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पीएसए के तहत जम्‍मू-कश्‍मीर के पूर्व CM उमर अब्दुल्ला की हिरासत पर 14 फरवरी को होगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में आज जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को PSA के तहत हिरासत में रखने के खिलाफ उनकी बहन सारा अब्दुल्ला पायलट द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई होगी।

By Tilak RajEdited By: Published: Wed, 12 Feb 2020 07:54 AM (IST)Updated: Wed, 12 Feb 2020 11:42 AM (IST)
पीएसए के तहत जम्‍मू-कश्‍मीर के पूर्व CM उमर अब्दुल्ला की हिरासत पर 14 फरवरी को होगी सुनवाई
पीएसए के तहत जम्‍मू-कश्‍मीर के पूर्व CM उमर अब्दुल्ला की हिरासत पर 14 फरवरी को होगी सुनवाई

 नई दिल्‍ली, एएनआइ। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्‍यमंत्री उमर अब्दुल्ला को पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) के तहत हिरासत में रखने के खिलाफ सारा पायलट की याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई नहीं हो सकी। इस मामले में होने वाली सुनवाई से जस्टिस मोहन एम शांतनु गोदर ने खुद को अलग कर लिया है। इस कारण आज इस मामले में सुनवाई कर पाना संभव नहीं था। अब सुप्रीम कोर्ट की एक दूसरी बेंच शुक्रवार यानि 14 फरवरी को इस मामले की सुनवाई करेगी। बता दें कि पीएसए के तहत पहले दो साल तक किसी तरह की सुनवाई नहीं हो सकती थी, लेकिन वर्ष 2010 में इसमें कुछ बदलाव किए गए।

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सारा अब्दुल्ला ने अपनी याचिका में कहा है कि उमर अब्दुल्ला को हिरासत में रखना गैरकानूनी है। साथ ही याचिका में कहा गया है कि उनसे कानून व्यवस्था को किसी खतरे का कोई सवाल ही नहीं उठता है। इसके बावजूद उमर अब्दुल्ला पर पीएसए लगाया गया है, बिल्‍कुल गलत है। याचिका में मांग की गई है कि उमर अब्दुल्ला को पीएसए के तहत हिरासत में रखने के पांच फरवरी के आदेश को तुरंत रद किया जाए। इसके बाद उन्‍हें अदालत के समक्ष पेश किया जाए।

गौरतलब है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता महबूबा मुफ्ती पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) के तहत मामला दर्ज किया गया है। पीएसए को राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री स्व शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने साल 1978 में लागू किया था। दरअसल, तब उन्होंने यह कानून जंगलों के अवैध कटान में लिप्त लोगों को रोकने के लिए बनाया था। हालांकि, बाद में इसे उन लोगों पर भी लागू किया जाने लगा था, जिन्हें कानून व्यवस्था के लिए खतरा माना जाता है।

बता दें कि इस कानून के मुताबिक, दो साल तक किसी तरह की सुनवाई नहीं हो सकती थी। अगर ऐसा होता, तो उमर अब्‍दुल्‍ला और महबूबा मुफ्ती के लिए काफी परेशानी हो सकती थी। लेकिन वर्ष 2010 में इसमें कुछ बदलाव किए गए। इस कानून का पहली बार के उल्लंघनकर्त्ताओं के लिए हिरासत अथवा कैद की अवधि छह माह रखी गई। अगर उक्त व्यक्ति के व्यवहार में किसी तरह का सुधार नहीं होता है, तो यह दो साल तक बढ़ाई जा सकती है।


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