उत्तर प्रदेश में भाजपा के बड़े समीकरण बनेंगे शिवपाल और चंद्रशेखर
शिवपाल सिंह यादव के सेक्युलर मोर्चे के उभार और भीम आर्मी के चंद्रशेखर उर्फ रावण से मायावती के किनारा करने से भाजपा के लिए अनुकूल माहौल बना है।
लखनऊ (आनन्द राय)। लोकसभा चुनाव में भाजपा की राह रोकने के लिए विपक्ष के महागठबंधन की सियासत परवान चढ़ने लगी है। बसपा प्रमुख मायावती सम्मानजनक सीटों पर समझौते के लिए तैयार हैं जबकि, गठबंधन के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पहले से ही समर्पित भाव में हैं। कांग्रेस और रालोद भी गठबंधन के समर्थन में है। ऐसे में भाजपा के सामने विपक्ष के वोटों के ध्रुवीकरण की चुनौती है, लेकिन सपा के विद्रोही शिवपाल सिंह यादव के सेक्युलर मोर्चे के उभार और भीम आर्मी के चंद्रशेखर उर्फ रावण से मायावती के किनारा करने से भाजपा के लिए अनुकूल माहौल बना है। विपक्ष के ध्रुवीकरण से पहले ही शिवपाल और रावण के रूप में बिखराव के भी अंकुर उगने लगे हैं।
कब कौन पार्टी क्या राजनीतिक पैंतरा बदल ले, कहा नहीं जा सकता है। भविष्य में सीटों पर तालमेल न बन पाने की स्थिति में मायावती से अखिलेश की बात नहीं बनी और कांग्रेस व बसपा की नजदीकी बढ़ी तो शिवपाल उधर अपने लिए अवसर तलाश सकते हैं। बड़ी वजह यह कि शिवपाल कम से कम सीटों पर संतुष्ट हो सकते हैं। सपा, बसपा और कांग्रेस के समझौते की स्थिति में शिवपाल को अवसर नहीं मिला तो भी वह प्रदेश की सभी सीटों पर लड़ने का एलान कर रहे हैं। प्रदेशभर में भले वह कोई प्रभाव न दिखा सकें लेकिन, कुछ सीटों पर वोटों के बिखराव का सबब बन सकते हैं। दोनों ही स्थिति में शिवपाल भाजपा के लिए फायदेमंद होंगे। सपा से विद्रोह कर शिवपाल का खुले मैदान में आना बहुत ही साफ संकेत है। कई मौके पर शिवपाल की भाजपा की नजदीकी भी उजागर हुई है। शिवपाल फिलहाल असंतुष्ट सपाइयों को एक मंच पर लाकर अपनी ताकत बढ़ाने में जुटे हैं।
भीम आर्मी भी खेल सकती कोई नया दांव
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के युवा दलितों के बीच भीम आर्मी का आकर्षण है। हालांकि यह न कोई राजनीतिक दल है और न ही संगठनात्मक रूप से अभी इसकी कोई बड़ी भूमिका बनी है। लेकिन जिस तरह चंद्रशेखर के खिलाफ मायावती ने आक्रामक रुख अपनाते हुए उनसे किसी भी तरह के रिश्ते से इन्कार कर दिया, उससे इतना तो साफ है कि भीम आर्मी को वह अपने से दूर रखेंगी। ऐसे में अपने अस्तित्व के लिए चंद्रशेखर कोई दांव खेल सकते हैं। फिलहाल तो वह भाजपा को हराने की बात कर रहे हैं लेकिन, भविष्य में कोई नया पैंतरा चल सकते हैं। अगर वह गठबंधन के साथ नहीं भी हुए तो पश्चिम की कुछ सीटों पर उनके लिए मुश्किल बन सकते हैं। ऐसे में मायावती से चंद्रशेखर का दूर होना भाजपा के लिए फायदेमंद होगा।