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एससी-एसटी कानून नहीं बांधता शिवराज के हाथ, ये है बिना जांच गिरफ्तारी नहीं करने का सच

एससी एसटी संशोधन कानून के खिलाफ मध्य प्रदेश में चल रहे आंदोलन को थामने के लिए दिये गए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बयान ने एक नयी बहस को जन्म दे दिया है।

By Vikas JangraEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 09:59 PM (IST)Updated: Sat, 22 Sep 2018 01:10 PM (IST)
एससी-एसटी कानून नहीं बांधता शिवराज के हाथ, ये है बिना जांच गिरफ्तारी नहीं करने का सच
एससी-एसटी कानून नहीं बांधता शिवराज के हाथ, ये है बिना जांच गिरफ्तारी नहीं करने का सच

नई दिल्ली [माला दीक्षित]। एससी एसटी संशोधन कानून के खिलाफ मध्य प्रदेश में चल रहे आंदोलन को थामने के लिए दिये गए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बयान ने एक नयी बहस को जन्म दे दिया है। उन्होंने कहा है कि कानून का दुरुपयोग नही होगा और बिना जांच के गिरफ्तारी नही होगी। सवाल उठता है कि जिस एससी एसटी वर्ग को सुरक्षा और संरक्षण का अहसास कराने के लिए केन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला निष्प्रभावी कर पुरानी व्यवस्था बहाल की है कहीं शिवराज का बयान उसे कमजोर करता या कानून की खिलाफत करता तो नहीं दिखता। कानूनविदों की मानें तो बयान में कोई कानूनी खामी नहीं है।

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एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून इस वर्ग पर अत्याचार रोकने के लिये कड़े दंड की व्यवस्था करता है। ये संज्ञेय और गैर जमानती अपराध है जिसमें अग्रिम जमानत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पहले भी यही कानून था और फैसले के बाद कानून संशोधन कर फिर यही पुरानी व्यवस्था बहाल की गई है। मध्य प्रदेश में संशोधित कानून को लेकर सवर्ण समाज आंदोलित है।
शिवराज सिंह चौहान का ट्वीट

ऐसे में मुख्यमंत्री के बयान का कानूनी विश्लेषण करने पर पता चलता है कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा जिसकी कानून इजाजत न देता हो। लेकिन स्थिति को और स्पष्ट करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसआर सिंह कहते हैं कि जांच अधिकारी के पास पहले भी गिरफ्तारी का विवेकाधिकार था और अभी भी है। संशोधित कानून ये नहीं कहता कि एफआईआर दर्ज होने के बाद जांच अधिकारी गिरफ्तारी करने के लिए बाध्य है। अगर उसे लगता है कि एससी एसटी कानून में कोई संज्ञेय अपराध नहीं हुआ तो वह गिरफ्तारी नहीं करेगा कोर्ट में केस बंद करने के लिए फाइनल रिपोर्ट देगा।

यह किसी कानून में नहीं कहा गया है कि तुरंत गिरफ्तार करो। कानून में संज्ञेय अपराध में तुरंत एफआईआर की बात है। एफआईआर के बाद जांच होती है और फिर गिरफ्तारी का नंबर आता है। गिरफ्तारी जांच का हिस्सा होती है। जांच अधिकारी को अगर अभियुक्त को लेकर कोई आशंका है तो वह गिरफ्तार कर सकता है। उनसे सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट वकील डीके गर्ग कहते हैं कि इस कानून को लेकर लोगों में तुरंत गिरफ्तारी का भ्रम है। जांच अधिकारी यह तय कर सकता है कि तुरंत गिरफ्तारी हो या न हो। अगर अभियुक्त के खिलाफ प्रथमदृष्टया केस बनता है तभी गिरफ्तारी होती है।
शिवराज सिंह चौहान (फाइल फोटो)

शिवराज के बयान पर दिल्ली के पूर्व जज प्रेमकुमार कहते हैं कि दुरुपयोग होने और न होने के बीच बहुत बारीक लाइन है। सीआरपीसी की धारा 41 के प्रावधान कहते हैं कि जरूरी होने पर ही गिरफ्तारी की जाएगी। अगर जांच अधिकारी इन प्रावधानों को लागू करते हुए गिरफ्तारी नहीं करता तो उसे क्या कहा जाएगा। ऐसा करना एससी एसटी कानून की भावना के अनुरूप है कि नहीं क्योंकि इसमें अग्रिम जमानत की मनाही है। इन सवालों को स्पष्ट करने के लिए सरकार को स्पष्ट नियम और दिशानिर्देश बनाने होंगे। इसके बगैर दुरुपयोग न होने का बयान महज राजनैतिक होगा।

गिरफ्तारी के बारे में पूर्व एएसजी और वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा का भी यही कहना है कि गिरफ्तारी जरूरी नहीं है। बिना गिरफ्तारी के भी एफआइआर से पहले और बाद में जांच हो सकती है। कई फैसले हैं जिनमें इस बारे में व्यवस्था तय है। उनका कहना है कि हमारे देश में गिरफ्तारी नाजायज की जाती है। जहां जरूरी नहीं है वहां भी गिरफ्तारी होती है चाहें बाद में जांच के दौरान ही व्यक्ति क्यों न बेगुनाह पाया जाए। धारा 41 के प्रावधानों में जरूरी होने पर ही गिरफ्तारी होनी चाहिए। मुख्यमंत्री के बयान कानूनन सही है।


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