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चुनावी सियासत: सूबे के बाहर भी दूसरे दलों का खेल बिगाड़ेगा सपा-बसपा गठबंधन

सपा व बसपा को संदेह है कि कांग्रेस के रुख से उसके मतदाताओं के बीच भ्रम पैदा हो सकता है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Fri, 22 Mar 2019 09:23 PM (IST)Updated: Fri, 22 Mar 2019 09:23 PM (IST)
चुनावी सियासत: सूबे के बाहर भी दूसरे दलों का खेल बिगाड़ेगा सपा-बसपा गठबंधन
चुनावी सियासत: सूबे के बाहर भी दूसरे दलों का खेल बिगाड़ेगा सपा-बसपा गठबंधन

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में सत्तारुढ़ राजग को टक्कर देने के लिए गठित महागठबंधन की राह में उसके घटक दल ही रोड़ा अटकाने से बाज नहीं आ रहे हैं। चुनाव से पहले ही एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं। महागठबंधन को पलीता लगाने में सपा और बसपा का गठजोड़ सबसे आगे है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अछूत मानकर दूरी बना रही सपा और बसपा अब सूबे से बाहर भी दूसरे दलों का खेल बिगाड़ने की तैयारी में है। उधर, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में तेलुगू देशम पार्टी के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने किसी क्षेत्रीय दल से चुनावी गठबंधन से इनकार कर दिया है।

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सपा और बसपा के बीच के गठबंधन ने तो कांग्रेस को पहले ही उत्तर प्रदेश में ठेंगा दिखाकर झटका दे दिया है। उसके साथ चुनाव लड़ना तो दूर उसके साथ दिखना भी पसंद नहीं करने का ऐलान किया है। सपा व बसपा को संदेह है कि कांग्रेस के रुख से उसके मतदाताओं के बीच भ्रम पैदा हो सकता है। उसके बाद उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गठबंधन ने अपने प्रत्याशी उतारकर कांग्रेस को जबर्दस्त झटका दिया है। क्षेत्रीय दलों के इस गठबंधन ने अब अपना दायरा बढ़ाकर महाराष्ट्र को इसमें शामिल कर लिया है। सपा-बसपा महाराष्ट्र की सभी 48 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया है।

छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में बसपा ने अजित जोगी की पार्टी से समझौता किया था, लेकिन उस गठबंधन को कुछ खास हासिल नहीं हुआ। बसपा ने जोगी को विश्वास में लिये बगैर वहां की 11 सीटों में से छह पर अपने प्रत्याशी उतार दिये हैं। बहुजन समाज पार्टी जल्दी ही राजस्थान में भी अपने प्रत्याशी उतार सकती है। उत्तर प्रदेश को छोड़कर बाकी जगहों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच आमने-सामने की टक्कर होती रही है। यह गठबंधन इन राज्यों में कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचा सकती है।

टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने भी कांग्रेस से चुनावी समझौता करने से हाथ पीछे खींच लिया है। उसे स्पष्ट कर दिया कि उसका विधानसभा चुनाव के दौरान ही तेलंगाना से गठजोड़ था, जो अब कहीं नहीं है। ऐसे में सबकी अपनी-अपनी डफली और अपना-अपना राग है। सारे घटक दल अपनी क्षेत्रीय ताकत बढ़ाने की जुगत हैं, ताकि चुनाव के बाद होने वाली सियासी मोलतोल में उनका पलड़ा भारी रहे।


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