रवि शंकर प्रसाद बोले, देशहित और जनहित में उठेंगे सभी कदम; कांग्रेस नहीं तय करेगी कि देश कैसे चलेगा
दैनिक जागरण के संपादक मंडल से बातचीत में रवि शंकर प्रसाद ने 5जी न्यायपालिका में नियुक्ति पीआइएल के सहारे राजनीति जैसे कई मुद्दों पर लंबी चर्चा की।
[जागरण राउंड टेबल]। चीन से एक तरफ जहां सीमा पर जंग जैसे हालात हैं, वहीं देश के अंदर चीनी सामानों के बहिष्कार का माहौल बनने लगा है। देश की राजनीति भी गर्म है जिसमें विपक्ष की ओर से रोज सवाल दागे जा रहे हैं। ऐसे में भाजपा के तेज तर्रार नेता व केंद्रीय कानून, दूरसंचार तथा सूचना प्रोद्यौगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने चीन के साथ संबंधों पर सतर्क रहते हुए विपक्ष पर करारा हमला किया। दैनिक जागरण के संपादक मंडल से बातचीत में उन्होंने 5जी, न्यायपालिका में नियुक्ति, पीआइएल के सहारे राजनीति जैसे कई मुद्दों पर लंबी चर्चा की। पेश हैं महत्वपूर्ण अंश...
प्रश्न: चीन से बढ़े तनाव के बाद सरकार ने अभी 4जी के लिए बीएसएनएल समेत निजी कंपनियों को भी चाइनीज उपकरणों से दूर रहने को कहा। क्या भविष्य में भी ऐसे कदम लिए जा सकते हैं?
उत्तर: समय आने दीजिए, आपको सबकुछ पता चलेगा, लेकिन मैं आपको कह दूं कि नरेंद्र मोदी सरकार में देशहित और जनहित सर्वोपरि है। सबकुछ इसके दायरे में होता है।
प्रश्न: भारत मोबाइल फोन बनाने में दूसरे नंबर पर है। फिर भी चीन से 18 अरब डॉलर के मोबाइल फोन और पार्ट्स का आयात होता है। मोबाइल फोन का आयात बंद करने पर विचार हो रहा है क्या?
उत्तर: इस पर व्यापक दृष्टि से विचार करने की जरूरत है। अभी इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता है।
प्रश्न: 5जी को लेकर आपका क्या नजरिया है और इसे भारत में कब तक लाने की योजना है?
उत्तर: 5जी प्रयोगात्मक अवस्था में है। इसके ट्रेंड को देखते हुए विचार किया जाएगा। अभी एक मंत्रिसमूह बनाया गया है जो यह तय करेगा कि 5जी सुविधा विकसित करने के लिए किन-किन लोगों को परमिट दिया जाएगा। इसकी स्पीड एवं अन्य चीजें कैसी होनी चाहिए, इस पर आइआइटी मद्रास काम कर रहा है। इतना तय है कि 5जी के विकास के दौरान देश की सुरक्षा और साइबर सुरक्षा की चिंता को देखते हुए ही कोई फैसला किया जाएगा। यही हमारा मानक होगा।
प्रश्न: कोविड काल में वर्क फ्राम होम का कल्चर शुरू हो गया है, इसे लेकर सरकार कोई नीति बना रही है क्या?
उत्तर: आपको बता दें कि पिछले तीन महीनों से जब दुनिया लॉकडाउन में थी तब भी हमारे मंत्रालय में लगातार काम चल रहा था। भारत की आइटी सेवाएं बाधित नहीं हों, इसलिए वर्क फ्राम होम लाया गया और हमने नैसकॉम के साथ मिलकर इसके सारे नियमों को सेटल कर दिया। अभी आइटी सेक्टर का 85 फीसद काम घर से हो रहा है। वर्क फ्राम होम के लिए कई एप इस्तेमाल हो रहे हैं। हम वीडियो कांफ्रेंसिंग के लिए और घर से काम करने के लिए मेक इन इंडिया एप ला रहे हैं। सीडॉट ने ऐसा एप विकसित किया है जिसपर हमने अपने सारे पोस्टमास्टर जनरल के साथ सफल मीटिंग भी की है। मेक इन इंडिया वीडियो कांफ्रेंसिंग एप विकसित करने के लिए 12 लोगों को चुना गया है। जल्द ही इसके परिणाम आप सबके सामने होंगे।
प्रश्न: सवाल यही है कि डाटा पर इतना भार पड़ रहा है, लेकिन कनेक्टिविटी नहीं है। आपकी सरकार के एक मंत्रालय ने ही सवाल उठाया है कि वन नेशन वन राशन कार्ड में कनेक्टिविटी की समस्या आ रही है?
