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विदेश मंत्री बोले, चीन नहीं कर रहा एलएसी का सम्मान करने संबंधी समझौतों का पालन, करेंगे सुरक्षा चुनौतियों का मुकाबला

पूर्वी लद्दाख में चीन से जारी गतिरोध लगातार बना हुआ है। हाल फिलहाल में यह खत्‍म हो जाएगा या यह लंबा खिंचेगा... इस सवाल पर विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने कहा है कि मैं इस बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं करूंगा।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 12 Dec 2020 03:42 PM (IST)Updated: Sat, 12 Dec 2020 07:54 PM (IST)
विदेश मंत्री बोले, चीन नहीं कर रहा एलएसी का सम्मान करने संबंधी समझौतों का पालन, करेंगे सुरक्षा चुनौतियों का मुकाबला
चीन से जारी गतिरोध पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि मैं इस बारे में भविष्यवाणी नहीं करूंगा।

नई दिल्ली, पीटीआई। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शनिवार को कहा कि पूर्वी लद्दाख में सीमा पर चीन के साथ सात महीने से जारी तनाव में भारत को परखा जा रहा था, लेकिन देश राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों का मुकाबला करेगा। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर घटनाओं को बेहद परेशान करने वाली बताते हुए उन्होंने कहा कि जो कुछ हुआ वह चीन के हित में नहीं है क्योंकि इनसे भारत में उसके प्रति वह सद्भावना खोने की संभावना है जो हालिया दशकों में सावधानीपूर्वक विकसित की गई थी। इन संबंधों को विकसित करने में दोनों ओर से काफी मेहनत की गई थी। 

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विदेश मंत्री ने कहा कि इन घटनाओं ने कुछ बेहद बुनियादी चिंताओं को उठाया है क्योंकि दूसरे पक्ष ने एलएसी का सम्मान करने संबंधी समझौतों का पालन नहीं किया। फिक्की की वार्षिक आमसभा में एक संवाद सत्र में हिस्सा लेते हुए विदेश मंत्री ने चीन के साथ गतिरोध के समाधान के लिए कोई पूर्वानुमान लगाने से इन्कार कर दिया। जयशंकर ने कहा, 'मैं यह भी मानता हूं कि जो कुछ हुआ है वह वास्तव में चीन के हित में नहीं है। उसने जो कुछ किया है उसने लोगों (भारत के) की भावनाओं पर खासा असर डाला है। 

विदेश मंत्री ने कहा कि पेशेवर रूप से मैंने उस बदलते दौर को देखा है कि भारत के लोग पिछले कई दशकों के दौरान चीन के बारे में कैसा महसूस करते रहे हैं और मेरी उम्र इतनी है कि उन कहीं ज्यादा कठिन दिनों को याद कर सकूं, खासकर मेरे बचपन और किशोरावस्था के समय को।' अमेरिका के साथ प्रस्तावित व्यापार समझौते के बारे में पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा कि लंबित व्यापार मसलों को सुलझाने के लिए सरकार और ट्रंप प्रशासन के बीच बेहद गंभीर वार्ताएं हुई थीं। दोनों पक्षों की सामान्य सोच यही थी कि कुछ ज्यादा बड़े मुद्दों पर विचार करने से पहले मतभेदों को दूर कर लिया जाए। 

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बताया, 'विभिन्न कारणों से उन्होंने इसे अंतिम रूप नहीं दिया। हमारी ओर से मैं कह सकता हूं कि हम बेहद गंभीर थे। हम उन मुद्दों से निपटना चाहते थे क्योंकि हमने सोचा कि रिश्तों के लिए इसमें कुछ बहुत बड़ा था। लेकिन यह नहीं हुआ। अक्सर जब व्यापार वार्ताएं होती तो वे दो सरकारों के बीच कारोबारी वार्ताओं की तरह होती हैं। ऐसी वार्ताओं में मुश्किल विवरणों में होती है। अगर समझौते को अंतिम रूप नहीं दिया गया तो यह कोई समझौता नहीं है।'


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