनने का सौभाग्य मिला।

मध्य प्रदेश से खास नाता

प्रखर वक्ता, मिलनसार, हंसमुख और तेज तर्रार नेता के तौर पर पहचान बनाने वाली सुषमा स्वराज का मध्य प्रदेश से खास नाता रहा। यहां से वे दो बार लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुईं। जबकि एक बार राज्यसभा पहुंचीं। उन्हें यहां के लोग दीदी और ताई कहकर बुलाते थे। यहां के लोगों से उनका भाई-बहन का रिश्ता था। वह 2008 से मध्य प्रदेश के भोपाल में ही रहने लगी थीं।

2019 में विदिशा से चुनी गईं सांसद

सुषमा स्वराज 2019 में मध्य प्रदेश के विदिशा जिले से सांसद चुनी गईं। इस दौरान उन्होंने यहां के लोगों से वादा किया था कि वह आखिरी समय तक यहां के लोगों के लिए उपलब्ध रहेंगी। इस वादे को उन्होंने अंतिम समय तक निभाया।

कमाल की थी याददाश्त

सुषम स्वराज की याददाश्त कमाल की थी। वे जिस किसी भी क्षेत्र में जातीं, वहां के कार्यकर्ताओं का नाम उन्हें याद हो जाता। कहा जाता है कि जब वे विदिशा चुनाव लड़ने गईं तो बहुत कम समय में उन्हें यहां के एक-एक कार्यकर्ता का नाम याद हो गया था। वे कार्यकर्ताओं को नाम से पुकारती थीं।

सुपरमाम आफ इंडिया

सुषमा स्वराज को वाशिंगटन पोस्ट ने सुपरमाम आफ इंडिया दिया । इसका कारण यह है कि उन्होंने विदेश मंत्री के रूप में अपने पांच साल के कार्यकाल के दौारन 186 देशों में फंसे 90 हजार से अधिक भारतीयों की मदद की थी। यूक्रेन और रूस के बीच जब युद्ध शुरू हुआ तो भारतीय लोगों को सुषमा स्वराज की याद आई। सुषमा स्वराज ने विदेश में संकट में फंसे भारतीयों की हमेशा मदद की। वह काफी सक्रिय रहती थीं। ट्विटर पर लोग उन्हें टैगकर अपनी समस्याएं बताते थे, जिनका समाधान हो जाता था।

जब सऊदी अरब से कहा- रोक दो जंग

सुषमा स्वराज ने 2015 में सऊदी अरब से युद्ध रोकने के लिए कहा था। उस समय सऊदी गठबंधन सेना और हूती विद्रोहियों के बीच जंग चल रही थी। कई भारतीय इस दौरान यमन में फंस गए थे। उन्होंने सुषमा स्वराज से मदद की गुहार लगाई थी। इस पर सुषमा स्वराज ने सऊदी अरब से जंग रोकने को कहा, जिसके बाद जंग रूकी और हालत समान्य होन पर पांच हजार से अधिक भारतीयों को वापस स्वदेश लाया गया। इसे 'आपरेशन राहत' नाम दिया गया।


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