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अयोध्या मामले में मध्यस्थता पर फैसला सुरक्षित, कोर्ट ने पक्षकारों से पैनल के लिए मांगे नाम

हिंदू महासभा ने पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा पूर्व सीजेआई जेएस खेहर और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एके पटनायक के नाम मध्यस्थता के लिए दिए हैं। महासभा आपसी बातचीत के लिए तैयार है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 05 Mar 2019 10:05 PM (IST)Updated: Thu, 07 Mar 2019 01:15 AM (IST)
अयोध्या मामले में मध्यस्थता पर फैसला सुरक्षित, कोर्ट ने पक्षकारों से पैनल के लिए मांगे नाम
अयोध्या मामले में मध्यस्थता पर फैसला सुरक्षित, कोर्ट ने पक्षकारों से पैनल के लिए मांगे नाम

माला दीक्षित, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद को हल के लिए मध्यस्थता को भेजे जाने का विरोध करते हुए जब बुधवार को हिन्दू पक्ष ने दलील दी कि मुस्लिम आक्रांता बाबर ने मंदिर ढहा कर मस्जिद बनाई थी। संपत्ति भगवान राम की है। इस विवाद का मध्यस्थता के जरिए हल नहीं निकल सकता। तो मध्यस्थता के जरिए विवाद को हल करने की कोशिश में प्रतिबद्ध दिख रहे सुप्रीम कोर्ट ने कहा इतिहास पर नियंत्रण नहीं है। बाबर ने क्या किया था इस पर नियंत्रण नहीं है। कोर्ट वर्तमान स्थिति को देखते हुए मौजूदा विवाद सुलझाने की कोशिश कर रहा है।

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कोर्ट ने आगे कहा उसे मालूम है कि यह बहुत संवेदनशील मामला है। इसका असर सभी पर होगा। यह सिर्फ संपत्ति विवाद नहीं है यह लोगों की आस्था, विश्वास और भावनाओं से जुड़ा मामला है। क्या नतीजा निकलेगा इस पर कोर्ट नहीं सोच रहा वह सिर्फ विवाद सुलझाने के प्रयास पर विचार कर रहा है।

विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजे जाने पर पक्षकारों की गरमागरम बहस सुन कर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए पक्षकारों को मध्यस्थता पैनल के लिए नाम देने को कहा है। ये नजारा था बुधवार राजनैतिक और सामाजिक रूप से संवेदनशील अयोध्या विवाद मामले पर सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई का। सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ कर रही है। पीठ के अन्य न्यायाधीश एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर हैं।

पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने अयोध्या विवाद को कोर्ट की निगरानी में कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थता के जरिए सुलझाने का प्रस्ताव दिया था। हालांकि उसी दिन निर्मोही अखाड़ा को छोड़ कर हिन्दू पक्ष ने प्रस्ताव से असहमति जताई थी जबकि मुस्लिम पक्ष राजी था।

बुधवार को कोर्ट मामला मध्यस्थता को भेजे जाने पर फैसला सुनाने वाला था, लेकिन जैसे ही अदालत बैठी, हिन्दू महासभा के वकील हरिशंकर जैन ने मध्यस्थता का विरोध करते हुए कहा कि यह केस रिप्रजेन्टेटिव सूट है इसे मध्यस्थता के लिए भेजे से पहले सीपीसी के प्रावधानों के तहत पब्लिक नोटिस निकालना पड़ेगा। केस में समझौते का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि जमीन रामलला की है। जमीन देवता में सन्निहित होती है देवता की जमीन का समझौता कोई नहीं कर सकता। और अगर कोर्ट मामला मध्यस्थता के लिए भेजता है तो उसे कानून प्रावधानों का पालन करना होगा।

इस दलील पर पीठ के न्यायाधीश अशोक भूषण ने कहा कि यह नियम तभी लागू होता है जबकि कोर्ट मध्यस्थता करे लेकिन यहां तो कोर्ट मामला मध्यस्थ को भेजेगा इसलिए पब्लिक नोटिस के सीपीसी के प्रावधान यहां लागू नहीं होंगे।

