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हरेन पांड्या हत्याकांड की दोबारा जांच वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री हरेन पांड्या की हत्या के मामले में कहा कि राजनीतिक व्यक्तियों से संबंधित याचिकाओं की जांच के लिए वकीलों का एक पैनल होना चाहिए।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 12 Feb 2019 11:38 PM (IST)Updated: Tue, 12 Feb 2019 11:38 PM (IST)
हरेन पांड्या हत्याकांड की दोबारा जांच वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित
हरेन पांड्या हत्याकांड की दोबारा जांच वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित

नई दिल्ली, प्रेट्र। राजनीतिक व्यक्तियों से संबंधित जनहित याचिकाओं की जांच के लिए स्वतंत्र और तटस्थ वकीलों का एक पैनल होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री हरेन पांड्या की हत्या के मामले की कोर्ट की निगरानी में नए सिरे से जांच कराने संबंधी जनहित याचिका (पीआइएल) पर सुनवाई करते हुए की। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

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जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस विनीत सरन की पीठ के समक्ष यह याचिका गैर-सामाजिक संगठन (एनजीओ) सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआइएल) ने दायर की थी। सुनवाई करते हुए पीठ ने एनजीओ की मंशा को लेकर कई कड़ी टिप्पणियां कीं।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीबीआइ की ओर से पेश होते हुए कहा कि इस तरह की जनहित याचिका दाखिल करना पवित्र जनहित याचिका के दुरुपयोग का उदाहरण है। उन्होंने कहा कि एक खूंखार अपराधी ने एक अन्य मामले में कुछ टिप्पणियां कीं हैं और उसका उपयोग जनहित याचिका में किया जा रहा है।

16-17 साल बाद जनहित याचिका क्यों दायर कर रहे हैं

पीठ ने पूछा कि आप हत्या के 16-17 साल बाद अनुच्छेद-32 के तहत शीर्ष अदालत में जनहित याचिका क्यों दायर कर रहे हैं। पीठ ने कहा कि एनजीओ ने अपनी याचिका में इस बात को क्यों नहीं उजागर किया कि शीर्ष अदालत गुजरात हाई कोर्ट द्वारा आरोपियों को बरी करने के खिलाफ सीबीआई की अपील पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा कि एनजीओ को एक अर्जी दाखिल करके लंबित अपील में हस्तक्षेप करने की मांग करनी चाहिए थी।

पीठ ने मीडिया रिपोर्टो का हवाला देने पर जताई नाराजगी

एनजीओ की तरफ से पेश वकील शांति भूषण ने कहा कि हाल ही में सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई के दौरान एक गवाह आजम खान ने कोर्ट में पांड्या की हत्या को एक बड़ी साजिश बताया था इसलिए इस संबंध में नए सिरे से जांच की जरूरत है।

उन्होंने पांड्या मामले में जांच अधिकारी द्वारा एक पत्रकार को दिए गए इंटरव्यू का भी हवाला दिया, जिसमें उसने राजनीतिक साजिश की तरफ इशारा किया था। इस पर पीठ ने कहा कि आप मीडिया रिपोर्टो के आधार पर जनहित याचिका दायर कर रहे हैं। स्वत: संज्ञान के मामले अलग होते हैं, लेकिन क्या आप समाचार पत्रों की रिपोर्ट के आधार पर जनहित याचिका दायर कर सकते हैं। इस पर भूषण ने कहा कि पूर्व में ऐसे कई निर्णय हैं जिसमें अदालतों ने ऐसी रिपोर्टो के आधार पर जनहित याचिकाएं स्वीकार की हैं।

क्या है मामला

गुजरात की नरेंद्र मोदी सरकार में तत्कालीन गृह मंत्री हरेन पांड्या की 26 मार्च, 2003 को अहमदाबाद के लॉ गार्डन इलाके में उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी जब वह सुबह की सैर कर रहे थे। विशेष पोटा अदालत ने 2007 में अपने फैसले में सभी 12 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी। जबकि 29 अगस्त 2011 को गुजरात हाई कोर्ट ने फैसले को पलटते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। सीबीआइ ने 2012 में हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।


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