Ayodhya Case Verdict Today 2019: अयोध्या पर Supreme Court का सबसे बड़ा फैसला आज आएगा
Ayodhya Case Verdict Today 2019 सीजेआई ने अयोध्या पर फैसला देने से पहले यूपी के मुख्य सचिव और डीजीपी को सुप्रीम कोर्ट बुलाकर कानून-व्यवस्था की जानकारी ली।
नई दिल्ली, माला दीक्षित। Ayodhya Case Verdict Today 2019: सुप्रीम कोर्ट 70 साल से कानूनी लड़ाई में उलझे अयोध्या राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक के ऐतिहासिक मामले में शनिवार को फैसला सुनाएगा।प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ सुबह साढे दस बजे अपना फैसला सुनाएगी।
40 दिन की मैराथन सुनवाई के बाद 16 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था
सुप्रीम कोर्ट ने राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक रुप से संवेदनशील इस मुकदमें की 40 दिन तक मैराथन सुनवाई करने के बाद गत 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अयोध्या मामले की सुनवाई करने वाली पांच सदस्यीय पीठ में शामिल सभी जजों की सुरक्षा बढ़ाई गई है। बता दें कि प्रधान न्यायाधीश 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
क्या है मामला
इस मुकदमें में कहा गया है कि बाबर के आदेश पर 1528 में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मस्जिद का निर्माण हुआ था। यह विवादित इमारत और स्थान हमेशा हिन्दू और मुसलमानों के बीच विवाद का मुद्दा रहा। हिन्दू विवादित स्थल को भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं और वहां अधिकार का दावा करते हैं। जबकि मुसलमान वहां बाबरी मस्जिद होने के आधार पर मालिकाना हक की मांग करते रहे। 6 दिसंबर 1992 को कुछ असामाजिक तत्वों ने विवादित ढांचा ढहा दिया था। हालांकि तब भी यह मुकदमा अदालत में लंबित था। चार मूलवाद और चौदह अपीलें इस मुकदमें में मुख्यत: चार मूलवाद थे। जिन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को फैसला सुनाया था।
चार मूलवाद
पहला मुकदमा गोपाल सिंह विशारद का था जिसने 1950 में राम जन्मभूमि पर रिसीवर नियुक्त होने के बाद मुकदमा दाखिल कर पूजा अर्चना का अधिकार मांगा था। इस मुकदमें की शुरूआती सुनवाई में ही कोर्ट ने रामलला की पूजा अर्चना जारी रखने का आदेश देते हुए वहां यथास्थिति कायम रखने का निर्देश दिया था जो लगातार जारी रहा।
दूसरा मुकदमा निर्मोही अखाड़ा ने 1959 में दाखिल किया और इस मुकदमें में निर्मोही अखाड़ा ने रामलला के सेवादार होने का दावा करते हुए पूजा प्रबंधन और कब्जा मांगा था।
तीसरा मुकदमा 1961 में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दाखिल किया। मालिकाना हक की मांग का यह पहला मुकदमा था। जिसमें पूरी जमीन को वक्फ की संपत्ति बताते हुए विवादित ढांचे को मस्जिद घोषित करने की मांग की गई है।
चौथा मुकदमा भगवान श्रीराम विराजमान और जन्मस्थान की ओर से निकट मित्र देवकी नंदन अग्रवाल ने दाखिल किया था। इस मुकदमें में जन्मस्थान को अलग से पक्षकार बनाया गया था। इसमें विवादित भूमि को भगवान राम का जन्मस्थान बताते हुए भगवान राम विराजमान को पूरी जमीन का मालिक घोषित करने की मांग की गई है।
रामलला की ओर से मुकदमा दाखिल करने वाले देवकी नंदन अग्रवाल इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश थे। इस बीच 1950 में रामचंद्र परमहंस दास ने भी एक मुकदमा दाखिल किया था जिसमें पूजा दर्शन का अधिकार मांगा गया था लेकिन बाद में यह मुकदमा वापस ले लिया गया।
हिन्दू-मस्लिम दोनों ने मांगा है मालिकाना हक
दोनों पक्षों की ओर से जमीन पर दावा करते हुए कोर्ट से उन्हें मालिक घोषित करने की मांग की गई है। हिन्दू पक्ष विशेष तौर पर रामलला की और से कहा गया था कि बाबर ने राम जन्मस्थान मंदिर तोड़कर वहां मस्जिद बनवाई थी और उस मस्जिद में मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल किया गया था। राम जन्मस्थान पर हिन्दुओं की अगाध आस्था है और हिन्दू हमेशा से वहां पूजा करते चले आ रहे हैं।
