IAS की नौकरी छोड़कर राजनीति में चमकते सितारे, आप भी डालें एक नजर
भारतीय प्रशासनिक सेवा देश की सबसे बड़ी परीक्षा हैं। इस परीक्षा को पास करना बहुत मुश्किल माना जाता है। देश में हर साल लगभग 9 से 10 लाख लोग इस परीक्षा में शामिल होते हैं।
नई दिल्ली जागरण स्पेशल)। भारतीय प्रशासनिक सेवा देश की सबसे बड़ी परीक्षा हैं। इस परीक्षा को पास करना बहुत मुश्किल माना जाता है। देश में हर साल लगभग 9 से 10 लाख लोग इस परीक्षा में शामिल होते हैं। जिसमे से कुछ सौ लोग ही इस परीक्षा को पास कर पाते हैं। इस परीक्षा को पास करने के बाद आइएएस अधिकारी के सामने चमकदार करियर और भविष्य होता है। लिहाजा आइएएस का पद छोड़कर राजनीति में किस्मत आजमाना आसान नहीं हैं। पूर्व आइएएस अधिकारी और ब्यूरोक्रेट्स का राजनीति में प्रवेश नयी बात नहीं हैं। ऐसे लोगों की लम्बी लिस्ट हैं। इनमे मनमोहन सिंह, आरके सिंह, पीएल पुनिया से लेकर जेडी सीलम तक का नाम शामिल है। लेकिन हम यहांं कुछ ऐसे लोगों की बात कर रहे हैं। जिन्होंने आइएएस की नौकरी छोड़कर राजनीति को अपनी कर्मभूमि बनाया।
यशवंत सिन्हा
यशवंत सिन्हा 1960 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से जुड़े। लगभग 24 साल तक भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहे। इस दौरान उन्होंने सबडिवीजनल मजिस्ट्रेट,डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट रहे। वो बिहार सरकार के वित्त मंत्रालय में अंडर सेक्रेटरी और डिप्टी सेक्रेटरी भी रहे। केंद्र सरकार के वाणिज्य मंत्रालय में डिप्टी सेक्रेटरी भी रहे। जर्मनी के भारतीय उच्चायोग में यशवंत सिन्हा फर्स्ट सेक्रेटरी के पद पर भी रहे। 1984 में वो भारत सरकार के भूतल परिवहन मंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी थे। 1984 में यशवंत सिंह ने भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया और सक्रीय राजनीति से जुड़ गए। यशवंत सिन्हा ने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत जनता पार्टी से की। 1986 में वो जनता दल से राज्यसभा के लिए चुन लिए गए। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार में वो वित्तमंत्री बने। हालांंकि उनका कार्यकाल केवल दो वर्षो का रहा। बाद में वो बीजेपी से जुड़े और देश के विदेश मंत्री और वित्त मंत्री के पद सुशोभित किया।
अजित जोगी
छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजित जोगी भी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रह चुके हैं। राजनीति में उन्हें लाने का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को जाता है। अजित जोगी भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रह चुके हैं। सत्तर के दशक में वो मध्य प्रदेश के कई जिलों के जिलाधिकारी भी रहे। 1986 में राजीव गांंधी को कुछ युवा चेहरों की तालाश थी। इस दौरान अजित जोगी उनके संपर्क में आये। राजीव गांंधी ने अजित जोगी को राजनीति में आने निमंत्रण दिया। अजित जोगी ने उनका निमंत्रण स्वीकार कर जिलाधिकारी पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस ने अजित जोगी को दो बार राज्य सभा भेजा। साल 2000 में जब मध्यप्रदेश का विभाजन करके नया राज्य छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आया तब मुख्यमंत्री की दौड़ में कई बड़े नाम शामिल थे। कहा जाता है तब अजित जोगी को लम्बे प्रशासनिक अनुभव के आधार पर नए राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया।बाद में अजित जोगी ने कांग्रेस के अलग होकर अपना दल छत्तीसगढ़ जनता कोंग्रस बनाई।
मीरा कुमार
देश की पहली महिला लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार भी विदेश सेवा में अधिकारी थी। मीरा कुमार का सम्बन्ध देश के जाने-माने राजनीतिज्ञ परिवार से हैं। उनके पिता बाबू जगजीवन राम भारतीय राजनीति में एक बड़ा नाम थे। जगजीवन राम देश के उप प्रधानमंंत्री पद पर रह चुके हैं। जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट में वह सबसे कम उम्र के मंत्री थे। मीरा कुमार ने अपने करियर की शुरुआत भारतीय विदेश सेवा में अधिकारी के तौर पर 1973 में की थी। उन्होंने भारतीय विदेश सेवा में लगभग 12 साल तक कार्य किया। इस दौरान मीरा कुमार ने मॉरिशस, यूनाइटेड किंगडम और स्पेन में स्थित भारतीय दूतावासों में अलग-अलग पदों पर काम किया। 1985 में उन्होंने भारतीय विदेश सेवा से इस्तीफा दिया और राजनीति के मैदान में आ गयी। मीरा कुमार सबसे पहले उत्तर प्रदेश के बिजनौर से लोकसभा सांसद बनी। मीरा कुमार केंद्र में सामजिक कल्याण और जल संसाधन मंत्री भी रह चुकी हैं। मीरा कुमार 2009 से 2014 तक लोकसभा स्पीकर भी रहीं। वो पहली महिला हैं जो लोकसभा की स्पीकर बनी। 2017 में वो राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार बनी लेकिन चुनाव जीतने में विफल रहीं।
ओपी चौधरी
छत्तीसगढ़ में आइएएस अधिकारी ओपी चौधरी ने हाल ही में बीजेपी ज्वाइन की है। 2005 बैच के आइएएस अफसर रहे चौधरी ने 13 साल की नौकरी के बाद पिछले दिनों अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। राजनीति में प्रवेश के साथ अब वे आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ सकते हैं। वो रायपुर के जिलाधिकारी रह चुके हैं। ओपी चौधरी ने अपने 13 साल के सेवा काल में शिक्षा और नक्सल क्षेत्र में सराहनीय काम किया। दंतेवाड़ा के नक्सल प्रभावित इलाके में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने बहुत काम किया है।अपने काम की वजह से आम जनता के बीच काफी लोकप्रिय हैं। आइएएस पद से इस्तीफ़ा देने के बाद उन्होंने कहा कि आइएएस के तौर पर अपने कार्यकाल से संतुष्ट हूँ। लेकिन ब्यूरोक्रेसी की अपनी एक सीमा होती है।