सजायाफ्ता नेताओं पर आजीवन पाबंदी की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह सजायाफ्ता नेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने से रोकने के पक्ष में नहीं है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामलों में सजा पाने वाले निर्वाचित जनप्रतिनिधियों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग वाली नई याचिका पर सुनवाई करने से इन्कार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने एनजीओ 'लोक प्रहरी' की तरफ से दायर याचिका खारिज कर दी।
अभी सजा होने पर नेताओं के छह साल तक चुनाव लड़ने पर है प्रतिबंध
प्रधान न्यायाधीश के साथ जस्टिस एसके कौल और केएम जोसेफ की पीठ ने कहा कि वह पहले ही अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर इसी तरह की जनहित याचिका पर सुनवाई करने वाली है। पेशे से वकील और भाजपा सांसद उपाध्याय ने सजायाफ्ता नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के साथ ही उनके खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए विशेष कोर्ट गठित करने की मांग की है। उपाध्याय की याचिका पर 4 दिसंबर को सुनवाई होगी।
पीठ ने कहा कि हमें इस तथ्य की अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि जनहित याचिका में सजा पाने वाले निर्वाचित नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है, पीठ ने आगे कहा कि सरकारी अधिकारी और न्यायिक अधिकारी सजा काटने के बाद वापस अपने पेशे में नहीं लौट सकते।
मौजूदा प्रावधानों के मुताबिक अगर किसी निर्वाचित सांसद, विधायक या अन्य जनप्रतिनिधि को सजा मिलती है तो वह छह साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ सकता है।
सरकारी अधिकारियों की तरह हो प्रावधान
सर्वोच्च अदालत में कई याचिकाएं दायर कर मांग की गई है कि जिस तरह से सरकारी और न्यायिक अधिकारी सजा काटने के बाद दोबारा सेवा में नहीं आ सकते हैं, उसी तरह से नेताओं पर भी आजीवन पाबंदी लगाई जाए।
सरकार आजीवन प्रतिबंध के पक्ष में नहीं
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा था कि उसे निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए विशेष कोर्ट के गठन से कोई एतराज नहीं है, लेकिन वह सजायाफ्ता नेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने से रोकने के पक्ष में नहीं है।