हिन्दुओं की दलील- जन्मस्थान स्वयं देवता है
बाबर आक्रमणकारी था और उसने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने का गलत काम किया था अब बाबर की ऐतिहासिक गलती सुधारने का समय आ गया है। हिन्दुओं की यह भी दलील थी कि जन्मस्थान स्वयं देवता है। उनका कहना है कि किसी स्थान को मूर्ति के बगैर भी उसकी दिव्यता के आधार पर देवता माना जा सकता है और राम जन्मभूमि पर विष्णु के अवतार भगवान राम प्रकट हुए थे इसलिए वह स्थान पवित्र और दिव्य है। हिन्दू पक्ष ने एएसआइ रिपोर्ट पर विशेषतौर पर भरोसा किया था जिसमें विवादित स्थल के नीचे उत्तर कालीन मंदिर से मेल खाता विशाल ढांचा होने की बात कही गई थी।
सेवादार होने का दावा
पासक की हैसियत से मुकदमा करने वाले गोपाल सिंह विशारद की ओर से पूजा अर्चना का अधिकार मांगा है। गोपाल सिंह विशारद की मृत्यु हो चुकी है और अब उनके पुत्र मुकदमें में पक्षकार हैं। निर्मोही अखाड़ा ने सेवादार होने का दावा करते हुए जमीन पर कब्जा और पूजा प्रबंधन का अधिकार मांगा है। अपनी दलील साबित करने के लिए उसने 1886 के मुकदमें में फैजाबाद की अदालत के फैसले का हवाला दिया था जिसमें यह माना गया था कि निर्मोही अखाड़ा का राम चबूतरे पर कब्जा था और वह वहां भगवान राम का जन्मस्थान मानते हुए पूजा अर्चना करता है। निर्मोही का कहना था कि 1885 से उसके वहां सेवादार की तरह मौजूद रहने की बात सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी अपने मुकदमें मानी है।
मुस्लिम पक्ष की दलील
दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष की ओर से सुन्नी वक्फ बोर्ड व अन्य सात पक्षकारों की दलील थी कि स्थान देवता नहीं माना जा सकता और न ही उसे न्यायिक व्याक्ति का दर्जा दिया जा सकता है। उनका आरोप था कि हिन्दू पक्ष ने ऐसा कानून की निगाह मे बाकी पक्षों के अधिकार समाप्त करने के लिए जानबूझकर किया है। उनका कहना था कि हिन्दू पक्ष भगवान राम के जन्म का ठीक स्थान साबित करने में नाकाम रहा है।
बाबर ने 1528 में मस्जिद का निर्माण कराया था
ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे साबित हो कि भगवान राम का जन्म केन्द्रीय गुंबद के नीचे हुआ था। मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि बाबर ने 1528 में मस्जिद का निर्माण कराया था और मुसलमान तब से वहां लगातार नमाज पढ़ते रहे हैं इसलिए उस जमीन पर उनका मालिकाना हक है। उन्होंने लंबे समय से वहां रहने के आधार पर प्रतिकूल कब्जे का भी दावा किया था। यह भी कहा था कि बाबर शासक था और शासक जमीन का मालिक होता है ऐसे में उसके काम को पांच सौ साल बाद अदालत नहीं परख सकती। मुस्लिम पक्ष ने विभिन्न गैजेटियरों और आदेशों का हवाला देते हुए कहा था कि तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने भी विवादित ढांचे को मस्जिद माना था।
शिया वक्फ बोर्ड
शिया वक्फ बोर्ड ने पूरी जमीन हिन्दुओं को देने का किया था ऐलान शिया वक्फ बोर्ड ने हिन्दुओं के मुकदमें का समर्थन किया था। शिया बोर्ड ने विवादित भूमि को शिया वक्फ बताते हुए कहा था कि 1528 में बाबर के आदेश पर उसके कमांडर मीर बाकी ने मस्जिद का निर्माण कराया था। मीर बाकी शिया था और वही पहला मुतवल्ली था ऐसे में वह मस्जिद शिया वक्फ थी। उनका कहना था कि हाईकोर्ट ने भूमि एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को दिया है न कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को। शिया ने कहा था कि सुन्नी वक्फ बोर्ड का कोई हक नहीं बनता और चूंकि यह शिया वक्फ था इसलिए वह हाईकोर्ट से मिला अपना एक तिहाई हिस्सा हिन्दुओं को देता है।