उत्तर- कहीं कुछ समस्या आ सकती है, लेकिन क्या आप हाईवे पर चलते हैं तो कहीं-कहीं गढ्डे नहीं मिलते हैं। इससे क्या हजारों किलोमीटर के हाईवे का महत्व खत्म हो जाता है। हमारा भरसक प्रयास है कि कहीं भी कोई काम कनेक्टिविटी के कारण बाधित न हो। साइबर सिक्युरिटी को लेकर भी सतर्क हैं। मंत्रालय के अधिकारियों के साथ दो-तीन मीटिंग कर चुके हैं और इस दिशा में काम जारी है। एक बात हम आपको यह भी कहना चाहते हैं कि अब हम डिजिटल हाईवे पर चल रहे हैं और जब हम हाईवे पर चलते हैं तो हमें खुद भी सावधान रहना चाहिए। कई ऐहतियात बरतने की जरूरत है।
प्रश्न: अगर चीन पर ही वापस आएं तो विपक्ष की ओर से कई सवाल उठाए गए हैं। विपक्ष का आरोप है कि सरकार जवाब नहीं दे रही है।
उत्तर: जवाब दिया जा चुका है। देश के प्रधानमंत्री की ओर से सभी दलों को और देश को आश्वस्त किया गया, लेकिन राहुल गांधी, सोनिया गांधी आश्वस्त होना नहीं चाहते तो क्या करें। मैं पूछता कि क्या राहुल गांधी तय करेंगे कि देश कैसे चलेगा। कोई भी दल उनके साथ नहीं खड़ा है। उनकी तो आदत ही है सवाल खड़ा करना। सर्जिकल स्ट्राइक हुआ तो सवाल, बालाकोट हुआ तो सवाल और सुबूत। उनका क्या करें।
प्रश्न- पिछले दिनों में कई केंद्रीय कानूनों को कोर्ट में चुनौती दी जा रही है। पीआइएल हो रही हैं। इसका क्या कारण मानते हैं?
उत्तर - अभी तक देश में ऐसा कोई कानून नहीं बना है जो किसी को कोर्ट जाने से रोकता हो। ऐसा कानून होना भी नहीं चाहिए। लोग कोर्ट जाते हैं और कोर्ट ने बड़े-बड़े मामले निपटाए हैं। तीन तलाक, राम जन्मभूमि, राफेल आदि। राफेल पर कितना रार हुआ था, आप सभी जानते हैं। मैं तो यह कहूंगा कि मोटिवेट होकर लोग कोर्ट में हमारे खिलाफ जाते हैं। हम तो लोगों के हित में कानून बनाते हैं, कुछ लोग अपना हित साधने की कोशिश करते हैं। आजकल एक नई प्रवृत्ति चल रही है, राजनीतिक उद्देश्य के लिए कोर्ट में जनहित याचिकाएं दाखिल की जाती हैं। चुनाव में हारे हुए लोग, हताश लोग मोटिवेटेड लोग कोर्ट के गलियारे से राजनीति चलाने की कोशिश करते हैं जो कतई ठीक नहीं है। आजकल यह भी कहा जा रहा है कि कोर्ट दबाव में हैं। मैं इसका प्रतिवाद करता हूं।
प्रश्न: कोर्ट में एक केस 1991 के उस कानून को खारिज करने पर भी आया है जिसके तहत अयोध्या को छोड़कर बाकी धार्मिक विवाद हमेशा के लिए खारिज कि ए गए थे। आप इससे कितने सहमत हैं?