जैन ने कहा कि यह जमीन भगवान राम की है मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता के लिए सहमत हो सकता है लेकिन हिन्दू इसके लिए सहमत नहीं हैं। इस पर जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि आप पहले से ही नतीजा निकाल रहे हैं कि मध्यस्थता सफल नहीं होगी। कोर्ट कोई नतीजा नहीं सोच रहा। कोर्ट यह जानता है कि यह मामला आस्था, विश्वास और दिल से जुड़ा है। यह सिर्फ संपत्ति विवाद नहीं है इसका असर लोगों के दिल दिमाग पर पड़ेगा। हालांकि जस्टिस चंद्रचूड़ लाखों लोगों पर समझौता बाध्यकारी होने के पेंच मे चिंतित दिखे। जबकि जस्टिस बोबडे का कहना था कि अगर समझौता एक पर बाध्यकारी है तो सभी पर होगा।

जैसे कोर्ट का आदेश सब पर बाध्यकारी होता है वैसे ही समझौते के बाद कोर्ट डिक्री पारित करेगा और वो डिक्री सब पर बाध्यकारी होगी। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि पब्लिक नोटिस की बात तो समझौते के बाद डिक्री जारी करने से पहले आयेगी तभी इस पर विचार हो सकता है। इतिहास पर नियंत्रण नहीं, वर्तमान विवाद हल करने की कोशिश हैजैन ने फिर कहा मुसलमान आक्रांता बाबर ने राम जन्मभूमि में मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाई थी।

जस्टिस बोबडे ने कहा कि उन्हें इतिहास मालूम है। इतिहास पर उनका नियंत्रण नहीं है। बाबर ने क्या किया इस पर उनका नियंत्रण नहीं है वह मौजूद परिस्थिति में विवाद हल करने की कोशिश कर रहे हैं। मुस्लिम पक्ष ने किया समर्थनमुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने बुधवार को भी मामला सुलह के लिए मध्यस्थता को भेजे जाने का समर्थन किया। यह भी कहा कि कोर्ट को मध्यस्थता की संभावित शर्ते तय करने की जरूरत नहीं है।

निमोर्ही अखाड़ा के वकील सुशील जैन ने भी मध्यस्थता का समर्थन किया।रामलला को मध्यस्थता स्वीकार नहींरामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने मध्यस्थता का जोरदार विरोध करते हुए कहा कि राम जन्मस्थान दूसरी जगह नहीं हो सकता। इसमे मध्यस्थता से मामला नहीं तय हो सकता। हां अगर मस्जिद दूसरी जगह बनवानी हो तो वह लोगों से पैसा एकत्र करके बनवा देंगे।

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा कि यह मामला मध्यस्थता के लिए भेजने का नहीं लगता।अयोध्या अधिग्रहण ने मामला राष्ट्रीय बनाया सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा किअयोध्या भूमि अधिग्रहण के बाद मामला राष्ट्रीय हो गया है। सरकार अधिगृहित जमीन किसी को भी दे सकती है।

नरसिम्हा राव सरकार ने वादा किया था कि अगर वहां मंदिर निकला तो जमीन हिन्दुओं को मंदिर के लिए दे दी जाएगी। एएसआई की रिपोर्ट में मंदिर पाये जाने की बात कही गई है। मीडिया न करे मध्यस्थता की रिपोर्टिगकोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पूरी तरह गोपनीय रहनी चाहिए। मीडिया को मध्यस्थता प्रक्रिया की कोई रिपोर्टिग नहीं करनी चाहिए। हालांकि कोर्ट ने साफ किया कि इसे मीडिया को चुप कराना न माना जाए।

धवन ने कहा कि गोपनीयता भंग करने को न्यायालय की अवमानना माना जाए। स्वामी व राम भक्तों की ओर से दाखिल रिट याचिकाओं को संविधान पीठ सुनेगी या छोटी पीठ सुनेगी इस पर कोर्ट बाद में फैसला देगा।

क्या है मामला

2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या में रामजन्म भूमि को रामलला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के बीच तीन बराबर के हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। इस फैसले को सभी पक्षों ने 14 अपीलों के जरिये सुप्रीम कोर्ट मे चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल मामले में यथास्थिति कायम है।


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