हाईकोर्ट ने तीन हिस्सों में जमीन बांटने का दिया था आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को दिये गए फैसले में अयोध्या में राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। जिसमें से एक हिस्सा रामलला विराजमान को दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा हिस्सा मुसलमानों को देने का आदेश था। हाईकोर्ट ने रामलला विराजमान को विवादित इमारत के केन्द्रीय गुंबद का वही हिस्सा देने का आदेश दिया था जहां वे अभी विराजमान हैं। इस आदेश के खिलाफ भगवान रामलला विराजमान सहित सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट मे अपील दाखिल की थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने सुनवाई की थी।
1959 में निर्मोही अखाड़ा बनी पार्टी
निर्मोही अखाड़ा ने 1959 में मुकदमा दायर कर 2.77 एकड़ जमीन पर हक और पूजा के अधिकार की मांग की। इसके बाद 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी मुकदमा दायर कर विवादित जमीन पर अपना हक जताया।
राम लला विराजमान की तरफ से 1989 में मुकदमा दर्ज
देवता 'राम लला विराजमान' की तरफ से उनके निकट मित्र इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज देवकी नंदन अग्रवाल और जन्मभूमि की तरफ से 1989 में मुकदमा दायर कर विवादित जमीन पर मालिकाना हक मांगा गया।
उत्तर प्रदेश में सुरक्षा व्यवस्था सख्त
उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ओपी सिंह ने शुक्रवार को कहा कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर संवेदनशील जिलों में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुख्ता बंदोबस्त किए गए हैं। हॉट स्पॉट चिह्नित कर लिए गए हैं। असामाजिक तत्वों को भी चिह्नित किया गया है। प्रदेश के 21 जिले संवेदनशील की श्रेणी में रखे गए हैं।
बंद हो सकती हैं इंटरनेट सेवाएं
डीजीपी ओपी सिंह ने बताया कि सोशल मीडिया विचारों के आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम हैं। मगर, कुछ खुराफाती इसका दुरुपयोग कर सकते हैं। जरूरत पड़ने पर इंटरनेट सेवाएं बंद की जा सकती हैं। इसके लिए सभी कानूनी पहलुओं पर विचार कर लिया गया है। सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट डालने वाले 673 लोगों की पहचान की गई है। आपत्तिजनक पोस्ट डालने पर मुकदमे भी दर्ज किए जाएंगे। पुलिस का सोशल मीडिया सेल एक्टिव है।
यूपी में स्कूल-कॉलेज 11 तक बंद
उत्तर प्रदेश में स्कूल-कॉलेज समेत सभी शिक्षण संस्थानों को सोमवार तक के लिए बंद कर दिया गया है। अपर मुख्य सचिव सूचना व गृह अवनीश कुमार अवस्थी ने इसकी जानकारी दी।
प्रधान न्यायाधीश जस्टिर रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे
प्रधान न्यायाधीश जस्टिर रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। ऐसे में यह संभावना जताई जा रही थी कि शीर्ष अदालत अयोध्या मामले में कभी भी फैसला सुना सकती है। शुक्रवार को जब प्रधान न्यायाधीश ने उत्तर प्रदेश के आला अधिकारियों के साथ बैठक की, तभी कयास लगाए जाने लगे थे कि फैसला कभी भी आ सकता है।
अयोध्या में 10 दिसंबर तक धारा 144 लागू, संवेदनशील स्थलों की बढ़ी सुरक्षा
अयोध्या में 10 दिसंबर तक के लिए धारा 144 लगा दी गई है। इसके अलावा मथुरा और काशी समेत प्रदेश के सभी संवेदनशील स्थलों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। संवेदनशील स्थलों की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त जवानों को लगाया गया है।केंद्र सरकार की तरफ से सभी राज्यों को सुरक्षा को लेकर एडवाइजरी जारी की गई है। फैसले को देखते हुए सभी से अत्यधिक सतर्क रहने को कहा गया है। संवेदनशील स्थलों की सुरक्षा बढ़ाने के भी निर्देश दिए गए हैं।
अलीगढ़ में इंटरनेट सेवाएं आज रात 12 बजे तक बंद
अयोध्या पर शनिवार को आ रहे फैसले को लेकर अलीगढ़ जिले में शुक्रवार रात 12 बजे से इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई। डीएम चंद्रभूषण सिंह ने इसके लिए आदेश जारी किए हैं। शनिवार रात 12 बजे तक सेवा पर पाबंदी रहेगी। जरूरत पड़ी तो प्रशासन इसे आगे भी बढ़ा सकता है। सोशल मीडिया पर अफवाहें रोकने के लिए प्रशासन ने यह फैसला लिया है।