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मानसिक रूप से बीमार लोगों से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से मांगा जवाब

नए कानून के मुताबिक किसी भी प्रकार की मानसिक विकलांगता या विकार से पीड़ित व्यक्ति को मानसिक अस्पताल में भर्ती होने के लिए मजिस्ट्रेट के आदेश की आवश्यकता नहीं होती है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Mon, 25 Nov 2019 11:59 PM (IST)Updated: Mon, 25 Nov 2019 11:59 PM (IST)
मानसिक रूप से बीमार लोगों से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से मांगा जवाब
मानसिक रूप से बीमार लोगों से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से मांगा जवाब

नई दिल्ली, प्रेट्र। मानसिक रूप से बीमार लोगों से जुड़ी एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा। इसमें आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकार अभी भी उस पुराने कानून के प्रावधानों का इस्तेमाल कर रही है, जिसमें मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए कोर्ट के आदेश की जरूरत होती है।

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बता दें कि संसद ने 2017 में मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम को पारित किया था, जिसके बाद मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1987 निरस्त हो गया था। नए कानून के मुताबिक किसी भी प्रकार की मानसिक विकलांगता या विकार से पीड़ित व्यक्ति को मानसिक अस्पताल में भर्ती होने के लिए मजिस्ट्रेट के आदेश की आवश्यकता नहीं होती है।

सीजीआइ एसए बोबडे ने सरकार को जारी किया नोटिस

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने राज्य सरकार और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को नोटिस जारी किया। वकील गौरव कुमार बंसल द्वारा दायर जनहित याचिका में आरोप लगाया गयाा है कि महाराष्ट्र सरकार पुराने खत्म किए गए कानून का अभी भी इस्तेमाल कर रही है। महाराष्ट्र सरकार की यह कार्रवाई सिर्फ मनमानी पूर्ण ही नहीं है, बल्कि संसद के निर्णय के खिलाफ है।

उन्होंने कहा कि पांच जनवरी को जारी अपने आदेश में राज्य सरकार ने सभी न्यायिक मजिस्ट्रेटों को पुराने निरस्त कानून के प्रावधानों का पालन करने और मानसिक रूप से बीमार लोगों को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए आदेश पारित करने के बारे में लिखा था।


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