सीबीआइ की रारः वर्मा और अस्थाना पर आरोपों की गहन जांच के आसार
आलोक वर्मा ने दो साल के निदेशक के सुनिश्चित कार्यकाल का हवाला देते हुए सरकार के फैसले की सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) अपनी रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट को सीबीआइ निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की और भी गहराई से जांच की जरूरत बता सकता है। सुप्रीम कोर्ट सीवीसी की सील बंद लिफाफे में सौंपी गई प्रारंभिक जांच रिपोर्ट पर सोमवार को सुनवाई करेगा। राकेश अस्थाना ने आलोक वर्मा पर मीट कारोबारी मोईन कुरैशी केस में सतीश सना से दो करोड़ की रिश्वत लेने का आरोप लगाया है। वहीं उसी सतीश सना से दो करोड़ 95 लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में राकेश अस्थाना के खिलाफ एफआइआर दर्ज है।
वैसे तो सुप्रीम कोर्ट में सील बंद लिफाफे में सौंपी गई प्रारंभिक जांच रिपोर्ट पर सीवीसी का कोई अधिकारी बोलने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो आलोक वर्मा, राकेश अस्थाना और सतीश सना का बयान दर्ज करने और केस से संबंधित दस्तावेजों की छानबीन में कोई ठोस सुबूत नहीं मिले हैं। आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना अपने-अपने आरोपों पर और सतीश सना राकेश अस्थाना को दो करोड़ 95 लाख रुपये की रिश्वत देने के बयान पर कायम है।
सतीश सना मजिस्ट्रेट के सामने भी सीआरपीसी की धारा 164 के तहत यही बयान दे चुका है। सीवीसी के एक अधिकारी के अनुसार, वर्मा के सतीश सना से रिश्वत लेने के आरोप को साबित करने का कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं मिला है, जबकि सना का बयान राकेश अस्थाना के खिलाफ आरोपों की पुष्टि कर रहा है। फिर भी सना के बयान पर पूरी तरह भरोसा करना उचित नहीं होगा।
सना तत्कालीन सीबीआइ प्रमुख पर भी लगा चुका है आरोप
सीवीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, सना 2012 से ही सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय के निशाने पर रहा है। मोईन कुरैशी द्वारा सीबीआइ के वरिष्ठतम अधिकारी को रिश्वत देने में वह पूरी तरह शामिल था। इसकी पुष्टि सना और मोईन कुरैशी के बीच बीबीएम पर बातचीत के रिकॉर्ड से होती है। सना ईडी को दिए अपने बयान में तत्कालीन सीबीआइ प्रमुख एपी सिंह को मोईन कुरैशी के मार्फत रिश्वत देने का आरोप लगा चुका है। ऐसे में सना से संबंधित सभी केस और आरोपों की निष्पक्ष और गहन जांच की जरूरत है।
सीवीसी की जांच पूर्व जज की निगरानी में
सरकार ने आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को सीवीसी की अनुशंसा के बाद ही 24 अक्टूबर को पदभार से मुक्त कर छुट्टी पर भेज दिया था। आलोक वर्मा ने दो साल के निदेशक के सुनिश्चित कार्यकाल का हवाला देते हुए सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी को पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एके पटनायक की निगरानी में आलोक वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच कर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया था।
अंतरिम प्रभारी के फैसलों पर भी होगा विचार
शीर्ष अदालत ने सीबीआइ के अंतरिम प्रभारी एम नागेश्वर राव को कोई भी बड़ा फैसला लेने से रोक दिया था। इसी संदर्भ में कोर्ट सोमवार को राव द्वारा 23 अक्टूबर से लिए गए फैसलों पर भी विचार करेगा। उन फैसलों में तबादले और कुछ जांच अधिकारियों को बदले जाने के भी मामले हैं।