Rajasthan Political Crisis: कांग्रेस में अंदरूनी घमासान रोकने की नाकामी से वरिष्ठ नेता हुए बेचैन
पार्टी नेताओं का टूटता धैर्य और बढ़ती बेचैनी यह दर्शाती है कि मध्यप्रदेश के बाद कांग्रेस नेताओं को अपने नेतृत्व और रणनीतिकारों के संकट प्रबंधन पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं है।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। सियासी मोर्चे पर लगातार संकटों का सामना कर रही कांग्रेस में राजस्थान के ताजा संकट ने पार्टी में अंदरूनी बेचैनी बढ़ा दी है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की आपसी वर्चस्व की लड़ाई से पैदा हुए इस संकट को कांग्रेस नेता राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के भविष्य के लिए न केवल चिंताजनक मानने लगे हैं बल्कि अब उनका धैर्य भी टूटने लगा है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने ऐसी सियासी चुनौतियों से निपटने की पार्टी की रणनीति पर हताशा जाहिर कर जहां अंदरखाने पार्टी में बढ़ रही बेचैनी का संकेत दिया। वहीं परोक्ष रूप से राज्यों में पार्टी के बढ़ते संकटों का निदान तलाशने में कांग्रेस नेतृत्व की सामने आ रही कमजोरी की ओर भी इशारा किया।
कपिल सिब्बल ने उठाया सवाल
राजस्थान कांग्रेस के अंदरूनी संकट को लेकर पार्टी नेताओं का टूटता धैर्य और बढ़ती बेचैनी यह दर्शाती है कि मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी तोड़ने की घटना के बाद कांग्रेस नेताओं को अपने नेतृत्व और रणनीतिकारों के संकट प्रबंधन पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं है। सत्ता के वर्चस्व की जंग में सचिन पायलट के भाजपा से संपर्क की बढ़ी अटकलों पर ट्वीट करते हुए कपिल सिब्बल ने कहा 'हमारी पार्टी के लिए चिंतित हूं। क्या हम तभी जागेंगे, जब घोड़े हमारे अस्तबल से निकल जाएंगे?'
मोदी सरकार से कांग्रेस की सियासी लड़ाई में आगे रहने वाले पार्टी के मुखर चेहरों में शामिल कपिल सिब्बल जैसे नेता की सार्वजनिक टिप्पणी पार्टी के ढांचे में कमजोर होते विश्वास से बढ़ रही बेचैनी को जाहिर करता है। पायलट के पाला बदलने की किसी आशंका से ही पार्टी में दिख रही घबराहट इस बात का संकेत है कि मध्यप्रदेश में सिंधिया प्रकरण को संभालने में शीर्ष नेतृत्व की दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के सामने दिखी विवशता के मद्देनजर पार्टी नेताओं को कांग्रेस के भविष्य की चिंता कहीं ज्यादा सता रही है।
विवेक तन्खा ने भी उनसे जताई सहमति
सचिन पायलट के राहुल गांधी से चाहे बेहद अच्छे रिश्ते हों, मगर हाईकमान के लिए अशोक गहलोत की सियासत को नजरअंदाज करना इस समय मुश्किल है। वैसे गहलोत भी कांग्रेस नेतृत्व के खास निकट माने जाते हैं। जाहिर तौर पर सोनिया या राहुल गांधी के लिए यहां निजी दुविधा की दोहरी चुनौती भी है। कांग्रेस के कानूनी सेल के प्रमुख मध्यप्रदेश से राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने भी सिब्बल के ट्वीट से सहमति जताते हुए कहा कि उनकी यह चिंता सभी पार्टीजनों की चिंता है। तन्खा ने कहा कि यह समय है उन ताकतों से लड़ने के लिए पार्टी को मजबूत करने का जिनका एक ही एजेंडा है कि कांग्रेस को कमजोर कर हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों व संस्थाओं को कमजोर किया जाए।
कांग्रेस को कई राज्यों में हुआ है नुकसान
राजस्थान में पायलट की नाराजगी के तेवरों पर कांग्रेस नेताओं की सामने आयी बेचैनी अकारण नहीं है। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य की बगावत की कीमत कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में अपनी सरकार गंवा कर चुकाई। राज्यसभा की एक पक्की सीट भी पार्टी के खाते से निकल गई। हाल में गुजरात के राज्यसभा चुनाव के दौरान भी कांग्रेस के करीब आठ विधायकों को भाजपा ने तोड़ लिया। इसकी वजह से पार्टी के स्थानीय दिग्गज नेता भरत सिंह सोलंकी चुनाव हार गए। इसी तरह पिछले साल कर्नाटक में भाजपा के आपरेशन लोटस के सामने भी कांग्रेस के रणनीतिकार असहाय दिखे।
येदियुरप्पा ने कांग्रेस के 13 विधायकों को तोड़ लिया और इसकी वजह से कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिर गई। इस प्रकरण में कांग्रेस नेतृत्व अपने दिग्गज सिद्धारमैया को काबू में नहीं कर पाए क्योंकि भाजपा में गए अधिकांश कांग्रेस विधायक उनके ही करीबी थे। इससे पहले गोवा और मणिपुर में चुनाव के बाद सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी भाजपा की रणनीति और प्रबंधन के मुकाबले कांग्रेस पिछड़ कर यहां न केवल सत्ता से दूर हो गई बल्कि पार्टी के कई विधायक भी टूट गए। पिछले तीन-चार सालों के दौरान पार्टी के संकटों को थामने में नेतृत्व की दिखी विवशता कांग्रेस के तमाम नेताओं को बेचैन कर रही हैं, भले ही वे सिब्बल और तन्खा की तरह बोल न पाएं।