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आरबीआइ के रिजर्व फंड के इस्तेमाल को लेकर हो सकता है घमासान

सरकार और आरबीआइ के बीच विवाद आने वाले दिनों में बढ़ सकता है। आरबीआइ के पूर्ण बोर्ड की 19 नवंबर को प्रस्तावित बैठक में गहमागहमी के आसार हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Fri, 09 Nov 2018 08:52 PM (IST)Updated: Fri, 09 Nov 2018 08:52 PM (IST)
आरबीआइ के रिजर्व फंड के इस्तेमाल को लेकर हो सकता है घमासान
आरबीआइ के रिजर्व फंड के इस्तेमाल को लेकर हो सकता है घमासान

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के बीच जारी विवाद आने वाले दिनों में और बढ़ सकता है। आरबीआइ के पूर्ण बोर्ड की 19 नवंबर को प्रस्तावित बैठक में काफी गहमागहमी के आसार हैं।

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खासतौर पर आरबीआइ द्वारा रिजर्व फंड के इस्तेमाल को लेकर बोर्ड में सरकार के प्रतिनिधियों और दूसरे सदस्यों के बीच मतभेद सामने आने के संकेत मिल रहे हैं। हालांकि सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि आरबीआइ के रिजर्व से भारी-भरकम राशि लेने की उसकी कोई योजना नहीं है। लेकिन इस बात के भी संकेत हैं कि सरकार आरबीआइ के पास उपलब्ध रिजर्व के इस्तेमाल के नियम बदले जाने के पक्ष में है।

3.6 लाख करोड़ लेने की योजना नहीं
शुक्रवार को वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने ट्वीट किया, 'सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं है कि आरबीआइ से 3.6 लाख करोड़ रुपये या एक लाख रुपये की राशि ली जाए। यह सिर्फ मीडिया की कल्पना है। राजकोषीय स्थिति पूरी तरह से नियंत्रण में है।

वर्ष 2013-14 में राजकोषीय घाटे का आंकड़ा 5.1 फीसद था जिसे काफी कम कर दिया गया है। वर्ष 2018-19 में इसे 3.3 फीसद पर रखने के लिए सरकार ने उधारी में 70 हजार करोड़ रुपये की कमी की है।' एक अन्य ट्वीट में उन्होंने लिखा, 'अभी सिर्फ एक ही प्रस्ताव (आरबीआइ की बैठक के लिए) है। वह है आरबीआइ के लिए उपयुक्त पूंजी फ्रेमवर्क का निर्धारण करना।'

वित्त मंत्रालय के प्रमुख आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने एक टीवी चैनल से कहा, 'दुर्भाग्य से आरबीआइ का रिजर्व अभी मीडिया में चर्चा का विषय बन गया है। सरकार आरबीआइ के फंड को लूटने की कोई कोशिश नहीं कर रही। लेकिन आरबीआइ के पास रहने वाले पूंजी के स्तर को लेकर सरकार के साथ विमर्श होना चाहिए।'

वित्त मंत्रालय के दो वरिष्ठ अधिकारियों की तरफ से आरबीआइ के पूर्ण निदेशक बोर्ड की बैठक से जुड़े मुद्दे का जिक्र करना ही बेहद अप्रत्याशित है। गर्ग आरबीआइ के बोर्ड में सरकार की तरफ से नामित सदस्य हैं। उनके अलावा वित्तीय मामलों के सचिव राजीव कुमार भी आरबीआइ बोर्ड के सदस्य हैं।

वित्त मंत्रालय के एक दूसरे अधिकारी का कहना है कि आरबीआइ के फंड के इस्तेमाल का मुद्दा काफी दिनों से लंबित है और इस पर दो टूक फैसला होना चाहिए कि इसके इस्तेमाल का पारदर्शी तरीका क्या होना चाहिए।

क्या इस्तेमाल होगी धारा-7?
रिजर्व से जुड़े मुद्दे उठाने की मंशा पहले जताने के बाद अब यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि अगर आरबीआइ बोर्ड के चेयरमैन और गवर्नर डॉ. उर्जित पटेल और बोर्ड में शामिल दूसरे डिप्टी गवर्नर तैयार नहीं होते हैं तो क्या सरकार की तरफ से धारा-7 का इस्तेमाल किया जा सकता है।

आरबीआइ एक्ट, 1934 की धारा-7 के मुताबिक केंद्र सरकार को यह विशेषाधिकार है कि वह अपने फैसले के मुताबिक निर्देश आरबीआइ बोर्ड को दे सकती है। वैसे अभी तक इस अधिकार का इस्तेमाल नही हुआ है। कई विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि अगर सरकार की तरफ से यह धारा लगाई जाती है तो आरबीआइ गवर्नर इस्तीफा दे सकते हैं।

आरबीआइ और सरकार के बीच यह विवाद आरबीआइ के डिप्टी गवर्नर डॉ. विरल आचार्य के उस भाषण से सामने आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता कम की गई तो यह आर्थिक व वित्तीय मोर्चे पर विनाशकारी साबित हो सकता है। इससे आरबीआइ और सरकार के बीच अधिकारों और आरबीआइ की स्वायत्ता को लेकर पुरानी बहस फिर से जिंदा हो गई है। इसको लेकर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी सरकार पर लगातार हमला कर रही है।

हालांकि यह भी सच्चाई है कि कांग्रेस के कार्यकाल में भी इस मुद्दे पर आरबीआइ गवर्नर और तत्कालीन वित्त मंत्रियों के बीच लगातार अनबन रही है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तो आरबीआइ गवर्नर को पत्र लिखकर बताया था कि उसे सरकार की नीतियों के मुताबिक ही चलना होगा।


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