उत्तर: मैं कानून मंत्री हूं और रामलला का वकील भी रहा हूं। मेरा मानना है कि इतने दिनों बाद रामजन्मभूमि का फैसला आया है। पहले भव्य मंदिर निर्माण हो जाए। यह हमारे लिए गौरव का विषय होगा।
प्रश्न: क्या जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता के लिए फिर से कोई कवायद हो रही है?
उत्तर: क्या करें। सवाल तो खुद कोर्ट के अंदर भी उठ रहे हैं। हमने सुधार के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी )कानून संसद से एक मत से पारित किया था। पचास फीसद राज्यों ने भी कानून को सहमति दे दी थी, लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। कारण दिया गया कि आयोग में कानून मंत्री शामिल हैं, इसलिए आयोग की स्वतंत्रता नहीं रहेगी। प्रधानमंत्री अपने मंत्रियों के जरिये काम करते हैं। प्रधानमंत्री सबको नियुक्त कर सकते हैं, उनके हाथ में कितनी बड़ी जिम्मेदारी होती है कि न्यूक्लियर बटन उनके हाथ में होता है, लेकिन कोर्ट को आपत्ति है कि सरकार का कानून मंत्री बैठेगा तो वह प्रभावित हो जाएंगे। यह कैसी बात है। क्या कोई इससे सहमत हो सकता है।
प्रश्न : पहले से ही मुकदमों की पेंडेंसी काफी है और अब कोरोना काल में अदालतें करीब तीन महीने से बंद हैं। ऐसे में मुकदमों का बोझ और बढ़ गया होगा। नाइट कोर्ट पर भी क्या विचार किया जा रहा है।
उत्तर: नाइट कोर्ट तो नहीं हो सकता है। उसके लिए सारी व्यवस्थाएं बनानी पड़ेंगी। रही बात पेंडेंसी की तो सरकार सिर्फ ढांचागत संसाधन दे सकती है-जैसे कोर्ट बिल्डिंग और कोर्ट कक्ष बनवाना, स्टाफ मुहैया कराना, न्यायाधीशों के आवास का निमार्ण कराना आदि। वह हमने किया है। सरकार ने न्याय में तेजी लाने के लिए 2000 पुराने कानूनों को रद किया है। पेंडेंसी खत्म करने का एक उपाय यह भी हो सकता है कि एक समान मुकदमे एक साथ सुनवाई के लिए लगाए जाएं। मैंने कई बार उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को पत्र लिखा है कि दस साल पुराने मुकदमों को निपटाने में प्राथमिकता दी जाए। न्याय करना और मुकदमे निपटाना न्यायपालिका का काम है।
प्रश्न: कोरोना काल में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में तो वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये मामलों की सुनवाई हुई, लेकिन निचली अदालतों में कामकाज पूरी तरह ठप रहा। वर्तमान स्थिति में सरकार के पास वर्चुअल कोर्ट शुरू करने की कोई दीर्घकालिक स्थायी योजना है।
उत्तर: अदालतें कैसे चलेंगी, यह देखना न्यायपालिका का काम है। सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के बारे में और हाई कोर्ट स्वयं और निचली अदालतों के बारे में निर्णय लेता है। वैसे निचली अदालतों में भी कोरोना काल में देशभर में करीब दो लाख मुकदमों में गवाहियां और ट्रायल वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हुए हैं। वर्चुअल कोर्ट से वकीलों को, स्टैनों और व्यवस्था से जुड़े अन्य लोगों को बहुत परेशानी हो रही है। यह कोई स्थायी विकल्प नहीं हो सकता। धीरे-धीरे सावधानी और सुरक्षा उपायों के साथ निचली अदालतें खुलनी चाहिए। हाई कोर्ट को इस पर विचार करना चाहिए।
प्रश्न: उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में लंबे समय से हाई कोर्ट की नई बेंच की मांग हो रही है। इस पर आपका क्या कहना है।
उत्तर: राज्य में नई पीठ के गठन के लिए राज्य सरकार की सहमति चाहिए होती है। हाई कोर्ट की भी सहमति होती है। अलग-अलग राज्य के अलग-अलग विषय हैं। इसमें मैं और ज्यादा कुछ नहीं कह सकता।