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Saradha Chit Fund Scam: चिटफंड मामले में निवेशकों को SC से झटका, जांच की निगरानी से इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने सारधा चिटफ़ंड जांच की निगरानी करने की मांग को ठुकरा दिया है। कुछ निवेशकों ने अर्जी दाखिल कर कोर्ट से इस मामले की जांच की निगरानी करने की मांग की थी।

By Mangal YadavEdited By: Published: Mon, 11 Feb 2019 11:50 AM (IST)Updated: Mon, 11 Feb 2019 12:18 PM (IST)
Saradha Chit Fund Scam: चिटफंड मामले में निवेशकों को SC से झटका, जांच की निगरानी से इनकार
Saradha Chit Fund Scam: चिटफंड मामले में निवेशकों को SC से झटका, जांच की निगरानी से इनकार

नई दिल्ली, जेएनएन। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सारधा चिटफंड जांच  (Sardha Chit Fund Scam) की निगरानी करने की मांग को ठुकरा दिया है। इस मामले की कुछ निवेशकों ने अर्जी दाखिल कर कोर्ट से जांच की निगरानी करने की मांग की थी।

मामले की सुनवाई करते हुए सोमवार को कोर्ट ने कहा कि सारधा चिटफंड जांच की निगरानी की कोई आवश्यकता नहीं है। कोर्ट का फैसला ऐसे समय में आया है जब सीबीआइ कोलकाता पुलिस कमिश्नर और पूर्व टीएमसी नेता कुणाल घोष से इस मामले में पूछताछ कर रही है।

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शिलांग में दो दिन हुई पुलिस कमिश्नर से पूछताछ
सारधा चिटफंड घोटाले की जांच कर रही सीबीआइ ने शिलांग में कोलकाता पुलिस आयुक्त (सीपी) राजीव कुमार से रविवार को भी पूछताछ हुई। इससे पहले राजीव कुमार से शनिवार को भी दो बार में आठ घंटे तक पूछताछ हुई थी। सीबीआइ, राजीव कुमार के जवाबों से संतुष्ट नजर नहीं आ रही। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को सीबीआइ के सामने पेश होने का आदेश दिया था। हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि फिलहाल उनकी गिरफ्तारी नहीं होगी।

क्या है चिटफंड मामला?
चिट फंड्स एक्ट 1982 में ऐसी कंपनियों को परिभाषित किया गया है। इसके अलावा राज्यों में बने कानून इस बिजनेस को नियंत्रित करते हैं। चिट फंड बचत का एक तरीका है, जो लोगों को आसान कर्ज उपलब्ध कराने के साथ ही उनके निवेश पर ज्यादा रिटर्न देता है। बैंक से कर्ज लेने के लिए आम तौर पर कई छोटी-मोटी लेकिन जरूरी औपचारिकताओं को पूरा करना होता है, लेकिन चिट फंड में इसकी कोई बाध्यता नहीं होती। निवेश के अन्य विकल्पों के मुकाबले चिट फंड में ज्यादा रिटर्न मिलता है और कई बार यही लालच लोगों के नुकसान का कारण भी बनता है।

ऐसे हुई सारदा ग्रुप की शुरुआत
2000 के शुरुआती महीनों में कारोबारी सुदीप्तो सेन ने सारदा ग्रुप की शुरुआत की, जिसे सेबी ने बाद में कलेक्टिव इनवेस्टमेंट स्कीम के तौर पर वर्गीकृत किया। सारदा ग्रुप ने चिट फंड की तर्ज पर ज्यादा रिटर्न का लालच देकर छोटे निवेशकों को आकर्षित किया। अन्य पोंजी स्कीम (चिट फंट कंपनी) की तरह कंपनी ने एजेंट के बड़े नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए छोटे लोगों से पैसों की उगाही की और इसके लिए एजेंट को 25 फीसद तक का कमीशन दिया गया। कुछ ही सालों में सारदा ने करीब 2,500 करोड़ रुपये तक की पूंजी जुटा ली। स्कीम का दायरा ओडिशा, असम और त्रिपुरा तक फैला, जिसमें करीब 17 लाख से अधिक लोगों ने पैसे लगाए।

सैकड़ों निवेशकों ने दर्ज कराया था मामला
2012 में सेबी ने इस समूह को लोगों से पैसा जुटाने के लिए मना किया। 2013 तक आते-आते ग्रुप की हालत खराब होने लगी। कंपनी के पास आने वाली पूंजी की मात्रा, खर्च हो रही पूंजी से कम हो गई, और फिर अप्रैल 2013 में यह धराशायी हो गई। कोलकाता के विधाननगर पुलिस स्टेशन में सैंकड़ों निवेशकों ने शिकायत दर्ज कराई। सुदीप्तो सेन ने 18 पन्नों का पत्र लिखकर बताया कि कैसे नेताओं ने उनसे जबरन गलत जगह निवेश कराया। सेन के खिलाफ एफआईआर हुआ और आखिरकार उन्हें 20 अप्रैल 2013 को गिरफ्तार कर लिया गया।

 


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