सुप्रीम कोर्ट ने दिया सरकार को झटका, न्यायाधिकरणों पर बनाए गए नियम खारिज
मनी बिल के मामले में राज्यसभा को केवल कुछ संशोधनों की सिफारिश का अधिकार रहता है वह भी 14 दिन के भीतर।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को झटका देते हुए बुधवार को विभिन्न न्यायाधिकरणों (ट्रिब्यूनल) के सदस्यों की नियुक्ति और सेवा शर्तें के संबंध में केंद्र द्वारा बनाए गए नियमों को खारिज कर दिया। इसी के साथ कोर्ट ने वित्त अधिनियम 2017 को मनी बिल के रूप में पारित कराने की वैधता के मामले को बड़ी पीठ के पास भेज दिया। विपक्षी दलों ने संसद में इस विधेयक का जोरदार विरोध किया था।
न्यायाधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति का मामला
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सुनवाई के लिए यह मामला था कि विभिन्न ट्रिब्यूनल के सदस्यों की नियुक्ति शर्तो में बदलाव करने वाले वित्त अधिनियम, 2017 को मनी बिल (धन विधेयक) के रूप में पारित कराया जा सकता है या नहीं। फैसले में वित्त अधिनियम, 2017 की धारा 184 का भी जिक्र हुआ, जिसमें केंद्र को विभिन्न न्यायाधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति एवं सेवा शर्तो में बदलाव का अधिकार दिया गया है।
न्यायाधिकरण नियम में कई विसंगतियां
सीजेआइ रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, 'न्यायाधिकरण, अपीलीय न्यायाधिकरण और अन्य प्राधिकार (सदस्यों की सेवा की योग्यता, अनुभव और अन्य शर्तें) नियम, 2017 में कई विसंगतियां हैं। इन नियमों को केंद्र सरकार ने वित्त अधिनियम, 2017 की धारा 184 के तहत तय किया है। ये नियम संविधान में वर्णित सिद्धांतों और मूल कानून के विपरीत हैं, जैसा अदालत व्याख्या कर चुकी है।' पीठ ने कहा कि सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके द्वारा निर्धारित नए नियम भेदभाव रहित और सेवा की समान शर्तों वाले हों। पीठ में जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल थे।
क्या है मनी बिल?
फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मनी बिल (धन विधेयक) को भी परिभाषित किया। अदालत ने कहा, 'सामान्य विधेयक के मामले में ऊपरी सदन प्रस्तावित विधेयक को रोक सकता है और निचले सदन की शक्ति को नियंत्रित कर सकता है। वहीं मनी बिल के मामले में राज्यसभा को केवल कुछ संशोधनों की सिफारिश का अधिकार रहता है, वह भी 14 दिन के भीतर। इस अवधि में कोई सिफारिश नहीं मिलने या लोकसभा द्वारा संशोधन स्वीकार नहीं किए जाने की स्थिति में विधेयक को सीधे राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है और उनकी मंजूरी के बाद कानून बन जाता है।'