#JagranForum: सबरीमाला पर फैसला गलत, तो तलाक पर भी गलत - ज्ञानसुधा मिश्रा
सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश ज्ञानसुधा मिश्रा ने कहा कि कोर्ट को धार्मिक आस्था से जुड़े मामलों में दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए। ऐसे मामलों को विधायिका के ऊपर छोड़ देना चाहिए।
नई दिल्ली, जेएनएन। सबरीमाला और तत्काल तीन तलाक पर हाल में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर लोगों की अलग-अलग राय देखने को मिली। सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश ज्ञानसुधा मिश्रा का मानना है कि कोर्ट को धार्मिक आस्था से जुड़े मामलों में दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए। ऐसे मामलों को विधायिका के ऊपर छोड़ देना चाहिए। उन्होंने साफ कहा कि धार्मिक आस्था के आधार पर यदि सबरीमाला का फैसला गलत है, तो फिर तत्काल तीन तलाक पर आए फैसले को भी गलत मानना चाहिए।
एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि यदि धार्मिक आस्था के बीच संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला आता है और संबंधित पक्ष उसे कोर्ट के सामने तकरें के आधार पर रखता है, तो कोर्ट आंख मूंदकर नहीं बैठ सकता है। इनमें सबरीमाला मंदिर का मामला भी एक है। वैसे भी धार्मिक आस्था से जुड़े मामलों में इस तरह के फैसले कोर्ट और न्यायाधीशों के विवेक पर निर्भर करते है। इन्हें किसी तरह की लक्ष्मण रेखा में बांधना ठीक नहीं है, क्योंकि धार्मिक आस्था के आधार पर किसी को सही और किसी को गलत नहीं ठहराया जा सकता है।
सबरीमाला पर फैसला गलत लेकिन तलाक पर सही
पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी की राय इस मामले में बिलकुल अलग दिखी। उन्होंने केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर कोर्ट के फैसले को गलत ठहराया। उनका मानना है कि पूजा पद्धति के मामले में कोर्ट की दखलअंदाजी गलत है। सदियों पुराने रीति रिवाजों में कोर्ट का दखल नहीं होना चाहिए। धार्मिक रीति रिवाजों को तकरें के आधार पर तोलना ठीक नहीं है।
जस्टिस इंदु मल्होत्रा का नाम लिए बगैर रोहतगी ने कहा कि जिन पांच जजों ने यह फैसला दिया है उसमें से एक महिला जज ने इसके खिलाफ फैसला दिया था, लेकिन बाकी चार जजों ने इसे तर्को पर तौला। संविधान के तीसरे अध्याय की धारा-14 का जिक्र करते हुए रोहतगी ने कहा कि जहां कानून हमें बराबरी का अधिकार देता है, वहीं धारा-25 में पूजा पद्धति के बेरोकटोक पालन का अधिकार भी दिया गया है। दूसरी ओर, रोहतगी ने तत्काल तीन तलाक पर रोक के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पूरी तरह न्यायसंगत बताया। उन्होंने कहा कि अधिकांश मुस्लिम देशों में भी इस पर कानून आ चुका है। तत्काल तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के लिए हानिकारक है।