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सोनिया गांधी के डिनर से फिर जगी विपक्षी गोलबंदी की कांग्रेस की उम्मीदें, मगर ममता नहीं आईं

विपक्षी दलों के बीच सोनिया के प्रभाव का ही यह असर रहा कि तमाम सियासी अटकलों के बावजूद 20 दलों के नेता शामिल हुए।

By Tilak RajEdited By: Published: Tue, 13 Mar 2018 09:52 PM (IST)Updated: Wed, 14 Mar 2018 07:53 AM (IST)
सोनिया गांधी के डिनर से फिर जगी विपक्षी गोलबंदी की कांग्रेस की उम्मीदें, मगर ममता नहीं आईं
सोनिया गांधी के डिनर से फिर जगी विपक्षी गोलबंदी की कांग्रेस की उम्मीदें, मगर ममता नहीं आईं

नई दिल्ली, संजय मिश्र। विपक्षी दलों को गोलबंद करने की कसरत में दिया गया यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी का सियासी डिनर विपक्षी पार्टियों का जमावड़ा करने लिहाज से कामयाब रहा। सोनिया के इस डिनर में 20 विपक्षी पार्टियों की मौजूदगी ने भाजपा-एनडीए के खिलाफ व्यापक विपक्षी एकजुटता की कांग्रेस की कोशिशों को एक बार फिर नई उम्मीद दी है। ममता बनर्जी के अलावा विपक्षी दलों के करीब-करीब सभी अहम नेता इस डिनर में शामिल हुए। जबकि तृणमूल कांग्रेस की ओर से ममता ने अपने वरिष्ठ नेता सुदीप बंधोपाध्याय को विपक्षी नेताओं के इस भोज में भेजा।

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मालूम हो कि टीआरएस प्रमुख तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने कांग्रेस को किनारे करते हुए मजबूत विपक्ष के लिए तीसरे मोर्चे के गठन की राग छेड़ी। ममता बनर्जी ने तत्काल केसीआर के इस राग में अपना सुर मिलाते हुए अपना सियासी दांव चल दिया। माना जा रहा कि तीसरे मोर्चे की यह पहल सियासी रुप से कांग्रेस के लिए चुनौती न बन जाए इसे देखते हुए ही डिनर डिप्लोमेसी के बहाने विपक्षी खेमे का बिखराव रोकने की यह पहल शुरू हुई है। इसीलिए खाने की प्लेट के साथ विपक्षी नेताओं ने सोनिया के साथ अगले चुनाव की सियासी रणनीति और एकजुटता के मेन्यू की संभावनाओं पर शुरुआती चर्चा की।

भाजपा-एनडीए को 2019 के चुनाव में चुनौती देने के लिए विपक्षी दलों के एकजुटता की यह डोर बिना टूटे कितनी आगे बढ़ेगी यह सवाल तो भविष्य में तय होगा। मगर सोनिया ने इस डिनर डिप्लोमेसी के जरिये भाजपा-एनडीए से मुकाबला करने के लिए तीसरे मोर्चे के चले जा रहे सियासी दांव थामने की दिशा में एक मजबूत कदम जरूर बढ़ा दिया है। विपक्षी नेताओं के इस रात्रिभोज के सहारे सोनिया ने यह साफ संदेश देने की कोशिश की है कि एनडीए-भाजपा के खिलाफ विपक्ष की मजबूत चुनौती कांग्रेस के बिना संभव नहीं है।

अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के सियासी अश्वमेघ को थामने की कांगे्रस की रणनीति पूरी तरह व्यापक विपक्षी एकजुटता पर निर्भर मानी जा रही है। इसीलिए कांग्रेस संगठन की जिम्मेदारी जहां राहुल गांधी संभाल रहे हैं, वहीं गठबंधन की सियासत की कमान पूरी तरह सोनिया ने थाम रखी है। ममता बनर्जी और शरद पवार समेत कई विपक्षी दलों के कुछ वरिष्ठ नेताओं की राहुल की सरपरस्ती में सियासी असहजता को देखते हुए भी कांग्रेस की रणनीति के लिहाज से सोनिया की सक्रियता मुफीद है। यूपीए के दस साल के शासन में सोनिया ने गठबंधन का सफलता पूर्वक संचालन किया और सभी विपक्षी नेता उनका सम्मान करते हैं। जाहिर तौर पर कांग्रेस और राहुल के लिए सोनिया का विपक्षी नेताओं के बीच सियासी कद अहम पहलू है।

विपक्षी दलों के बीच सोनिया के प्रभाव का ही यह असर रहा कि तमाम सियासी अटकलों के बावजूद 20 दलों के नेता शामिल हुए। एनडीए-भाजपा के चार साल के शासन में संख्या के हिसाब से सोनिया का यह भोज विपक्षी नेताओं का सबसे बड़ा जमावड़ा साबित हुआ है। कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गुलाम नबी आजाद, मल्लिकार्जुन खड़गे, अहमद पटेल, एके एंटनी, रणदीप सुरजेवाला के साथ एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार, राजद के तेजस्वी यादव, मीसा भारती, सपा के रामगोपाल यादव, बसपा के सतीश चंद्र मिश्र, टीएमसी के सुदीप बंधोपाध्याय, नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला, बीटीपी के शरद यादव, द्रमुक की कनीमोरी, रालोद के अजीज सिंह, भाकपा के डी राजा, माकपा से मोहम्मद सलीम, झामुमो से हेमंत सोरेन, जेवीएम के बाबूलाल मरांडी आदि डिनर में शामिल हुए।

एनडीए छोड़ हाल ही में विपक्षी खेमे में शामिल हुए हिन्दुस्तान आवामी मोर्च के नेता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी डिनर में शरीक हुए। सोनिया के इस रात्रिभोज की एक कामयाबी यह भी रही कि कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव में आमने-सामने होने के बावजूद जनता दल सेक्युलर के प्रतिनिधि ने भी विपक्षी नेताओं के इस आयोजन में हिस्सा लिया। टीडीपी, टीआरएस और बीजेडी को इस डिनर का न्यौता नहीं भेजा गया था।


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